एक्टर सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस की मिस्ट्री अब अलग मोड़ ले रही है. मंगलवार को इस केस में नई जीरो FIR दर्ज कराई गई है. ये टर्म सुर्ख़ियों में आते ही सवाल बन गया है. सबके मन में कंफ्यूजन है कि आखिर जीरो FIR होती क्या है. और ये कब लिखी जा सकती है. इन्हीं सवालों को मद्देनजर रखते हुए आज हम आपको संक्षेप में बतायेंगे जीरो FIR के बारे में सभी बातें.
क्या होती है FIR?
सबसे पहले जान लेते हैं कि FIR का मतलब क्या होता है. FIR को फर्स्ट इन्फोर्मेशन रिपोर्ट या हिंदी में प्राथमिकी भी कहते हैं. ये पुलिस द्वारा संगीन अपराध के मामलों में शिकायत या उपलब्ध सूचना के आधार पर तैयार की जाती है. आपराधिक प्रक्रिया की धारा 154 के अनुसार एक व्यक्ति द्वारा सूचना या शिकायत प्रदान की जाती है. ये व्यक्ति पीड़ित, गवाह, रिश्तेदार या दर्शक कोई भी हो सकता है. इससे पुलिस को अपराध दर्ज करने और जांच करने के लिए तत्काल कदम उठाने में मदद मिलती है.
जीरो FIR किसे कहते हैं ?
अब बात करते हैं जीरो FIR के बारे में. दरअसल दिसम्बर 2012 में निर्भया केस होने के बाद सरकार ने जस्टिस वर्मा कमिटी का गठन किया ताकि वो क्रिमिनल लॉ में कुछ संशोधन की सिफारिश कर सके. जिसके बाद कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय ने 10 मई 2013 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक एडवाइजरी जारी की. इसके अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति संबंधित क्षेत्र का न होने के बावजूद संज्ञेय अपराध के विवरण के साथ आता है तो पुलिस को जीरो FIR के नाम से शिकायत दर्ज करनी होगी. इसका मकसद बिना विलंब किये जल्द से जल्द जांच शुरू करने का है.
अन्यथा, पीड़ित पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ एक पुलिस स्टेशन से दूसरे में जाने में बहुत समय नष्ट हो जाता है, और अपराधी को भागने का मौका भी मिल जाता है. बता दें कि संज्ञेय अपराध वे हैं जिन्हें मजिस्ट्रेट से आदेश की आवश्यकता नहीं है, और जिसके लिए पुलिस को शिकायत या सूचना प्राप्त होने पर तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता होती है.
पुलिस अफसर मना कर दें तो..
ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि अगर पुलिस अफसर जीरो FIR दर्ज करने से मना कर दें तो क्या होगा? आपको बता दें कि पुलिस अफसर के मना करने पर व्यक्ति को सीधे पुलिस अधीक्षक को लिखने का अधिकार है जिसके बाद एसपी या तो जांच शुरू करते हैं या किसी अन्य अधिकारी को आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दे सकते हैं. जिस अधिकारी ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया, उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है. इसका उल्लंघन करने वाले अधिकारी पेनल्टी के अतिरिक्त दो साल की कैद की सजा काट सकते हैं.
आसाराम बापू केस में की गई थी दर्ज
साल 2013 में कुख्यात आसाराम बापू केस में जोधपुर में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के आरोप में जीरो FIR का इस्तेमाल किया गया था. इसके तहत आसाराम की गिरफ़्तारी हुई थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक ये FIR पीड़िता के मां बाप ने दर्ज करवाई थी.