केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर आंदोलन कर रहे हैं। कल शनिवार 6 मार्च को यह आंदोलन अपने 100 वें दिन में प्रवेश कर जाएगा। किसान केंद्र सरकार से लगातार इन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। खबरों के मुताबिक अभी तक करीब 300 किसानों की मौत भी हो चुकी है।
देश के 5 प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कयाश लगाए जा रहे हैं कि किसान आंदोलन का असर इन चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए किसान नई-नई रणनीति बना रहे हैं। इसी बीच संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने 15 मार्च तक के कार्यक्रमों की घोषणा कर दी है।
बीजेपी को वोट न देने की अपील
स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव और भारतीय किसान यूनियन के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा है कि ‘हम पश्चिम बंगाल और केरल में चुनावों के लिए टीम भेजेंगे। हम किसी भी पार्टी का समर्थन नहीं करेंगे, लेकिन लोगों से अपील करेंगे कि वो उस पार्टी को वोट दें जो भाजपा को हरा सकती है। हम लोगों को किसानों के प्रति मोदी सरकार के रवैये के बारे में बताएंगे।‘ स्वराज इंडिया के अध्यक्ष ने संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी किए गए कार्यक्रम पर के बारे में विस्तार से बताया है।
चुनावी राज्यों में पहुंचेंगे किसान
योगेंद्र यादव ने कहा, 6 मार्च को जब आंदोलन 100 वें दिन में प्रवेश करेगा तो किसान सुबहर 11 बजे से शाम 4 बजे के बीच कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे को अलग-अलग स्थानों पर रोकेंगे। उन्होंने बताया कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी प्रदर्शन स्थलों पर महिला प्रदर्शनकारियों का आगे रखा जाएगा।
उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में हम लोगों से भाजपा और उसके सहयोगियों को दंड देने की अपील करेंगे जो किसान विरोधी कानून लाए थे। हम चुनावी राज्यों में जाएंगे। यह कार्यक्रम 12 मार्च को कोलकाता में एक सार्वजनिक बैठक के साथ शुरू होगा।
योगेंद्र यादव ने स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण के विरोध में 15 मार्च को पूरे देश के मजदूर और कर्मचारी सड़क पर उतरेंगे और रेलवे स्टेशनों के बाहर जाकर धरना-प्रदर्शन करेंगे।
23 जनवरी को हुई थी अंतिम बातचीत
बता दें, किसान लगातार इस कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून किसी भी कीमत पर रद्द नहीं होगा। हालांकि सरकार ने उसमें संशोधन की बात जरुर की है।
केंद्र सरकार के मंत्री और किसान नेताओं के बीच अभी तक 11 दौरे की बातचीत हो चुकी है लेकिन किसी भी तरह का कोई नतीजा निकलकर सामने नहीं आया है।
दोनों पक्षों के बीच अंतिम बातचीत 23 जनवरी को हुई थी। उसके बाद से अभी तक एक बार भी बातचीत नहीं हुई है। किसान नेताओं की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि जब तक इन कानूनों को रद्द नहीं किया जाएगा, तब तक वे वापस नहीं जाएंगे।