बंदूक और हिंसा के बल पर भले ही तालिबान फिर से अफगानिस्तान पर कब्जा करने में कामयाब हो गया हो। लेकिन ऐसा नहीं है कि खेल यही पर खत्म हो गया। तालिबान के खिलाफ अफगान में विरोध बढ़ने लगा है। एक ओर तो तालिबान के खिलाफ वहां की जनता सड़कों पर उतरने लगी है, तो दूसरी ओर तालिबान के विरोधी भी एकजुट होते हुए भी नजर आ रहे हैं।
खबरें ऐसी सामने आ रही है कि तालिबान के खिलाफ रणनीति तैयार करने के लिए विरोधी ताकतें पंजशीर घाटी में इकट्ठा हुई हैं। जिनकी अगुवाई कर रहे हैं अहमद मसूद। वो तालिबानियों को मात दे चुके अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। आइए आपको इन नामों के बारे में बताते हैं, जो तालिबान के विरोध लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट होते हुए फिलहाल नजर आ रहे हैं।
अमरुल्ला सालेह
इसमें पहला नाम है अमरुल्ला सालेह का। सालेह अफगानिस्तान के फर्स्ट वाइस प्रेसिडेंट थे। तालिबान के कब्जे और राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने के बाद संविधान के तहत उन्होंने खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया। ढाई दशकों से तालिबान के खिलाफ लड़ रहे सालेह ने कहा है कि वो अफगानिस्तान के लोगों के साथ में खड़े हुए हैं और ये लड़ाई अब तक खत्म नहीं हुई।
अहमद मसूद
इसमें दूसरा नाम है अहमद मसूद का। पंजशीर वो इकलौता प्रांत है अफगानिस्तान का, लजहां तालिबान अब तक कब्जा नहीं कर सका। यहां पर तालिबान से लोहा लेने वालों में नॉर्दर्न अलायंस के अहमद मसूद का नाम कापी अहम है। अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद अफगानिस्तान की सबसे ताकतवर शख्सितों में से एक थे। साल 2001 में अल कायदा के साथ तालिबान ने मिलकर उनको मार डाला था। जिसके बाद अब उनके बेटे अहमद मसूद तालिबान को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। मसूद ने हाल ही में अरुल्ला सालेह से मुलाकात भी की थी, जिसकी तस्वीर सामने आई थी।
अब्दुल रशीद दोस्तम
इस लिस्ट में एक और नाम अब्दुल रशीद दोस्तम का है। 67 साल के अब्दुल रशीद दोस्तम अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति रह चुके हैं। साल 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को गिराने में दोस्तम ने अमेरिकी सेना की काफी मदद की थी। उनका अफगानिस्तान के उत्तरी इलाकों में काफी दबदबा है। रिपोर्ट में ये बताया जा रहा है कि वो अभी उज्बेकिस्तान में हैं।
अता मुहम्मद नूर
इसके अलावा जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर अता मुहम्मद नूर भी तालिबान के खिलाफ मोर्चा संभालने वाले लोगों में शामिल हैं। साल 1996 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली तो अता मुहम्मद नूर ने ही अहमद शाह मसूद के साथ मिलकर तालिबान के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाया था। हालांकि फिलहाल बल्ख प्रांत पर तालिबान के कब्जा कर लिया है, जिसके बाद माना जा रहा है कि वो ताजिकिस्तान के इलाके में चले गए।