बाबा साहब भीम राव अंबेडकर के बारे में पढ़े बिना हम भारत के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को नहीं समझ सकते हैं। भारत के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों में उनका योगदान बहुत बड़ा रहा है। जिस जाति में उनका जन्म हुआ, वह हिंदू वर्ण व्यवस्था में सबसे निचली मानी जाती थी। इसलिए उन्हें जन्म से ही समानता के लिए संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने जीवन भर सामाजिक संघर्ष किए और अपने समाज के स्वाभिमान के लिए लड़ते रहे। उनके सामाजिक विचारों में हमें दलित वंचित समाज को सामाजिक न्याय दिलाने का प्रयास दिखाई देता है। यही बात अब फेडरेशन ऑफ अंबेडकराइट एंड बुद्धिस्ट ऑर्गनाइजेशन (FABO) यूके के महासचिव पंकज शामकुंवर ने कही है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर डॉ. बीआर अंबेडकर को ‘प्रगतिशील विचारक’ बताया और भारतीय लोकतंत्र में उनके योगदान पर प्रकाश डाला।
“बीआर अंबेडकर एक प्रगतिशील विचारक”
यूके समूह के प्रमुख पंकज शामकुंवर ने बाबा साहब की प्रशांश करते हुए कहा, “डॉ. बीआर अंबेडकर एक प्रगतिशील विचारक थे। संविधान, जो हमारे लोकतंत्र का आधार है, ने हमें समानता, बंधुत्व और स्वतंत्रता के आधार पर काम करने वाले मौलिक अधिकार और सिद्धांत दिए हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “डॉ. बीआर अंबेडकर का भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़ा योगदान महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के रूप में है…आज दलित महिलाएं देश की अन्य महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, जो गर्व की बात है।”
68 वें परिनिर्वाण दिवस पर की प्रशंसा
यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग ने पिछले साल दिसंबर में बाबासाहेब डॉ. बीआर अंबेडकर के 68वें परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर एक स्मारक कार्यक्रम आयोजित किया था। यह कार्यक्रम लंदन के एल्डविच में इंडिया हाउस के अंबेडकर हॉल में फेडरेशन ऑफ अंबेडकराइट एंड बुद्धिस्ट ऑर्गनाइजेशन यूके (एफएबीओ) के सहयोग से आयोजित किया गया था।
ब्रिटेन में भारत के कार्यवाहक उच्चायुक्त सुजीत घोष ने कहा, “बाबासाहेब डॉ. बीआर अंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस एक दूरदर्शी नेता, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता की याद का एक पवित्र दिन है। डॉ. अंबेडकर की न्याय की गहरी भावना और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने एक ऐसे संविधान के निर्माण का मार्गदर्शन किया जिसने न केवल एक लोकतांत्रिक भारत की नींव रखी बल्कि सदियों पुरानी सामाजिक पदानुक्रम को खत्म करने का लक्ष्य भी रखा।”
उन्होंने आगे कहा, “डॉ. अंबेडकर का योगदान संविधान के प्रारूपण से कहीं आगे तक फैला हुआ है… उन्होंने माना कि शिक्षा एक शक्तिशाली समानता कारक के रूप में कार्य करती है, जातिगत बाधाओं को तोड़ती है और हाशिए पर पड़े लोगों में आत्म-सम्मान की भावना पैदा करती है।”
बात दें, 14 अप्रैल, 1891 को जन्मे बाबासाहेब अंबेडकर एक भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे, जिन्होंने दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया और महिलाओं और श्रमिकों के अधिकारों की वकालत की। भारतीय संविधान के निर्माता या जनक माने जाने वाले अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ।
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