अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा जमा लिया है। लगभग 2 दशक बाद एक बार फिर से अफगानिस्तान में तालिबान के आधिपत्य ने दुनिया को हैरान कर दिया है। तालिबान ने जितनी तेजी से अफगानिस्तान पर कब्जा किया, वैसा किसी ने नहीं सोचा था। तालिबान के 70 हजार लड़ाकों के सामने अफगानिस्तान की 3 लाख सेना ने हथियार डाल दिए।
सेना के कई अधिकारियों का तो यह भी कहना है कि नेताओं ने उन्हें बेच दिया। आतंकी संगठन तालिबान दुनिया के कई देशों में बैन है। लेकिन अब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही एशिया के कई देश उसके समर्थन में खड़े हो गए हैं। आखिर क्यों अफगान में तालिबान को सपोर्ट कर रहा चीन
तालिबान रुस में भी बैन है लेकिन रुस अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन कर रहा है। पाकिस्तान, तुर्की के साथ-साथ चीन ने भी तालिबान को समर्थन दे दिया है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद चीन की ओर से किसी भी तरह की विरोधी टिप्पणी नहीं की गई और ना ही चीन ने अपने राजदूत को वहां से निकाला।
खबरों की मानें तो अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल चीन पहुंचा था। जहां दोनों पक्षों के बीच बातचीत हुई और तालिबान ने आश्वासन दिया कि उनकी जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होगा। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर चीन के साथ तालिबान की नजदीकी क्यों बढ़ती जा रही है। ऐसी कौन सी वजहें हैं जो दोनों को करीब ला रही है।
तालिबान-चीन की करीबी के 5 बड़े कारण
- आतंकी संगठन तालिबान कट्टरपंथ और जिहाद को बढ़ावा देने वाला संगठन है। लेकिन अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद और चीन को खुश करने के लिए वह उइगर मुसलमानों के मामलों पर चीन का समर्थन करेगा। हाल ही में तालिबानी नेता मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर चीन पहुंचे थे जहां उन्होंने विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी। मुलाकात के बाद विदेश मंत्री ने कहा था कि तालिबान अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल उइगर चरमपंथियों के अड्डे के तौर पर नहीं होने देगा।
- अफगानिस्तान में प्राकृतिक तेल की खानें है। जिसकी खुदाई का अधिकार पहले ही चीन की कंपनियां ले चुकी है। चीन इससे काफी मुनाफा कमाता है। ऐसे में इस आर्थिक लाभ को देखते हुए चीन, तालिबान के साथ बेहतर संबंध बनाए रखना चाहता है।
- इससे इतर चीन को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट वन बेल्ट, वन रोड के लिए भी तालिबान की जरुरत पड़ेगी। क्योंकि इसका रास्ता अफगानिस्तान से होकर जाता है। भविष्य में यह रास्ता चीन के लिए काफी अहम साबित हो सकता है। ऐसे में चीन तालिबान को किसी भी कीमत पर नाराज करना नहीं चाहता।
- चीन ने कहा है कि वह अफगानिस्तान के पुननिर्माण के लिए निवेश मुहैया कराएगा। इसके साथ ही चीन तालिबान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता पाने में भी मदद करेगा। चीन का सपोर्ट रहा तो तालिबान को दुनिया में एक अलग पहचान भी मिलेगी।
- वहीं, अफगानिस्तान में लीथियम के साथ-साथ कई दुर्लभ खनिजों का भंडार है जो बैटरी बनाने में काम आते हैं। खबरों की मानें तो आने वाले कुछ ही सालों में इनकी कीमत 40 गुणा तक बढ़ने वाली है। ऐसे में चीन की नजर अफगानिस्तान के इन खनिज भंडार पर भी है। जो आने वाले समय में उसे इस क्षेत्र में महाशक्ति बना सकती है।