गदर 2 फिल्म में विलेन का रोल करने के लिए डायरेक्टर ने हिंदी सिनेमा से लेकर साउथ तक के एक्टर तलाशे लेकिन उन्हें गदर- एक प्रेम कथा की तरह अमरीश पुरी जैसा किरदार किसी में नजर नही आया. लंबी तलाश के बाद एक चेहरा नजर आया जिसका नाम मनीष वाधवा है. यह अभिनेता टीवी सीरीयल के जरिए पॉपुलर हुआ. टीवी के जरिए ही ये लोगों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब हुए. टीवी के ही एक शो के लिए इन्हें सालों तक गंजा रहना पड़ा…इन्होंने कई फिल्मों में भी काम किया लेकिन गदर 2 से जो पहचान मिली, उसने हमेशा के लिए इनकी जिंदगी बदल कर रख दी.
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कैसे पलट गई मनीष वाधवा की किस्मत?
हरियाणा के अंबाला में जन्में मनीष वाधवा के पिता एयरफोर्स में थे और माता गृहणी थी. एयरफोर्स से रिटायर होने के बाद मनीष के पिता ने अपने पैशन पर ध्यान देने का निर्णय लिया. वह फिल्म इंडस्ट्री में आना चाहते थे, लेकिन उनका सपना कभी पूरा न हो सका. संघर्ष करते हुए उन्होंने एक फिल्म बनाई लेकिन लेकिन वो फिल्म पर्दे पर आ नहीं सकी. वाधवा के पिता ने अपनी बनाई हुई फिल्म में मनीष से एक्टिंग करवाई. मनीष बताते हैं कि उस शूटिंग का अनुभव आज भी जहन में ताजा है.
वाधवा बताते है कि वह उस वक्त बहुत छोटी उम्र के थे और एक शीशे के सामने एक्टिंग कर रहे थे. उस वक्त उन्हें शूटिंग के श तक का ज्ञान नही था लेकिन इसने मन के अंदर कुछ जगा दिया. वह स्कूल और गली मोहल्लों के सत्संग में छोटे मोटे नाटक करने लगे. दूसरी ओर उनका मन क्रिकेट की ओर भी भागने लगा. मुंबई में पढ़ाई के दौरान उन्होंने क्रिकेट में अपने प्रदर्शन से जगह बना ली और इसी में वह अपना करियर बनाना चाहते थे. वहीं, नाटक से अभी भी वह खुद को अलग नहीं कर पा रहे थे.
एक दिन मनीष अपने लोकल नाटक का अभिनय कर वापस घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में स्कूटर सवार शिक्षक ने उन्हें रोक लिया और लिफ्ट दिया. मनीष अपने प्रोफेसर को देखकर सहम गए और सोचे अब क्लास लगेगी. तभी उनके प्रोफेसर ने उनके स्कूल न आने का कारण पूछा, तो मनीष ने बताया की वह अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर नाटक का रिहर्सल करते हैं. यह बात सुन मनीष के प्रोफेसर ने उन्हें दो दिन बाद अपने पास बुलाया और कॉलेज की तरफ से ड्रामा करने का ऑफर दिया. इस तरह मनीष ने अपना पहला थियेटर ड्रामा अंगूर खट्टे हैं लिखा. वह इसे डायरेक्ट नहीं कर पा रहे थे, इसलिए बाहर से डायरेक्टर को आमंत्रित किया गया और मनीष उनसे थिएटर डायरेक्शन की महत्वपूर्ण पहलुओं को सीखने लगे.
जब डायरेक्टर ने मनीष को मारी चप्पल
एक बार मनीष रिहर्सल कर रहे थे, तभी वहां मौजूद डायरेक्टर ने अचानक अपनी चप्पल मनीष के पैरों पर दे मारी और चिल्लाते हुए बोले कि अपने आप को संजय दत्त समझे हों, क्या ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जाता. मनीष सहम गए और उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है, जबकि वह तो अपने दोनो पैरों पर ही खड़े थे. कुछ समय बाद उन्हें अहसास हुआ की वह पैर सीधे रखकर चलने के लिए बोल रहे हैं. डायरेक्टर की कोल्हापुरी चप्पल ने मनीष के मन में एक छाप छोड़ दी और इस घटना से उन्होंने बहुत कुछ सीखा. इसके बाद वह थियेटर करने लगे और कॉलेज स्तर पर होने वाले आयोजनों में हिस्सा लेकर इनाम जीतने लगे. धीरे-धीरे पूरे सर्किल में उनके नाम की चर्चा होने लगी.
मनीष ने कमर्शियल थिएटर की तरफ किस्मत आजमाने का फैसला किया लेकिन पैसों की किल्लत उसमे भी थी, बस गुजारा चल जाता था. इसी दौरान उनकी किस्मत ने करवट ली और उनको एक बड़ा रोल मिला, जिसमें जया बच्चन मुख्य किरदार में थी. ड्रामा का नाम था- मां रिटायर होती है. इसमें जया बच्चन के बेटे का अभिनय मनीष ने किया. उनकी अच्छी एक्टिंग से प्ले के महारथी लोगों से उन्हें काफी प्रशंसा मिली.
उसी समय प्रकाश झा एक फिल्म बनाने की प्लानिग में जुटे थे. उन्होंने नेगेटिव रोल के लिए मनीष वाधवा को अप्रोच किया. ऑफर स्वीकार करने के बाद राहुल नाम से फिल्म बनकर तैयार हुई. प्रकाश झा को मनीष का काम बेहद पसंद आया और उन्होंने जमकर तारीफ की, लेकिन फिल्म के साथ यह मामला यह हुआ कि उसे ऑडियंस नहीं मिली. मनीष की पहली फिल्म के बारे में किसी को पता ही नहीं चला. ऐसी ही श्याम बेनेगल द्वारा बनाई गई फिल्म नेताजी सुभाष चंद्र बोस- ए फर्गोटन हीरो के साथ हुआ. इस फिल्म में मनीष ने इनायत का किरदार अदा किया था. रोल इतना मामूली था कि मनीष पर किसी की नजर ही नहीं पड़ी.
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मनीष ने सीरियल की तरफ किया रुख
फिल्म लाइन में बात न बनता देख मनीष ने टीवी सीरियल की तरफ रुख किया. उनका पहला शो आम्रपाली आया लेकिन उनकी प्रसिद्धि कोहिनूर सीरियल से बढ़ी. कोहिनूर को बड़े लेवल पर प्रमोट किया गया. मुंबई की सड़कों पर मनीष के बड़े बड़े बैनर लगवाए गए, जिसमे लंबे बाल वाली मनीष की फोटो के साथ लिखा होता था, कोहिनूर सेंट और सिनर. इन होर्डिंग्स पर आते जाते लगभग सभी का ध्यान केंद्रित होता था. एक बार डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा की नजर भी उस बैनर पर पड़ी और उन्होंने मनीष को कॉल कर शबरी फिल्म में रोल करने का प्रस्ताव रखा. फिल्म में काम करने का सपना रखने वाले मनीष के उत्साह का ठिकाना नहीं था. वह सोचने लगे इस फिल्म के बाद उनकी पहचान होगी, लोग जानेंगे, बड़ी बड़ी फिल्में मिलेंगी, मगर यह सपना, सपना ही रह गया. फिल्म बनकर तैयार हो गई लेकिन किन्हीं कारणों से उसे फिल्मी पर्दे पर उतारा नहीं जा सका. काम न बनता देख मनीष ने दोबारा से टीवी सीरियल की तरफ कदम बढ़ाए.
चाणक्य के किरदार से चमकी किस्मत
इसी बीच मनीष को एक दिन कॉल आया और उनसे सीरियल में चाणक्य या धनानंद के रोल के लिए ऑडिशन देने के लिए कहा गया. यहीं मनीष के करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. उन्हें धनानंद के रोल के लिए चुना गया. हालांकि, जब उन्होंने चाणक्य जैसे बड़े रोल के लिए अपना ऑडिशन दिया तो वहां मौजूद सीरियल मेकर्स ने उन्हें ही चाणक्य के अभिनय के लिए पसंद किया और यही से मनीष के कामयाबी की शुरुआत हो गई. इसमें मेकर्स की एक शर्त थी कि चाणक्य के अभिनय करने के लिए उन्हें अपने बाल मुंडवाने होंगे लेकिन मनीष को यह करना रिस्की लग रहा था, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि एक किरदार के कारण उन्हें आगे से काम मिलना बंद हो जाए. मनीष ने बताया की जब उन्होंने दिल पर पत्थर रख कर बाल मुंडवा दिए, उसके बाद से आज तक लोगों ने उनके सर पर बाल नही उगने दिए और मुझे ऐसे ही करेक्टर ऑफर हुए.
अनिल शर्मा ने गदर 2 का दिया ऑफर
लंबे समय तक टीवी पर प्रसारित होने वाले चाणक्य सीरियल ने देश भर में मनीष वाधवा की लोकप्रियता की धूम मचा दी. लोगों के मन में मनीष वाधवा की छवि चाणक्य जैसी हो गई और ताबड़तोड़ कई सीरियल में काम करने के बाद मनीष को गदर 2 फिल्म में विलेन का रोल मिला. गदर 2 फिल्म के डायरेक्टर को मनीष का चाणक्य वाला रोल काफी पसंद आया था और मनीष को हिंदी भाषा में अच्छी पकड़ थी और यही कारण था कि उन्होंने मनीष को फाइनल कर दिया. उसके बाद जो हुआ वह फिल्मी दुनिया के इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया. आज मनीष किसी पहचान के मोहताज नहीं है और अब उनके पास काम ही काम है.
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