USAID Funding against India: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने हाल ही में अमेरिकी एजेंसी ‘यूएसएड’ (USAID) पर भारत को विभाजित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं को धन मुहैया कराने का आरोप लगाया है। उन्होंने सरकार से इस मामले की गहन जांच कराने और दोषियों को सजा देने की मांग की है। दुबे के इन आरोपों को अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग अधिकारी माइक बेंज के हालिया खुलासों से और बल मिला है।
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निशिकांत दुबे के आरोप- USAID Funding against India
संसद में शून्यकाल के दौरान निशिकांत दुबे ने कहा कि अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘यूएसएड’ को पूरी तरह बंद कर दिया है, क्योंकि यह संस्था वर्षों से विभिन्न सरकारों को गिराने के लिए धन का उपयोग कर रही थी। उन्होंने विपक्ष से सवाल किया कि क्या ‘यूएसएड’ ने जॉर्ज सोरोस की ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ को भारत को विभाजित करने के लिए 5000 करोड़ रुपये दिए थे। दुबे ने यह भी पूछा कि क्या ‘यूएसएड’ ने राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा दिया और क्या इसने तालिबान को धन मुहैया कराया था। उन्होंने आरोप लगाया कि यह संस्था आतंकवादी और नक्सलवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले संगठनों को धन देती है। दुबे ने सरकार से अनुरोध किया कि इनकी जांच की जाए और जो भी दोषी पाए जाएं, उन्हें जेल भेजा जाए।
माइक बेंज के खुलासे
अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग अधिकारी माइक बेंज ने आरोप लगाया है कि अमेरिका ने भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने मीडिया प्रभाव, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी आंदोलनों को वित्तीय सहायता के माध्यम से इन देशों की राजनीति को प्रभावित किया। बेंज का दावा है कि अमेरिकी सरकार से जुड़ी संस्थाओं ने ‘लोकतंत्र को बढ़ावा देने’ की आड़ में चुनावों को प्रभावित करने, सरकारों को अस्थिर करने और अपने रणनीतिक हितों के अनुरूप विदेशी सरकार बनाने का काम किया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बेंज ने आरोप लगाया कि अमेरिकी विदेश नीति से जुड़े इस कांड में ‘यूएसएड’, थिंक टैंक और बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां शामिल हैं। इन्होंने भारत के 2019 के आम चुनावों को प्रभावित करने का प्रयास किया। उनका कहना है कि इन समूहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ चुनावी नैरेटिव तैयार किया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी संगठनों ने इस धारणा को बढ़ावा दिया कि मोदी की राजनीतिक सफलता गलत सूचनाओं की वजह से है। इसके आधार पर व्यापक सेंसरशिप का वातावरण तैयार किया गया।
सोशल मीडिया पर दबाव का आरोप
बेंज का कहना है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने फेसबुक, वॉट्सऐप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर प्रभाव डालते हुए मोदी समर्थक कंटेंट पर अंकुश लगाने का प्रयास किया। वॉट्सऐप की जनवरी 2019 में मैसेज फॉरवर्डिंग की सीमा को कम करने की नीति को भाजपा की डिजिटल पहुंच रोकने का एक सटीक उदाहरण बताया गया। बेंज के अनुसार, अमेरिका समर्थित संस्थाओं ने भारत के डिजिटल स्पेस में हस्तक्षेप को सही ठहराने के लिए मोदी के समर्थकों को ऑनलाइन फर्जी खबरें फैलाने के लिए रणनीतिक रूप से फंसाया। उनका दावा है कि ‘यूएसएड’ से जुड़े संगठनों सहित कई अन्य संगठनों ने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया और डिजिटल फोरेंसिक समूहों के साथ मिलकर ऐसी रिपोर्टें बनाईं, जिनमें भारत को गलत सूचना के गंभीर संकट से जूझते हुए दिखाया गया। उनका तर्क है कि यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मोदी समर्थक बयानों को दबाने का एक बहाना बन गया।
बांग्लादेश में अमेरिकी हस्तक्षेप
बेंज ने दावा किया कि अमेरिका ने बांग्लादेश की राजनीति में भी हस्तक्षेप किया और प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को कमजोर करने के लिए ‘यूएसएड’ का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि यह कदम बांग्लादेश और चीन के बढ़ते आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी के कारण उठाया गया। बेंज के अनुसार, अमेरिकी संगठनों ने सांस्कृतिक और जातीय तनावों का उपयोग करके बांग्लादेश में विभाजन पैदा करने और सरकार विरोधी प्रदर्शनों को बढ़ावा देने की योजना बनाई। उन्होंने कहा कि अमेरिका की रणनीति चीन के प्रभाव को रोकने, सैन्य ठिकाने सुरक्षित करने और आर्थिक पहुंच बनाए रखने की थी।