इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा के किसानों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने एक अहम फैसले में नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बाढ़ क्षेत्र में स्थित कृषि भूमि की बिक्री पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए विवादास्पद प्रतिबंधों को रद्द कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने सुनाया, जो पिछले तीन सालों से अपनी जमीन बेचने के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे क्षेत्रीय भूस्वामियों के लिए बड़ी जीत है। अहम फैसले में हाईकोर्ट ने कहा है कि संपत्ति खरीदने और बेचने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। बल्कि अनुच्छेद 300 ए के तहत यह संवैधानिक अधिकार है। इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के डीएम को हिंडन और यमुना के डूब क्षेत्र में जमीन खरीदने और बेचने के मामले में फटकार भी लगाई है। कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा है कि हिंडन और यमुना के डूब क्षेत्र में कृषि भूमि की बिक्री के लिए डीएम से एनओसी लेना जरूरी है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला गौतमबुद्ध नगर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) द्वारा 30 सितंबर, 2020 को पारित एक प्रस्ताव पर आधारित था। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण को रोकना था, जिसके तहत भूमि मालिकों को किसी भी बिक्री कार्यवाही से पहले अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करना अनिवार्य था। यह NOC प्रमाणित करता है कि संबंधित भूमि पर कोई अवैध या अनधिकृत निर्माण नहीं है।
गौतम बुद्ध नगर के कई गांवों के कृषि संपत्ति के मालिक सुरेश चंद, अमन सिंह और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि डीडीएमए के प्रतिबंध मनमाने हैं और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन के फैसले ने उन्हें अपनी जमीन बेचने के अधिकार से वंचित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप वित्तीय तबाही हुई।
अदालत ने सुनाया यह फैसला
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची कि बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में बिना लाइसेंस के विकास के बारे में सरकार की चिंता जायज़ है, लेकिन इसे संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया गया तरीका गलत था। अदालत के फ़ैसले ने 30 सितंबर, 2020 के डीडीएमए के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, साथ ही गौतम बुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए निर्देशों को भी खारिज कर दिया। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता और इसी तरह की स्थिति वाले अन्य भूस्वामियों को मौजूदा भूमि लेनदेन कानून के तहत बिना एनओसी के अपनी कृषि भूमि बेचने की अनुमति दी जानी चाहिए। अदालत ने राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों से भूस्वामियों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में अनधिकृत विकास की समस्या के वैकल्पिक समाधानों की जाँच करने का भी आग्रह किया।
हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के डीएम को लगाई फटकार
कानूनी पहलुओं पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2020 के आदेश और 8 जुलाई 2024 के शासनादेश को रद्द कर दिया। इस आदेश को लेकर हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के डीएम मनीष कुमार वर्मा के फैसले पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, यह आदेश बाढ़ क्षेत्र में अवैध कॉलोनियों के बढ़ने के लिए जिम्मेदार है और किसानों पर अपनी जमीन बेचने के लिए शर्तें थोप रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह पूरी तरह से व्यवस्था का मजाक उड़ाने वाला फैसला है। यह फैसला लोमड़ी से मुर्गी की रखवाली करने जैसा है।
इस फैसले का असर क्या होगा
इस निर्णय का नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि लेन-देन पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, खासकर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में। यह निर्णय उन भूमि मालिकों को बहुत ज़रूरी राहत प्रदान करता है जो प्रतिबंधात्मक नियमों के कारण अपनी संपत्ति बेचने में असमर्थ थे।
पिछले दो वर्षों से क्यों बंद थी, रजिस्ट्री
पिछले 20 वर्षों से जिसको नोएडा प्राधिकरण की ओर से डूब क्षेत्र में कहा जा रहा है। प्राधिकरण के द्वारा वहां सालों से जमीं की खरीद-बिक्री जारी थी। यहां तक कि सरकारी नियमों के तहत रजिस्ट्री की जा रही थी। वहां दाखिल ख़ारिज भी किया जा रहा था। जिससे धड़ल्ले से फॉर्म हॉउसों का निर्माण भी हो रहा था। लेकिन बीते दो वर्षों में नोएडा प्राधिकरण ने जमीन की रजिस्ट्री बिना कोई कारण बताएं बंद कर दी थी।
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