जब इस सैनिक से थामा संगीत का हाथ, आवाज ने चलाया ऐसा जादू कि रेखा बनी सुपरस्टार, सरकार ने भी दिया पद्म भूषण पुरस्कार

When this soldier became a musician, his voice worked such magic that Rekha became a superstar
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किसी भी फिल्म को हिट बनाने में एक्टर, कहानी और डायरेक्शन के अलावा जो सबसे अहम चीज भूमिका निभाती है वो है फिल्म का म्यूजिक जो कई बार फिल्म का हीरो बन जाता है। बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी रही हैं जो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गईं, लेकिन उन फिल्मों के गाने सुपरहिट रहे। ऐसे में फिल्मों के लिए अभिनेता-अभिनेत्रियों की कास्टिंग के अलावा गायकों और संगीतकारों का चयन भी सोच-समझकर किया जाता था। बॉलीवुड में एक संगीतकार ऐसे भी हुए जिन्होंने न सिर्फ फिल्म जगत में अपनी प्रतिभा का योगदान दिया बल्कि अपनी आवाज से पद्म भूषण पुरस्कार भी जीता। मरने से पहले उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान करके भी लोगों का दिल जीत लिया। ये संगीतकार ऐसे थे जिन्होंने रेखा को सुपरस्टार बनाया और आज भी रेखा अपनी सफलता का सारा श्रेय इसी संगीतकार को देती हैं। आइए आपको बताते हैं इस संगीतकार के बारे में।

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फौजी से संगीतकार बनें मोहम्मद जहूर खय्याम

हम जिस संगीतकार की बात कर रहे हैं उनका नाम ‘मोहम्मद जहूर खय्याम’ है। भले ही वह आज दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। ‘दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए’, ‘ऐ दिल-ए नादां’, ‘दिखाई दिए यूं’, ‘तू ही सागर, तू ही किनारा’ जैसे दर्जनों गानों से जादू बिखेरने वाले संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम को आज भी याद किया जाता है। कभी सेना में दुश्मन की बंदूक से छक्के छुड़ाने वाले इस सिपाही के दिल में संगीत की गूंज महसूस हुई तो वह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ गए। स्वभाव से सैनिक और फकीर इस संगीतकार ने मरने से पहले अपनी 10 करोड़ रुपये की संपत्ति दान कर दी थी। खय्याम बॉलीवुड के सुपरहिट संगीतकार रहे हैं और उन्हें दो बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। खय्याम को संगीत की दुनिया में उनके योगदान के लिए 2011 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था।

खय्याम का जीवन

18 फरवरी 1927 को पंजाब में जन्मे खय्याम एक पंजाबी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते थे और वह नई दिल्ली में अपने चाचा के घर पर रहते थे। वहां उन्होंने शास्त्रीय गायक और संगीतकार पंडित अमरनाथ से प्रशिक्षण लिया। 17 साल की उम्र में खय्याम ने काम करना शुरू किया और छह महीने तक संगीत निर्देशक बाबा चिश्ती के पास अपने सुरों को धार देने लगे। इसके बाद वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना में सेवा करने चले गए और बाद में अपने सपने को पूरा करने के लिए बॉम्बे चले गए और 1948 में फिल्म हीर रांझा से शर्माजी-वर्माजी संगीतकार जोड़ी के शर्माजी के रूप में अपनी शुरुआत की। हालांकि, इसके बाद उनके साथियों ने नवगठित पाकिस्तान में रहने का फैसला किया और उन्होंने अकेले रहने का फैसला किया। इसके बाद भी उन्हें फिल्मों में काम मिलने लगा। देखते ही देखते सभी फिल्म मेकर उनके फैन हो गए। खय्याम भी फिल्मों के लिए गाने बनाने लगे और 1 के बाद 1 सुपरहिट गानों की लाइन लगा दी।

रेखा को बनाया सुपरस्टार

1981 में आई फिल्म ‘उमराव जान’ में खय्याम के गानों ने मार्केट में तहलका मचा दिया था। यही वो फिल्म है जिसने रेखा को सुपरस्टार बना दिया। रेखा ने हमेशा इसका श्रेय खय्याम को दिया है। साल 2012 में मिर्ची म्यूजिक अवॉर्ड समारोह में रेखा ने खुद कहा था कि खय्याम साहब ने मुझे सुपरस्टार बनाया है।

दान की अपनी संपत्ति

खय्याम ने अपने 90वें जन्मदिन पर 10 करोड़ रुपये की संपत्ति दान कर सभी को चौंका दिया। 19 अगस्त 2019, ये वही वक्त था जब खय्याम ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 2 फिल्मफेयर, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और पद्मभूषण जैसे सम्मान से नवाजे जा चुके खय्याम को उनके संगीत के लिए आज भी याद किया जाता है।

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