बॉलीवुड का वो फिल्ममेकर, जिसकी हर फिल्म में होता है रेड लाइट एरिया

That Bollywood filmmaker, whose every film has a red light area
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बॉलीवुड में एक ऐसे फिल्ममेकर हैं, जो सबके चहेते हैं…उनके साथ काम करने के लिए एक्टर्स तरसते हैं…उनकी अब तक की लगभग सभी फिल्में ही हिट रही हैं…उन्होंने बॉलीवुड को एक से बढ़कर एक क्लासिक फिल्में दी हैं, जिसके डायलॉग्स आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं…शाहरुख खान के साथ इन्होंने देवदास जैसी कल्ट क्लासिक बनाई तो वहीं पद्मावत और बाजीराव मस्तानी के जरिए रणवीर सिंह को स्टार बना दिया..ये कोई और नहीं बल्कि फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली हैं. संजय लीला भंसाली की कई फिल्मों में आपने रेड लाइट एरिया देखा होगा..देवदास हो या फिर गंगूबाई काठियावाड़ी हो या फिर इनकी आने वाली वेबसीरीज हीरामंडी हो…इन सभी में रेड लाइट एरिया को काफी नजदीक से दिखाया गया है…लेकिन क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है? संजय लीला भंसाली की ज्यादातर फिल्मों में रेड लाइट एरिया क्यों होता है? चलिए इसके पीछे की कहानी को समझते हैं.

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देवदास से लेकर हीरामंडी

संजय लीला भंसाली की फिल्म देवदास में एक तवायफ की जिंदगी को काफी करीब से दिखाया गया. माधुरी दीक्षित की अदाकारी सभी को पसंद आई थी. यह उस दौर की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक थी. आज भी इस फिल्म को लोग देखना पसंद करते हैं..फिल्म के कई डायलॉग्स आज भी वायरल होते रहते हैं…इसके बाद तवायफ की स्टोरी पर ही बेस्ड भंसाली की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी भी जबरदस्त हिट रही. इस फिल्म में रेड लाइट एरिया में रहने वाली तवाएफों के संघर्ष को दिखाया गया था. फिल्म में आलिया का किरदार लोगों को काफी पसंद आया और इस फिल्म का कलेक्शन भी जबरदस्त रहा था. अब 1 मई को तवायफों की जिंदगी पर बेस्ड भंसाली का अगला प्रोजेक्ट हीरामंडी- द डायमंड बाजार नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम होगा. यह एक वेबसीरीज है, जो लाहौर के हीरामंडी इलाके पर बेस्ड है.

यह सीरीज हीरामंडी इलाके में रहने वाली वैश्याओं के जीवन को काफी करीब से दिखाने वाली है. हीरामंडी के तवायफों ने परतंत्र भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों से कैसे लोहा लिया, इस वेबसीरीज में इस मामले को भी प्रमुखता से उकेरा गया है. ऐसे में सभी के मन में यही सवाल होता है कि आखिर भंसाली ऐसे विषयों को इतना महत्व क्यों देते हैं?
इस बात का जवाब अपने एक इंटरव्यू में दिया था.

भंसाली ने किया खुलासा

अपने इंटरव्यू के दौरान भंसाली ने बताया कि वह मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा के पास एक चॉल में पले-बढ़े हैं. उन्होंने वहां का माहौल देखा है और वहां के जीवन से काफी प्रभावित हैं. इसीलिए वह अक्सर इन मुद्दों को अपनी फिल्मों में दिखाना पसंद करते हैं. संजय लीला भंसाली ने आगे में कहा था कि ‘जो आप बचपन में देखते हैं, उसे लेकर काफी सेंसेटिव होते हैं। मैंने सेक्स वर्कर्स को 20-20 रुपये के लिए खुद को क्लाइंट्स के सामने खुद को बेचते देखा है. बचपन की यादों से कुछ यादें मेरे दिमाग में हमेशा के लिए बस गईं. जिनमें से एक ये भी थी। मैं ठीक से किसी से कह नहीं पाया. मैं उन्हें बस देवदास की चंद्रमुखी के जरिए तलाशता हूं… वो भी अनमोल हैं. हमें टैग नहीं किया जा सकता है. हमें 5 रुपये या 20 रुपये या 50 रुपये में नहीं बेचा जा सकता है. ये अमानवीय है.’

भंसाली ने आगे कहा था कि ‘जब मैं हर दिन स्कूल के लिए निकलता था, ये सब देखता था, जिसे लेकर मैं काफी सेंसेटिव हो गया था. उनके चेहरों पर जाने कितनी ही कहानियां होती थीं. वो अपने चेहरे को ढेर सारे मेकअप से ढंक लेती थीं. ढेर सारा पेंट और पाउडर लगाती थीं, ताकि उनके चेहरे का दुख किसी को नजर ना आए. लेकिन, इन्हीं पलों ने मेरे दिल पर गहरी छाप छोड़ी. आप उस मेकअप के पीछे का उनका दुख देख सकते हैं। आप ये दुख नहीं छिपा सकते. बड़े-बड़े मेकअप आर्टिस्ट भी ऐसा नहीं कर सकते. यही वो पल होते हैं जो एक फिल्ममेकर के तौर पर मायने रखते हैं.’ यही वजह है कि वह अपनी फिल्मों के जरिए समाज को रेड लाइट एरिया का सच दिखाते हैं.

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