Threat Of Nuclear War: दुनिया भर में परमाणु युद्ध के खतरे को लेकर चिंता तेज हो गई है, खासकर यूक्रेन संकट के बाद, जब रूस के हमलों के कारण एक बार फिर परमाणु युद्ध की संभावना के बारे में आशंकाएं व्यक्त की गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर परमाणु युद्ध होता है, तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे, और दुनिया के अधिकांश हिस्से में भयंकर तबाही मच सकती है। परमाणु युद्ध के विशेषज्ञ और खोजी पत्रकार एनी जैकबसन ने इस खतरे पर गहरी चिंता व्यक्त की है और बताया है कि अगर परमाणु युद्ध छिड़ता है, तो केवल कुछ ही देश बच पाएंगे।
एनी जैकबसन का भयावह अनुमान- Threat Of Nuclear War
पेंटागन की अनुसंधान एजेंसी DARPA पर अपने खोजी कार्य के लिए 2016 पुलित्जर फाइनलिस्ट ऐनी जैकबसन ने एक साक्षात्कार में परमाणु युद्ध के बाद होने वाली तबाही के बारे में गंभीर चेतावनी दी। उन्होंने बताया कि अगर परमाणु युद्ध शुरू होता है, तो केवल एक घंटे से भी कम समय में पांच अरब लोगों की जान जा सकती है। जैकबसन ने यह भी कहा कि इस विनाशकारी समय में केवल दो देश – न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया – ही बच सकते हैं।
परमाणु हमले के बाद की भयावह स्थिति
जैकबसन ने ‘द डायरी ऑफ ए सीईओ’ पॉडकास्ट पर एक इंटरव्यू में परमाणु युद्ध के विनाशकारी प्रभावों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि रूस से अमेरिका के पूर्वी तट तक एक बैलिस्टिक मिसाइल को पहुंचने में केवल 26 मिनट और 40 सेकंड लगते हैं। यह आंकड़ा 1959-60 में परमाणु भौतिक विज्ञानी हर्ब यॉर्क के द्वारा किए गए विश्लेषण पर आधारित है और आज भी वही स्थिति है।
उनका कहना है कि अगर परमाणु हमलों का आदान-प्रदान होता है, तो प्रभावित देशों के पास केवल कुछ ही समय होगा। जैकबसन ने यह भी बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति के पास केवल छह मिनट होते हैं, जिनमें वह जवाबी हमले के लिए “ब्लैक बुक” के विकल्पों में से एक को चुन सकते हैं। यह समय बहुत ही संकुचित है, और हर निर्णय का प्रभाव मानवता पर होगा।
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अकाल
जैकबसन ने इस स्थिति से संबंधित जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अकाल पर भी गंभीर चेतावनी दी। उनका कहना है कि परमाणु युद्ध के बाद पूरी दुनिया की जलवायु में बदलाव आ जाएगा, और इसका प्रभाव अत्यधिक विनाशकारी होगा। प्रोफेसर ब्रायन टून के शोध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बर्फ की चादरें दुनिया के अधिकांश हिस्से को ढक लेंगी और कुछ क्षेत्रों में 10 साल तक बर्फ जमा रहेगी। कृषि प्रणाली पूरी तरह से विफल हो जाएगी, और खाद्यान्न की भारी कमी हो जाएगी, जिससे करोड़ों लोग मारे जाएंगे।
जैकबसन ने यह भी बताया कि सूरज की रोशनी भी घातक हो सकती है, क्योंकि ओजोन परत इतनी क्षतिग्रस्त हो जाएगी कि लोग सूरज की रोशनी में बाहर नहीं रह पाएंगे। विकिरण विषाक्तता भी एक बड़ी समस्या बन सकती है। इससे बचने के लिए लोग न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया छोड़कर भूमिगत चले जाएंगे, क्योंकि इन दोनों देशों का भौगोलिक अलगाव और स्थिर जलवायु उन्हें परमाणु सर्दी से बचने में मदद करेगा।
न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया का विशेष स्थान
विशेषज्ञों का मानना है कि न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया अन्य देशों के मुकाबले परमाणु गिरावट के प्रभावों को बेहतर तरीके से झेल सकते हैं। इन दोनों देशों का भौगोलिक अलगाव और स्थिर जलवायु उनके लिए इस तरह की आपात स्थिति में खाद्य उत्पादन प्रणालियों को बनाए रखने में सहायक होगा। जैकबसन ने इस विचार को स्वीकार करते हुए कहा कि इन देशों में कृषि पैदावार बनी रह सकती है, जो परमाणु युद्ध के बाद एक महत्वपूर्ण संसाधन साबित होगी।
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