Jahnu Barua Filmography: असम के जाने-माने फिल्म निर्देशक जाह्नु बरुआ ने भारतीय सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई है। उन्होंने असमिया और हिंदी दोनों भाषाओं में कई महत्वपूर्ण फिल्में निर्देशित की हैं, जो सामाजिक मुद्दों को संवेदनशीलता से पेश करती हैं। हाल ही में उन्होंने वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ के दूसरे सीजन से अपने अभिनय की शुरुआत की है, जिसमें उन्होंने ‘अंकल केन’ की भूमिका निभाई है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा- Jahnu Barua Filmography
जाह्नु बरुआ का जन्म 17 अक्टूबर 1952 को असम के शिवसागर जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा असम में पूरी की और बाद में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से फिल्म निर्देशन में डिप्लोमा प्राप्त किया। उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण ने उन्हें सिनेमा की गहरी समझ और परिप्रेक्ष्य प्रदान किया, जो उनकी फिल्मों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
फिल्मी सफर
जाह्नु बरुआ ने अपने करियर की शुरुआत असमिया फिल्म ‘अपरूपा’ (1982) से की, जिसने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने ‘हलोधिया चोराये बौधन खाय’ (1987) का निर्देशन किया, जिसने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में ‘फिरिंगोटी’ (1992), ‘हखागोरोलोई बोहू दूर’ (1995), ‘मैंने गांधी को नहीं’ (1996) शामिल हैं। (2005), ‘कोणिकर रामधेनु’ (2003), ‘बंधों’ (2012), और ‘अजेयो’ (2014)।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
जाह्नू बरुआ ने अपने निर्देशन कौशल के लिए 12 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म जैसी श्रेणियां शामिल हैं। उन्हें 2003 में पद्म श्री और 2015 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, उनकी फिल्मों ने सिल्वर लेपर्ड (लोकार्नो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल) जैसे पुरस्कार जीते हैं।
‘पाताल लोक 2′ में अभिनय
‘पाताल लोक’ के दूसरे सीज़न में, जाह्नू बरुआ ‘अंकल केन’ की भूमिका निभा रहे हैं। साथ में उनके अलावा इस सीरीज में जयदीप अहलावत, इश्वाक सिंह, गुल पनाग, तिलोत्तमा शोम और नागेश कुकुनूर जैसे कलाकार भी हैं। इस सीरीज की कहानी एक काल्पनिक नागा नेता और एक मंत्री की हत्या के इर्द-गिर्द घूमती है, जो नागालैंड की संस्कृति और राजनीति को दर्शाती है।
सिनेमा में योगदान
जहनू बरुआ की फिल्मों में सामाजिक मुद्दों, मानवीय संवेदनाओं और सांस्कृतिक विविधताओं का बेहतरीन चित्रण होता है। उनकी कहानी कहने की शैली सरल पर प्रभावशाली है, जो दर्शकों को गहराई से प्रभावित करती है। अपनी फिल्म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ (2005) में उन्होंने एक ऐसे प्रोफेसर की कहानी पेश की है, जो अल्जाइमर रोग से पीड़ित है और उसका मानना है कि उसने महात्मा गांधी की हत्या की है। इस फिल्म को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली थी।
जहनू बरुआ का सिनेमा समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से प्रस्तुत करता है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। उनकी फिल्मों में मानवीय भावनाओं का बेहतरीन चित्रण होता है, जो उन्हें भारतीय सिनेमा के अग्रणी निर्देशकों में से एक बनाता है। ‘पाताल लोक 2’ में उनके अभिनय ने उनके प्रशंसकों को एक नया अनुभव दिया है, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण है।