किसी भी बीमारी से लड़ने में हमारे शरीर की इम्यूनिटी काफी अहम रोल प्ले करती हैं। एक्टपर्ट्स बताते हैं कि जिन लोगों की इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होती है, वो किसी भी बीमारी से लड़ सकते हैं। वहीं कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग जल्दी किसी बीमारी की चपेट में आते हैं।
कोरोना महामारी के साथ भी ऐसा ही है। जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर होती है वो इस वायरस के चपेट में आसानी से आ जाते है और उनकी जान पर खतरा भी काफी ज्यादा रहता है। ऐसे में कोरोना से बचने के लिए अपनी इम्यूनिटी का ध्यान रखना काफी ज्यादा जरूरी हैं।
कोरोना काल में गिलोय का इस्तेमाल बढ़ा
कोरोना संक्रमण के इस दौर में लोग अपनी इम्यूनिटी को लेकर पहले से कई ज्यादा जागरूक हो गए हैं। इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग बनाए रखने के लिए लोग बीते कई महीनों से तरह तरह के तरीके अपना रहे हैं। कई लोग काढ़े का सेवन कर रहे हैं, तो कुछ ने अपनी डाइट में भी बदलाव किया। वहीं कोरोना काल के दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने आयुर्वेद का भी सहारा लिया।
इस दौरान गिलोय का इस्तेमाल काफी ज्यादा बढ़ गया। लंबे वक्त से बड़ी संख्या में लोग गिलोय का इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि इसका सेवन इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काफी असरदार माना गया। इस बीच एक ऐसी रिपोर्ट सामने आई, जिसके बाद वो लोग जो गिलोय का सेवन अब तक कर रहे थे, उनकी टेंशन बढ़ गई।
गिलोय से लीवर डैमेज होने का किया गया दावा
दरअसल, रिपोर्ट में कहा गया कि गिलोय लोगों के लीवर पर असर डाल रहा है। इसके ज्यादा इस्तेमाल से लोगों के डैमेज खराब हो रहे हैं। यही नहीं रिपोर्ट में की गई स्टडी में ये भी दावा किया गया कि मुंबई में 6 लोगों के लीवर गिलोय की वजह से खराब हुए। ये रिपोर्ट छपी थी जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी में। इसमें रिसर्च ‘इंडियन नेशनल एसोसिएशन फॉर दि स्टडी ऑफ दि लिवर’ के सहयोग से की गई थी।
अब जिसका इस्तेमाल लोग कोरोना से बचने के लिए कर रहे थे, उसको लेकर इस तरह के दावे किए जाएंगे, तो टेंशन होना लाजमी है। लेकिन क्या रिपोर्ट में किया गया दावा सही है? क्या सच में गिलोय लोगों के लीवर पर इस तरह असर डाल रहा है? ये एक बड़ा सवाल बन गया, जिस पर अब आयुष मंत्रालय ने सफाई दी है। मंत्रालय ने इस रिपोर्ट पर क्या कहा है, आइए जानते हैं…
आयुष मंत्रालय ने बताई दावे की सच्चाई
आयुष मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को भ्रामक बताया। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि गिलोय की वजह से लीवर डैमेज होने की बात महज अफवाह है। एक बयान में आयुष मंत्रालय ने कहा कि स्टडी से जुड़े लोग इसकी पूरी जानकारियां सही तरीके से देने में सफल नहीं हुए। गिलोर को लीवर के डैमेज से जोड़ा गया, जो भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली की ओर भ्रम फैला सकता है। लंब वक्त से आयुर्वेद में गिलोय का इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर हो रहा है, जो कई शारीरिक रोगों में असरदार भी साबित हुआ।
मंत्रालय ने कहा है कि इस रिसर्च में गिलोय और उसके गुणकारी तत्वों का सही से विश्लेषण नहीं हुआ। जो लोग इस शोध का हिस्सा थे, उनकी जिम्मेदारी ये सुनिश्चित करने की हैं कि मरीजों को जो जड़ी बूटी दी गई थीं वो गिलोय ही थीं, या फिर कोई दूसरी जड़ी बूटी थीं।
आगे ये भी कहा गया कि जड़ी बूटी की ठीक से पहचान नहीं होने की वजह से रिसर्च में गलत परिणाम देखने को मिलें। क्योंकि गिलोय जैसी दिखने वाली कई जड़ी बूटी हैं और अगर शोधकर्ता गलत जड़ी बूटी से रिसर्च करेंगे, तो परिणाम गलत ही निकलेंगे। रिसर्च के लिए सबसे पहले जरूरी था कि गिलोय की तरह दिखने वाली जहरीली बूटी को ध्यान में रखकर स्टैंडर्ड गाइडलाइन का पालन करते हुए सही पौधे की पहचान की जाती। और फिर शोध किया जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
मंत्रालय के अनुसार रिसर्च में कई तरह की खामियां है। जैसे कि इसमें नहीं बताया गया कि मरीजों को इसकी कितनी डोज दी गई। या मरीजों ने जड़ी बूटी का इस्तेमाल किसी दूसरी दवा के साथ तो नहीं किया। साथ ही मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में भी कुछ नहीं बताया गया। बिना पक्के सबूतों के अगर इस तरह की रिपोर्ट छापी जाएगीं, तो अफवाह फैलेगी और इससे आयुर्वेद की सदियों पुरानी परंपरा की बदनाम होगी।