बॉलीवुड में सेंसरशिप के कानून को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और सख्त करने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने सिनेमेटोग्राफ एक्ट 2021 को पेश किया और इस पर 2 जुलाई तक सुझाव भी मांगे थे। जब से ही सिनेमेटोग्राफ (अमेंडमेंट) बिल 2021 का ड्राफ्ट सार्वजनिक किया, तब से ही इस पर हंगामा हो रहा है। बॉलीवुड से जुड़ा एक बड़ा तबका इस संशोधन के विरोध में खड़ा है।
फरहान अख्तर, शबाना आजमी, अनुराग कश्यप और हंसल मेहता जैसे कई फिल्म उद्योग से जुड़े बड़े नामों ने इस संशोधन पर अपना विरोध जताया। इसके लिए एक ओपन लेटर भी लिखा गया है।
सवाल ये उठता है कि आखिर सिनेमेटोग्राफ एक्ट 2021 क्या है? इसमें ऐसा क्या है जिसका फिल्म जगत से जुड़े लोग विरोध कर रहे हैं? आइए आपको इसके बारे में बताते हैं…
क्या है सिनेमेटोग्राफ एक्ट 2021?
दरअसल, सरकार की तैयारी सिनेमेटोग्राफ एक्टर 1952 में बदलाव करने की है। इससे केंद्र सरकार को कुछ और पॉवर मिल जाएगा। संशोधन को सिनेमेटोग्राफ एक्ट 2021 के नाम से जाना जा रहा है।
दोबारा जांच के प्रावधान पर सबसे ज्यादा बवाल
एक्ट के नए प्रावधान के मुताबिक केंद्र सरकार को ये शक्ति मिल जाएगी कि वो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के फैसले को बदल सकती है। CBFC से सर्टिफिकेट मिलने के बाद फिल्मों की भी ‘दोबारा जांच’ की जा सकती है।
इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र फिल्म प्रमाणन बोर्ड के फैसले में बदलाव कर सकता है और उन फिल्मों की फिर से जांच करने की आदेश देता है जिन्हें रिलीज के लिए मंजूरी दे दी गई है। इस फैसले ने फिल्म निर्माताओं को परेशान कर दिया है। जिसकी वजह से फिल्म इंडस्ट्री के लोग इस कानून के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
सबसे ज्यादा विवाद इस प्रावधान को लेकर ही हो रहा है। मंत्रालय के मुताबिक प्रस्तावित संशोधन का ये मतलब है कि अगर कोई स्थिति ऐसी आती है, तो केंद्र के पास सेंसर बोर्ड के निर्णय को उलटने की शक्ति होगी।
सरकार को अगर शिकायत मिलती है कि फिल्म से देश की सुरक्षा, संप्रभुता, विदेशी देशों से संबंध, सार्वजनिक शांति, शिष्टता, नैतिकता का उल्लंघन हो रहा है या फिर इससे किसी की बदनामी हो रही है, अदालत का अपमान हो रहा है या किसी को भड़काने या उकसाने का काम किया जा रहा है, तो ऐसे में सरकार CBFC से उस फिल्म पर फिर विचार करने को कह सकती है।
मान लें कि अगर किसी फिल्म के रिलीज होने के बाद शिकायत की जाती है और सरकार उसकी पुन: समीक्षा करवाने को तैयार हो जाए, तो फिल्म पर बैन लग सकता है या फिर कोई सीन, गाना या संवाद हटाना पड़ सकता है। इससे फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर, उसके सैटेलाइट राइट्स, OTT राइट्स लेने वाले और प्रोड्यूसर को करोड़ों का नुकसान भी हो सकता है।
उम्र के आधार पर होगा सर्टिफिकेशन
इसके अलावा नए प्रावधान में फिल्मों को उम्र के आधार पर कैटेगिरी में भी बांटने की बात है। ये तो आप जानते ही हैं कि फिल्मों को अब तक 3 तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं, जिसमें U, U/A और A शामिल है। U फिल्म वो होती है जिसे कोई भी देख सकता है। वहीं U/A फिल्म को 12 साल से कम उम्र के बच्चे अपने माता पिता के साथ देख सकते हैं। इसके अलावा A सर्टिफिकेट वाली फिल्मों को वयस्क ही देख सकते है।
वहीं अब नए प्रावधानों के अनुसार सर्टिफिकेट को अब उम्र के आधार पर बांटा जाएगा, जिसके मुताबिक U/A 7+, U/A 13+ और U/A 16+ के रूप में फिल्मों को बांटने की बात कही गई। साथ में OTT प्लेटफॉर्म को भी सर्टिफिकेशन की जरूरत होगी।
पायरेसी पर भी कसी जाएगी लगाम
साथ ही पायरेसी पर लगाम लगाने के लिए भी इस संशोधन एक्ट में सख्त प्रावधान है। नए मसौदे के धारा 6AA को जोड़ने का भी प्रस्ताव है, जिसके मुताबिक बिना किसी अधिकार के फिल्मों की रिकॉर्डिंग करने पर बैन लग जाएगा। इसके उल्लंघन पर कम से कम तीन महीनों की जेल हो सकती है, जिसे बढ़ाकर 3 सालों तक भी किया जा सकता है। साथ में 3 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
पिटीशन में दिए गए ये 5 सुझाव
फिल्म जगत से जुड़े लोग उस प्रावधान को लेकर का ही विरोध कर रहे है, जिसके तहत सर्टिफिकेट के मिलने के बाद भी फिल्म की दोबारा जांच की जा सकती है। लेटर में इस एक्ट को लेकर पांच सुझाव भी सरकार को दिए गए…
– सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) एक्ट 2021 में CBFC की भूमिका को स्पष्ट किया जाए। एक ऐसी बॉडी के इसको देखा जाए जो फिल्मों को उसके कंटेंट के हिसाब से सर्टिफिकेट दें, ना कि फिल्म को सेंसर करें। उसमें काट-छांट करे।
– फिल्म के सर्टिफिकेट के रिव्यू या दोबारा जांच वाले मसौदे की जो शक्तियां सरकार को दी गई हैं, उसको रद्द किया जाए।
– मेकर्स पायरेसी को वास्तविक चुनौती है। लेकिन संशोधन में जो सजा का प्रावधान पेश किया गया, उससे ये चुनौती ठीक तरह से हल नहीं होगी।
– साथ में इस दौरान ये भी मांग की गई कि फिल्म सर्टिफिकेट अपेलेट ट्रिब्यूनल को दोबारा से बहाल किया जाए।
– मांग की गई है कि पब्लिक एग्जीबिशन की अधिनियम में स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए। इसके दायरे में सिर्फ कमर्शियल फिल्मों और नाटकीय प्रदर्शनियों से जुड़े राजस्व मॉडल को भी शामिल किया जाना चाहिए।