बॉलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस और बीजेपी सांसद किरण खेर एक गंभीर
बीमारी से जूझ रही हैं। उनको मल्टीपल मायलोमा नाम की बीमारी हुई, जो ब्लड कैंसर का ही एक प्रकार है। किरण खेर का इलाज
मुंबई के अस्ताल में चल रहा है। उनके बीमार होने की जानकारी चंडीगढ़ बीजेपी अध्यक्ष
ने दी।
उठ रहे थे गैरमौजूदगी पर सवाल
दरअसल, बीते दिनों चंडीगढ़ से सांसद किरण खेर की
गैरमौजूदगी को लेकर कांग्रेस लगातार सवाल उठा रही थीं। यही नहीं कांग्रेस सांसदों
ने तो उन्हें ढूंढने तक के लिए अभियान चला दिया। मंगलवार को एक पार्षद सतीश कैंथ
पार्कों, झाड़ियों, मंदिरों और गलियों
में मोमबत्ती लेकर उनको ढूंढते नजर आए। वहीं बुधवार को महिला कांग्रेस की प्रदेश
अध्यक्ष दीपा दुबे ने दूरबीन से झाड़ियों और पेड़ों पर सांसद किरण खेर को ढूंढा।
हाथ में फ्रैक्चर आने के बाद चला था बीमारी का पता
सूद ने बताया कि किरण खेर मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित हैं। दरअसल, 11 नवंबर को किरण खेर के हाथों में फ्रैक्चर आया था।
इसके बाद चंडीगढ़ में उनका इलाज कराया। इस दौरान जांच में ये बात सामने आई कि उनको
मल्टीपल मायलोमा है। 4 दिसंबर को वो मुंबई चली गईं। उन्हें हफ्ते में एक रात उनको
अस्पताल में बितानी पड़ती है।
आइए आपको बताते हैं
कि आखिर वो बीमारी क्या और कितनी खतरनाक है, जिसका
शिकार किरण खेर हो गई है…
जानिए इस बीमारी के बारे में…
मल्टीपल मायलोमा एक तरह का ब्लड कैंसर है। इस बीमारी की वजह से खून
में व्हाइट बल्ड सैल संबंधी दिक्कत होने लगती है। कैंसर कोशिकाएं बोन मैरो में जमा
होने लगती है और तंदुरुस्त कोशिकाएं को प्रभावित करती है। सभी तरह के ब्लड कैंसर
में मल्टीपल मायलोमा दूसरे नंबर पर आता है। कुछ समय पहले तक ये बीमारी लाइलाज थीं।
लेकिन अब इसका इलाज संभव है।
ये बीमारी मल्टीपल मायलोमा कैंसर रोग प्रतिरोधक प्रणाली को प्रभावित
करता है। इसलिए इसके काफी लक्षण होते हैं। बीमारी की वजह से गुर्दे/किडनी के रोगों
की आशंका बढ़ जाती है, क्योंकि ये कैंसर कोशिकाएं असामान्य प्रोटीन पैदा करती हैं। इस
बीमारी का एक प्रमुख लक्षण हड्डियों में लगातार
दर्द होना है।
मॉडल
और एक्ट्रेस लीजा रे भी इस बीमारी से पीड़ित हुई थीं। वैसे तो आम तौर पर ये बीमारी
50 साल बाद होती है, लेकिन इससे कम उम्र
के लोग भी इस बीमारा की चपेट में आ ही जाते हैं। आमतौर पर ये बीमारी महिलाओं को
ज्यादा प्रभावित होती है। इसमें सबसे ज्यादा असर बोन मैरो पर पड़ता है। ऐसे में इसकी पहचान
कराने के लिए बोन मैरो, खून, लीवर और गुर्दे की जांच करवाई जाती है।