60 से 90 के दशक तक फिल्मों पर राज करने वाले एक्टर जितेंद्र का करियर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा। अपने करियर में उन्होंने करीब 200 फिल्मों में लीड हीरो के तौर पर काम किया, जिनमें से 121 फिल्में हिट साबित हुईं। जितेंद्र के नाम एक ऐसा रिकॉर्ड भी है जिसे आज तक कोई भी बॉलीवुड एक्टर नहीं तोड़ पाया है। दरअसल, जितेंद्र बॉलीवुड के एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने अपने पूरे करियर में 80 रीमेक फिल्मों में काम किया। जिनमें से कई सुपरहिट साबित हुईं। हालांकि उनकी एक फिल्म ऐसी भी थी जो 12 हफ्ते तक फ्लॉप रही, लेकिन 15वें हफ्ते में फिल्म हिट हो गई और खास बात यह कि यह फिल्म 1967 की तीसरी ब्लॉकबस्टर फिल्म बन गई। हालांकि, इस फिल्म को हिट बनाने के लिए जितेंद्र ने कुछ ऐसा कारनामा किया जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते। आइए जानते हैं जितेंद्र से जुड़े इस दिलचस्प किस्से के बारे में।
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जितेंद्र का फिल्मी करियर
जितेंद्र का जन्म 7 अप्रैल 1942 को एक पंजाबी परिवार में हुआ था। जीतेंद्र के परिवार का बॉलीवुड के साथ कनैक्शन था। दरअसल, उनका परिवार आर्टिफिशियल ज्वैलरी के बिजनेस में था, जो फिल्म इंडस्ट्री को ज्वैलरी सप्लाई करता था और इस तरह जितेंद्र के लिए बॉलीवुड का रास्ता खुल गया। इसके बाद 1959 में आई फिल्म ‘नवरंग’ में संध्या के बॉडी डबल के तौर पर जितेंद्र ने डेब्यू किया। इसके बाद जितेंद्र को पहला बड़ा ब्रेक 1964 में वी शांताराम की ‘गीत गाया पत्थरों ने’ से मिला। हालांकि इस फिल्म से उन्हें ज्यादा पहचान नहीं मिली।
इसके बाद 1967 में एक फिल्म आई ‘गुनाहों का देवता’। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। इसी साल आई उनकी दूसरी फिल्म ‘बूंद जो बन गए मोती’ भी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। इसके बाद उनकी फिल्म आई जो साल 1967 की तीसरी सबसे बड़ी सुपरहिट फिल्म साबित हुई। जीतेंद्र की यह सुपरहिट फिल्म 78 लाख रुपये के बजट पर बनी थी। उस दौर में इस फिल्म ने अपना बजट पूरा करने के बाद खूब मुनाफा कमाया था। इस फिल्म से जीतेंद्र को बॉलीवुड में पहचान मिली।
रीमेक फिल्म से कमाया मुनाफा
इस फिल्म का नाम फ़र्ज़ था। फ़र्ज़ का निर्देशन रविकांत नगाइच ने किया था। फिल्म में जीतेंद्र के अपोजिट एक्ट्रेस बबीता नजर आई थीं। यह फिल्म 1966 की तेलुगु फिल्म ‘गुडाचारी’ का हिंदी रीमेक थी। इस फिल्म में जितेंद्र ने एक जासूस की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म का किरदार हॉलीवुड के जेम्स बॉन्ड से काफी प्रेरित था।
रिलीज के पहले बारह हफ्तों में इस फिल्म ने मुश्किल से ही कोई कमाई की। जिस के बाद फिल्म के मेकर्स काफी निराश हो गए। दूसरी ओर, जितेंद्र को भी समझ आ गया था कि फिल्म फ्लॉप होने की कगार पर है। इस फिल्म से जितेंद्र को काफी उम्मीदें थीं, ये फिल्म उनकी जिंदगी की ब्लॉकबस्टर फिल्म साबित हो सकती थी, इसलिए उन्होंने फिल्म को हिट कराने का एक तरीका सोचा। वहीं, जब फिल्म 12वें हफ्ते तक नहीं चली और थिएटर मालिक इसे स्क्रीन से हटाने की तैयारी कर रहे थे, तो जीतेंद्र ने एक तरकीब सोची। उन्होंने फिल्म के सभी टिकट एक ही बार में खरीद लिए और थिएटर मालिकों से संपर्क कर उन्हें फिल्म को लगाए रखने के लिए मनाया। जीतेंद्र का मानना था कि अगर फिल्म 15वें हफ्ते तक चली तो कलेक्शन बेहतर हो जाएंगे। जीतेंद्र का ये पैंतरा सही साबित हुआ। धीरे-धीरे ही सही लेकिन फिल्म के कलेक्शन में काफी बदलाव आया। जो फिल्म 1967 में फ्लॉप साबित हुई थी वह अचानक 60 के दशक की ब्लॉकबस्टर बन गई।
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