Dalit Filmmaker Pa Ranjith Films – पा रंजीत इन दिनों अपनी हालिया फिल्म थंगलान को लेकर चर्चा में हैं। हर कोई उनके काम की तारीफ कर रहा है। इस फिल्म के जरिए उन्होंने अनुसूचित जाति और दलितों के संघर्ष को बिना किसी झिझक के बड़े पर्दे पर उतारा है। उन्होंने हमेशा अपनी फिल्मों के जरिए दलितों के संघर्ष को समाज के सामने पेश किया है। वह खुद दलित हैं और व्यावसायिक रूप से सफल होने वाले देश के पहले दलित फिल्म निर्माता हैं। रंजीत अपनी फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री में दलित किरदारों को हीरो के तौर पर दिखाते हैं। वह मुख्य रूप से जाति आधारित उत्पीड़न और भेदभाव को उजागर कर रहे हैं जिसके लिए देश में कानून तो हैं (भेदभाव के खिलाफ मौजूदा कानून) लेकिन फिर भी उनका सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। रंजीत की अंबेडकरवादी सोच ने उन्हें हमेशा अपनी फिल्मों के जरिए “अछूत” माने जाने वाले दलित समुदाय को सशक्त बनाने के लिए प्रेरित किया है।
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रंजीत- ‘मां जाति बताने से मना करती थी’
वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक पा रंजीत की मां अक्सर उनसे कहा करती थीं कि वे अपनी जाति का खुलासा न करें। लेकिन इसके बावजूद रंजीत ने एक ऐसे क्षेत्र में कदम रखा जिसमें अभी तक बहुत कम लोग ही आगे बढ़ पाए थे। उन्होंने अपने काम से दलितों को पहचान दिलानी शुरू की, महज कुछ सालों में रंजीत ने ऐसी फिल्में बनाई हैं जिनमें दलितों से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया है। तमिल फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले पा रंजीत ने अपने लोगों (दलितों) को पर्दे पर शराबी, मूर्ख, गुंडे और गांव के बेवकूफ के तौर पर देखा था। लेकिन रंजीत की फिल्मों में वंचित समाज से आने वाला उनका किरदार परिस्थितियों का शिकार, पराजित और लाचार नजर नहीं आता।
फिल्मों का रास्ता कैसे चुना? Dalit Filmmaker Pa Ranjith
रंजीत का जन्म 1982 में चेन्नई के एक कमरे वाले अपार्टमेंट में हुआ था, वह अपार्टमेंट एआईएडीएमके के संस्थापक एम.जी. रामचंद्रन की एक योजना के अंतर्गत बनाया गया था। रंजीत ने एनिमेशन के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए मद्रास फाइन आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन लिया था। लेकिन वह अपने बड़े भाई प्रभु से काफी प्रभावित थे, जोकि दलित संगठन से जुड़े वकील थे। प्रभु ने ही रंजीत को अम्बेडकर से रूबरू करवाया था। जब रंजीत कॉलेज में थे तब उन्होंने एक फिल्म चैंबर ज्वॉइन किया था और वहां उन्होंने काफी वैश्विक सिनेमा देखा।
रंजीत ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने कॉलेज में सैकड़ों फ़िल्में देखीं, जिनमें माजिद मजीदी की चिल्ड्रन ऑफ़ हेवन (1997) भी शामिल है, जिसे एक ईरानी ने निर्देशित किया था। यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मेरी खराब अंग्रेजी के कारण, मैं फिल्म के सबटाइटल नहीं पढ़ पाया। हालांकि, मुझे अच्छी तरह याद है कि इसे देखने के बाद, मैं बहुत रोने लगा था। इसने मुझे प्रेरित किया, और मैं एक फिल्म निर्माता की तरह सोचने लगा।
रंजीत का पहला ब्रेक – Dalit Filmmaker Pa Ranjith
2006 में, रंजीत ने फिल्म थगपंसमी के लिए सहायक निर्देशक के रूप में अपनी शुरुआत की। उन्हें पहला ब्रेक तब मिला जब रंजीत को उनके दोस्त मणि ने उभरते हुए निर्माता सी.वी. कुमार के पास भेजा। 2012 में, सी.वी. कुमार, जो उस समय एक ट्रैवल बिजनेस चलाते थे, उन्होंने ही रंजीत की पहली फिल्म अट्टाकथी का निर्माण किया। उनकी फिल्म को तब और लोकप्रियता मिली जब एक महत्वपूर्ण तमिल फिल्म स्टूडियो स्टूडियो ग्रीन ने मिलकर फिल्म के वितरण अधिकार हासिल कर लिए। स्टूडियो ग्रीन द्वारा उनकी अगली फिल्म मद्रास का निर्माण करने के बाद अभिनेता सूर्या ने उन्हें कोलैबरेशन के लिए अप्रोच किया था।
अम्बेडकर ताकत और साहस हैं
द वायर को दिए गए इंटरव्यू में रंजीत ने कहा था कि जब मैं दलित किरदारों के बारे में लिखता हूं तो सबसे पहले मैं खुद को इन कहानियों में रखता हूं और पूछता हूं कि मैं समाज में कहां खड़ा हूं? किसी और से ज्यादा मेरे लिए सबसे बड़े आदर्श बाबा साहब यानी डॉ. भीमराव अंबेडकर रहे हैं। बाबा साहब ने गांधी और कांग्रेस का विरोध तब किया जब उन्हें लगा कि वे (गांधी और कांग्रेस) दलितों के मुद्दों को संबोधित नहीं करते। मैंने उन्हें एक प्रेरणा के रूप में देखा है। अंबेडकर से मुझे हिम्मत मिलती है।