रेमडेसिविर…ये दवा बीते कई दिनों से खासा चर्चाओं में बनी हुई हैं। देश में जैसे ही कोरोना महामारी के चलते हालात बिगड़ने लगे, इस दवा की डिमांड भी तेजी से बढ़ने लगी। देश में लगातार कई राज्यों से ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि इस दवा की कमी होने लगी है। रेमडेसिविर कोरोना के शुरुआती असर को कम करने में कारगर साबित मानी जा रही है, जिसके चलते दिन प्रतिदिन इसकी मांग में बढ़ोत्तरी हो रही है। वहीं कई जगहों से रेमडेसिविर की कालाबाजारी और भंडारण की खबरें लगातार सामने आ रहा है। तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या जिस दवाई की मांग इतनी बढ़ रही है, वो कोरोना के खिलाफ कितनी असरदार है?
क्या है रेमडेसिविर दवा?
रेमडेसिविर दवा एक एंटी वारयल दवा है, जो कि इमरजेंसी के हालातों में वारयल से बचने के लिए दी जाती है। इस दवा को भारत में सिप्ला, जायडस कैडिला, हेटोरो लैब और डॉ. रेड्डी लैब इंजेक्शन के रूप में बना रही है। इसके अलावा जुबलिएंट लाईफ और मायलन जैसी कंपनी भी इसे बनाने की कोशिश में है। इस दवा को हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए कैलिफोर्निया के गिलीड साइंसेज ने 2009 तैयार किया गया था। लेकिन दवा ने उस पर भी काम नहीं किया और 2014 तक इस पर रिसर्च चलता रहा। बाद में इसका इस्तेमाल इबोला वायरस के इलाज के लिए शुरू कर दिया गया।
कैसे करती हैं काम?
कोरोना वायरस इंसानी कोशिकाओं के अंदर मौजूद एंजाइम की मदद से से अपनी कॉपी बनाने लगता है। रेमडेसिविर एंजाइम को रोकने में मदद करता है, जिसकी वजह से कोरोना वायरस का विस्तार होना बंद हो जाता है। इससे रोग की गंभीरता कम होने लगती है, क्योंकि इस दवा की वजह से कोरोना वायरस अपना कॉपी नहीं बना पाता।
जब 2020 में कोरोना की पहली लहर आई थी, तब इस दवा का इस्तेमाल मरीजों पर किया गया और इसका पॉजिटिव असर भी दिखा। बीते साल दिसंबर में ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज को रेमडेसिविर दवा दी, जिसके बाद मरीज में सुधार देखा गया। यही नहीं उस मरीज में कोरोना वायरस का भी खात्मा हो गया। जिसके बाद कई देशों में रेमडेसिविर का उपयोग बढ़ा।
इस दवा को बनाने वाले वैज्ञानिकों का मानना है संक्रमण के शुरुआती दौर में रेमडेसिविर का असर कारगर साबित होता है। हालांकि 20 नंवबर 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना मरीज के इलाज में डॉक्टरों को रेमडेसिविर के उपयोग से बचने की सलाह दी थी। कई विशेषज्ञों का ये मानना है की इस दवा से किडनी और लीवर खराब होने के चांसेंस बढ़ जाते है।