90 Hours Work Hour Culture: हाल ही में इंफोसिस के सह-संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति द्वारा सप्ताह में 70 घंटे काम करने के सुझाव पर मची बहस शांत भी नहीं हुई थी कि एलएंडटी (L&T) के चेयरमैन एस. एन. सुब्रमण्यन ने सप्ताह में 90 घंटे काम करने की सलाह देकर इस मुद्दे को और गर्मा दिया। उन्होंने यह बयान अपनी कंपनी के एक कार्यक्रम में कर्मचारियों के साथ बातचीत के दौरान दिया, जो सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल गया।
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हालांकि, इस विचार पर जहां कई लोग असहमति जता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञ और डेटा इस सुझाव की व्यवहार्यता पर सवाल उठाते हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े? (90 Hours Work Hour Culture)
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट के अनुसार, सप्ताह में 90 घंटे काम करना वास्तविकता से बहुत दूर है। रिपोर्ट में पाया गया है कि केवल सैनिक ही सप्ताह में 80-90 घंटे के करीब काम करते हैं। 2023 में, होंडुरास के सैनिकों ने औसतन 80 घंटे काम किया। विभिन्न देशों में श्रमिकों के डेटा को देखने पर पता चलता है कि सशस्त्र बलों को छोड़कर ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां लोग इतने लंबे समय तक काम करें।
भारत के फॉर्मल सेक्टर में औसत काम के घंटे भी अंतरराष्ट्रीय औसत से अधिक हैं। उदाहरण के लिए:
- क्लेरिकल स्टाफ: 56 घंटे/सप्ताह
- प्रोफेशनल्स (सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर, लॉयर): 52 घंटे/सप्ताह
- सीईओ और मैनेजर: 57 घंटे/सप्ताह
लेकिन, भारत की तुलना में सूडान में कॉर्पोरेट कर्मचारियों का कार्य समय सबसे अधिक है, जो सप्ताह में 60 घंटे तक काम करते हैं।
प्रोडक्टिविटी बनाम काम के घंटे
लंबे समय तक काम करने का मतलब जरूरी नहीं कि उच्च उत्पादकता हो। ILO के डेटा के अनुसार, भारत में प्रति घंटे औसत लेबर प्रोडक्टिविटी $10.7 है, जो वैश्विक औसत $23.1 से काफी कम है।
चीन, जिसने ‘9-9-6’ वर्क कल्चर (सप्ताह में 72 घंटे) को बढ़ावा दिया, को भी आलोचना का सामना करना पड़ा। अब, यहां की सरकार इस संस्कृति से दूरी बना रही है। वहीं, लक्ज़मबर्ग और आयरलैंड, जहां प्रति सप्ताह औसतन 35-40 घंटे काम किया जाता है, ने क्रमशः $166 और $139 प्रति घंटे की उत्पादकता दर हासिल की है।
लंबे घंटे काम करने के दुष्परिणाम
डब्ल्यूएचओ (WHO) की 2021 की रिपोर्ट में बताया गया कि:
- 55 घंटे से अधिक काम करने से स्ट्रोक का खतरा 35% और दिल की बीमारी से मौत का खतरा 17% बढ़ जाता है।
- लंबे समय तक काम करने से नींद की कमी, तनाव, और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
फोर्टिस अस्पताल के साइकेट्रिस्ट डॉ. सचिन बालिगा का मानना है कि सप्ताह में 90 घंटे काम करना अव्यावहारिक है और इससे कर्मचारियों की फोकस, क्रिएटिविटी और परफॉर्मेंस पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
युवा पीढ़ी की बदलती प्राथमिकताएं
आज की युवा पीढ़ी वर्क-लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता देती है। वे ऐसे करियर विकल्प चाहते हैं जो:
- फ्लेक्सिबल शेड्यूल प्रदान करें।
- रिमोट वर्क की सुविधा दें।
- स्वस्थ और सहयोगात्मक कार्य वातावरण सुनिश्चित करें।
जो कंपनियां इन अपेक्षाओं को पूरा नहीं करतीं, वे न केवल टैलेंट को खो सकती हैं, बल्कि भर्ती और रिटेंशन के मामले में भी चुनौती झेल सकती हैं।
क्या है समाधान?
विशेषज्ञों के अनुसार, सप्ताह में 40-48 घंटे का कार्य समय सबसे प्रभावी और व्यवहारिक है।इससे कर्मचारियों को बेहतर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है। प्रोडक्टिविटी, क्रिएटिविटी और निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है।
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