दो दशकों के बाद अफगानिस्तान में तालिबान का एक बार फिर से अपना कब्जा जमा लिया। अफगानिस्तान में एक बार फिर से तालिबान का युग लौटकर आ गया है। जिसने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया। अमेरिकी सेना के पीछे हटते ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर इतनी तेजी से कब्जा किया कि वहां की सरकार को उसके आगे घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा।
तालिबान राज के लौटते ही अफगान में रह रहे लोग एक बार फिर दहशत में आ गए हैं। बड़ी संख्या में लोग अफगानिस्तान से जान बचाकर निकलने की कोशिश में हैं।
इस बीच सवाल ये भी उठते रहते हैं कि आखिर तालिबान कमाई करता कैसे है? आतंकी संगठन के पास इतना पैसा है? और किन देशों से उसे मदद मिलती है?
तालिबान के पास है कितना पैसा?
वैसे तो तालिबान के पास कितना पैसा है और वो कितना खर्च करता है, इसके बारे में किसी को पता नहीं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट है, जिसमें तालिबान की कमाई पर कुछ जानकारी बताई गई है। UN की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान की सालाना कमाई 1.5 बिलियन डॉलर यानी कि सवा खरब रुपये से ज्यादा है। 10 साल यानी एक दशक पहले तालिबान की कमाई 300 मिलियन डॉलर थी। अब ये 5 गुने से भी अधिक बढ़ गई है। भारतीय रुपयों के हिसाब से ये रकम एक अरब 11 करोड़ 32 लाख 55 हजार है।
ऐसी होती है तालिबान की कमाई
रिपोर्ट बताती है कि तालिबान आपराधिक गतिविधियों से कमाता है। जिसमें ड्रग्स तस्करी, अफीम का उत्पादन, जबरन वसूली जैसे काम शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार ड्रग तस्करी से तालिबान ने 460 मिलियन डॉलर (34 अरब रुपये) की कमाए की। ऐसी ही अरबों रुपये की कमाई अवैध खनन से भी हो सकती है। अपने कब्जे वाले इलाकों से भारी भरकम टैक्स वसूलता है।
इसके अलावा तालिबान की कमाई का एक जरिया डोनेशन भी है। जिसमें उसके अमीर समर्थक और कई फाउंडेशन शामिल हैं। यूएन इन्हें नॉन-गवर्मेंटल चैरिटेबल फाउंडेशन नेटवर्क का नाम देता है।
इन 3 देशों से मिलती है मदद
साथ ही तालिबान को कुछ देशों का साथ मिलने की भी बातें सामने आती हैं। अमेरिकी अधिकारी कहते हैं कि रूस ने तालिबान को सिर्फ पैसे और हथियार ही नहीं, बल्कि हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी की। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के कमांडर रह चुके जनरल जॉन निकोलस ने मास्को पर सरेआम इसके आरोप भी लगाए थे। वहीं कुछ दूसरे एक्सपर्ट तालिबान को पाकिस्तान और ईरान से भी आर्थिक मदद मिलने की बात कहते हैं। हालांकि इसके कोई पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं।
विश्व बैंक के आंकड़ों बताते हैं कि साल 2018 में अफगान सरकार ने 11 अरब डॉलर यानी 8 खरब रुपये खर्च किए थे। इसमें से 80 फीसदी पैसा विदेशी मदद से आया था। जिसका मतलब है कि सरकार के पास अपना पैसा सिर्फ 2 खरब रुपये के आसपास ही था। वहीं तालिबान ने साल भर में ही सवा खरब रुपये से ज्यादा जुटा लिए।