669 बच्चों की जान बचाने वाले Sir Nicholas Winton की कहानी, जो 50 सालों बाद कुछ यूं दुनिया के सामने आई थीं!

By Ruchi Mehra | Posted on 13th Dec 2021 | विदेश
sir nicholas winton, story

सेकेंड वर्ल्ड वॉर की कई कहानियां आप आज तक पढ़ते-सुनते हुए आ रहे हैं। सभी को मालूम है कि कैसे इस विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों पर अत्याचार हुए। लेकिन इस दौरान कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने बेकसूर यहूदियों को बचाने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। इनमें से ही एक नाम था सर निकोलस विंटन का, जिनके बारे में बहुत कम लोग आज भी जानते हैं। 

क्या आपको मालूम है कि सर निकोलस विंटन वो शख्स थे, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 669 यहूदी बच्चों को बचाया था। 50 सालों तक तो उनकी कहानी से दुनिया अनजान रही थी। आज हम आपको इन्हीं सर निकोलस विंटन की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं... 

स्टॉकब्रोकर थे विंटन

विंटन यहूदी-जर्मन परिवार में पैदा हुए थे। वो लंदन में एक सफल स्टॉकब्रोकर थे और एक खुशहाल जीवन जीया करते थे। शुरू से ही विंटन सामाजिक कार्यों में भी शामिल थे। 1938 में वर्ल्ड वॉर 2 से ठीक पहले विंटन दोस्तों के संग छुट्टियां मनाने के लिए स्विट्जरलैंड जाने का प्लान कर रहे थे। लेकिन इससे पहले उनके एक मार्टिन ने बताया कि वो विस्थापित यहूदियों की मदद करने के लिए Prague में है, जिसके लिए वो उनके साथ छुट्टियां मनाने नहीं जा सकता।

इसके बाद विंटन भी Prague पहुंच गए। वो यहां की हालत देखकर हैरान हो गए। विंटन ने देखा कि कैसे नाजियों ने पूरे देश पर कंट्रोल कर लिया।  यहूदी घरों से विस्थापित हो रहे थे। उनके काम-काज सबकुछ बंद हो गए थे और वो शिविरों में रहने को मजबूर है। इस दौरान ज्यादातर यहूदी परिवार देश से जा रहे थे।

बच्चों को निकालने के लिए शुरू किया काम

तब विंटन को इन लोगों के लिए कुछ करने का एहसास हुआ। वो चाहते थे कि अगर सभी यहूदियों को बाहर ना निकाल सके, तो कम से कम बच्चों को तो निकाल दें। फिर वो अपने दोस्तों के साथ जिस होटल में रुके हुए थे वहां पर उन्होंने एक कार्यालय खोला। इसके बाद विंटन ने बच्चों को देश से निकालने के लिए एक Registration कराना शुरू किया। धीरे-धीरे Prague के लोग उनको जानने लगे और अपने बच्चों को देश से निकालने के लिए पंजीकरण भी कराने लगे। विंटन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस दौरान हालात ऐसे हो जाते थे कि वो पर्याप्त नींद तक नहीं ले पाते। क्योंकि उनके कमरे के बाहर लोगों की लाइनें लगी हुई होती थी। 

कई देशों से की अपील, लेकिन... 

अपने दोस्तों के साथ मिलकर सर निकोलस विंटन ने सैकड़ों बच्चों का रजिस्ट्रेशन किया। फिर वो पूरी लिस्ट लेकर लंदन वापस आ गए। विंटन ने पैसे इकट्ठा करने शुरू किए और साथ ही साथ बच्चों को शरण देने के लिए ब्रिटिश सरकार को समझाने की भी कोशिश की। 

बच्चों को शरण देने के लिए विंटन ने कई देशों को चिट्ठियां लिखीं, लेकिन उन्हें इसमें कामयाब नहीं मिल रही थी। क्योंकि हर देश ने शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाओं को बंद कर रखा था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने यहूदी बच्चों के लिए एक कार्यक्रम किंडरट्रांसपोर्ट नाम का शुरू किया। इसके तहत ब्रिटेन ने 17 साल से कम उम्र के उन बच्चों को स्वीकार करने की बात कही, जिसका एक मेजबान परिवार है। 

ब्रिटिश सरकार से इजाजत मिलने के बाद विंटन ने 50 पाउंड वापसी शुल्क और ट्रांसपोर्ट के लिए पैसे जुटाना शुरू किया। साथ में ऐसे परिवारों को भी तलाशा जो बच्चों को गोद ले सकें। इसके लिए पत्रिकाओं के विज्ञापनों, चर्चों और आराधनालय बुलेटिनों में बच्चों की तस्वीरें पोस्ट की गई। अंत में निकोलस विंटन ने बच्चों को ले जाने के लिए दोस्तों के साथ 8 ट्रेनों का इंतेजाम किया। 7 ट्रेनों तो 669 बच्चों को लेकर इंग्लैंड पहुंच गई, लेकिन आखिरी ट्रेन निकल पाती उससे पहले ही युद्ध छिड़ गया। इस ट्रेन में 250 बच्चे थे। 

50 सालों बाद पत्नी को पता चली कहानी

वर्ल्ड वॉर खत्म होने के बाद विंटन की शादी हुई और उनके बच्चे हुए। वो अपनी सामान्य जिंदगी जी रहे थे। किसी को भी नहीं मालूम था कि विंटन ने बच्चों को बचाने के लिए क्या कुछ किया। 50 साल का वक्त बीत गया और फिर एक दिन उनकी पत्नी को की स्क्रैपबुक मिली, जिसमें विंटन द्वारा बचाए गए बच्चों की एक लिस्ट थी। पत्नी ने विंटन से जब इसके बारे में पूछा, तो उन्होंने पूरी कहानी बताई। 

तब उनकी पत्नी ने कहा कि उनकी कहानी दुनिया को जाननी चाहिए। इसके बाद विंटन की पत्नी बिना उन्हें पता लगे ही एक होलोकॉस्ट इतिहासकार के संपर्क में आ गई। साथ ही उन बच्चों से भी संपर्क किया, जिनके नाम स्क्रैपबुक में थे। वो 250 बच्चों तक पहुंच गए, जिन्हें ये खुद नहीं मालूम था कि विंटन ने उनकी जिंदगी बचाई। 

शो में गेस्ट के तौर पर बुलाए गए विंटन, लेकिन...

साल 1988 में BBC के द लाइफ नाम के शो में विंटन को एक गेस्ट के तौर पर बुलाया गया। तब उनको खुद को ये नहीं पता था कि ये शो उनके बारे में ही था। शो के होस्ट ने विंटन की स्क्रैपबुक निकाली और उनके काम के बारे में दर्शकों को बताया। साथ ही ये भी पूछा कि दर्शकों में से कौन वो लोग हैं, जो अपने जिंदगी का श्रेय विंटन को देना चाहेंगे। इसके बाद वहां मौजूद सभी लोग एक साथ खड़े हो गए। ये वो सभी बच्चे थे जिनकी जिंदगी विंटन ने बचाई थी। तब उनकी कहानी पूरी दुनिया के सामने आई थी। 

सर निकोलस विंटन को ब्रिटेन का सिंडलर भी कहा जाता है। जिन बच्चों को विंटन ने बचाया था उनको निकी के बच्चे भी कहा जाता है। मानवता के लिए किए गए काम को लेकर विंटन को 2002 में क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय से नाइटहुड प्राप्त किया। वहीं 2010 में उनको ब्रिटिश हीरो ऑफ द होलोकॉस्ट नामित किया गया था। 2014 में विंटन को चेक गणराज्य के सर्वोच्च सम्मान ऑर्डर ऑफ द व्हाइट लायन से सम्मानित किया गया। 1 जुलाई 2015 को विंटन का निधन हो गया। वो तब 106 साल के थे। 

Ruchi Mehra
Ruchi Mehra
रूचि एक समर्पित लेखक है जो किसी भी विषय पर लिखना पसंद करती है। रूचि पॉलिटिक्स, एंटरटेनमेंट, हेल्थ, विदेश, राज्य की खबरों पर एक समान पकड़ रखती हैं। रूचि को वेब और टीवी का कुल मिलाकर 3 साल का अनुभव है। रुचि नेड्रिक न्यूज में बतौर लेखक काम करती है।

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

अन्य

प्रचलित खबरें

© 2022 Nedrick News. All Rights Reserved.