बाजारों में चल रही मिलावट और फर्जी लेबलिंग का संज्ञान लेते हुए हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने एक बयान जारी किया है। यह बयान दूध और उससे बने उत्पादों के लिए है। लेकिन अब खाद्य सुरक्षा नियामक FSSAI ने अपने हालिया परामर्श को वापस ले लिया है, जिसमें खाद्य कारोबारियों को पैकेजिंग से ‘A1’ और ‘A2’ प्रकार के दूध और दूध से बने उत्पादों के दावों को हटाने का निर्देश दिया गया था। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने कहा कि हितधारकों के साथ आगे के परामर्श के लिए सलाह को वापस लिया गया है। आइए आपको बताते हैं क्या है ये पूरा मामला।
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क्या है मामला?
‘ए-1’ और ‘ए-2’ दूध में बीटा-केसीन प्रोटीन की संरचना अलग-अलग होती है, जो गाय की नस्ल के आधार पर अलग-अलग होती है। एक नए परामर्श में, नियामक ने कहा, 21 अगस्त, 2024 की सलाह… हितधारकों के साथ आगे के परामर्श और जुड़ाव के लिए वापस ली जाती है। एफएसएसएआई ने 21 अगस्त की अपनी एडवाइजरी में एफबीओ को अपने उत्पादों से ‘ए-1’ और ‘ए-2’ के दावों को हटाने के लिए कहा था। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को भी उत्पादों और वेबसाइट से इन दावों को तुरंत हटाने के लिए कहा गया था। नियामक ने कहा था कि ‘ए-1’ और ‘ए-2’ प्रकार के दूध और दूध उत्पादों के दावे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुरूप नहीं हैं।
कैसे करें सही प्रोडक्ट की पहचान
अब सवाल ये उठता है कि सही दूध का चयन कैसे किया जाए? घास और प्राकृतिक चारा खाने वाली गायों से A2 दूध खरीदने की सलाह दी जाती है। संतुलित आहार और उच्च गुणवत्ता वाला दूध प्रदान करने के लिए गिर गायों को घास खिलाया जाता है। इसके अतिरिक्त, ऐसे दूध की तलाश करें जिसमें खतरनाक एंटीबायोटिक्स या अतिरिक्त हार्मोन का इंजेक्शन न लगाया गया हो।
क्या इससे सेहत को कोई फायदा मिलता है?
कुछ अध्ययनों के अनुसार, A2, A1 से ज़्यादा सेहतमंद है, लेकिन यह अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग तरह से असर करता है। चीनी वयस्कों पर किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि नियमित दूध पीने से पेट की समस्याएँ होती हैं, जबकि A2 दूध पीने के बाद ऐसे कोई लक्षण नहीं देखे गए। A1 बीटा-कैसिन के पाचन के दौरान, बीटा-कैसोमोर्फिन-7 नामक पेप्टाइड निकलता है। यही वजह है कि लोगों को लगता है कि नियमित दूध A2 दूध की तुलना में कम सेहतमंद है। वहीं, कई शोध समूहों को यह भी लगता है कि बीटा-कैसोमोर्फिन-7 मधुमेह, हृदय रोग, शिशु मृत्यु दर, ऑटिज़्म और पाचन समस्याओं का कारण बनता है। हालाँकि, इस पर अभी भी शोध जारी है।
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