हर फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज होने से पहले सेंसर बोर्ड के नियमों से गुजरना पड़ता है। सेंसर बोर्ड की मंजूरी के बाद ही फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज की जाती है। जिस फिल्म को सेंसर बोर्ड से मंजूरी नहीं मिलती, उसे रिलीज करने की इजाजत नहीं दी जाती। जिसके बाद निर्माता और निर्देशक की सारी मेहनत और पैसा बर्बाद हो जाता है। ऐसा ही कुछ दिलीप कुमार के साथ भी होने वाला था। जहां कई मौकों पर सेंसर बोर्ड ने बिना किसी आपत्ति और बिना किसी कट के फिल्में रिलीज कीं, वहीं दिलीप कुमार की एक फिल्म ऐसी भी थी, जिस पर सेंसर बोर्ड ने एक-दो नहीं बल्कि ढाई सौ कट लगाए थे। जिसके बाद तो मानो दिलीप कुमार के पैरों से जमीन खिसकने लगी। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंसर बोर्ड और दिलीप कुमार के बीच आना पड़ा।
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‘गंगा जमुना’ पर हंगामा
दिलीप कुमार इस फिल्म का नाम था ‘गंगा जमुना’, जो बतौर प्रोड्यूसर एक्टर की पहली फिल्म थी। गंगा जमुना 1961 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म आज भी हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन और क्लासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है। इतना ही नहीं, इसे दिलीप कुमार का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जाता है। दिलीप कुमार ने ‘गंगा जमुना’ में अपनी मेहनत की कमाई लगा दी थी। लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि ये फिल्म सेंसर के शिकंजे में इस कदर फंस जाएगी कि इसे रिलीज करना ही मुश्किल हो जाएगा। चलिये आपको बताते हैं कि आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या था जो सेंसर बोर्ड को चुभ गया?
सेंसर बोर्ड ने फिल्म को बताया था अश्लील
बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री के मुताबिक, उस वक्त बीवी केसकर सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। जब दिलीप कुमार ने अपनी फिल्म ‘गंगा जमुना’ अपने अधीन सेंसर बोर्ड को दिखाई तो बोर्ड ने हिंसा और अश्लीलता का हवाला देते हुए फिल्म में 250 कट लगाने को कहा। बिना कट के सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास और सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया। सेंसर बोर्ड ने दलील दी थी कि ‘गंगा जमुना’ में अत्यधिक हिंसा और अश्लीलता दिखाई गई है और इसकी जरूरत नहीं है। लेकिन दिलीप कुमार अपनी फिल्म में इतने कट के लिए तैयार नहीं थे।
जवाहरलाल नेहरू को मदद के लिए आना पड़ा
जब बात नहीं बनी तो दिलीप कुमार ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू से सहायता मांगी। इंदिरा गांधी ने दिलीप कुमार और नेहरू के बीच एक बैठक निर्धारित की। दिलीप कुमार ने अपनी सारी परेशानियां जवाहरलाल नेहरू को बताईं। उन्होंने सेंसर बोर्ड पर भी सवाल उठाए और इसकी कार्यप्रणाली के बारे में नेहरू से बात की। दिलीप कुमार ने दावा किया कि सेंसर बोर्ड तानाशाह की तरह काम कर रहा है और किसी की नहीं सुन रहा है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिलीप कुमार द्वारा उठाए गए सभी सवालों को ध्यान से सुना था। नतीजा यह हुआ कि जो बैठक 15 मिनट तक चलने वाली थी, वह करीब एक घंटे तक चली। इसके बाद नेहरू ने तुरंत दिलीप कुमार के नेतृत्व में बनी पहली फिल्म ‘गंगा जमुना’ को रिलीज़ करने की अनुमति दे दी। इतना ही नहीं, उन्होंने दिलीप द्वारा उठाए गए सवालों पर भी ध्यान दिया, जिसका नतीजा ये हुआ कि इसके बाद बीवी केसकर को मंत्रालय से हटा दिया गया।
दिलीप कुमार की फिल्म ‘गंगा जमुना’ सेंसर मुद्दे के कारण करीब 6 महीने तक अटकी रही थी। इस फिल्म को सेंसर से पास कराना दिलीप कुमार के लिए इतना मुश्किल था कि बाद में उन्होंने कोई फिल्म न बनाने का फैसला कर लिया। यही वजह थी कि यह दिलीप कुमार की एकमात्र फिल्म थी, जिसे उन्होंने प्रोड्यूस किया था।