Pope Francis Successor: पूरी दुनिया इस समय गहरे शोक में डूबी है। 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस, जो विश्वभर में कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु थे, अब हमारे बीच नहीं रहे। फेफड़ों के संक्रमण से जूझने के बाद उन्होंने रोम के जेमेली अस्पताल में अंतिम सांस ली। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 22 से 24 अप्रैल तक तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा भी की है।
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — अगला पोप कौन होगा? और क्या इस बार वेटिकन के सर्वोच्च पद पर कोई भारतीय, एशियाई या अफ्रीकी चेहरा देखने को मिलेगा?
1300 साल बाद पहली बार गैर-यूरोपीय पोप (Pope Francis Successor)
गौर करने वाली बात यह है कि पोप फ्रांसिस पिछले 1300 वर्षों में पहले गैर-यूरोपीय पोप बने थे। उनके चयन ने यह उम्मीद जगाई थी कि चर्च अब यूरोप के दायरे से बाहर सोच सकता है। आज, एक बार फिर चर्च के दरवाजे नए अवसर के लिए खुले हैं। लेकिन क्या सच में एशिया या अफ्रीका से कोई इस बार वेटिकन की गद्दी पर बैठेगा?
क्यों नहीं बना अब तक कोई एशियाई या अफ्रीकी पोप?
पोप का चुनाव बेहद गोपनीय तरीके से वेटिकन में होता है। इस बार 138 कार्डिनल्स इस चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे, जिनमें से केवल चार भारत से हैं। कार्डिनल्स वे वरिष्ठ धर्मगुरु होते हैं जिन्हें स्वयं पोप नियुक्त करते हैं, और वही मिलकर अगला पोप चुनते हैं।
बीते वर्षों में यह चर्चा तेज हुई है कि भारत या अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से किसी धर्मगुरु को मौका क्यों नहीं मिलता, खासकर तब जब इन महाद्वीपों में कैथोलिक अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में 1.4 बिलियन कैथोलिक्स एशिया और अफ्रीका में रहते हैं — और इस गिनती में चीन शामिल नहीं है। वहीं यूरोप और अमेरिका में न सिर्फ जनसंख्या घट रही है, बल्कि लोग तेजी से धर्म से भी दूर हो रहे हैं।
समस्या कहां है?
असल में, नए पोप का चुनाव जिन कार्डिनल्स के हाथों होता है, उनमें से सबसे ज्यादा यूरोप से आते हैं। चूंकि यूरोपियन कार्डिनल्स का दबदबा है, इसलिए हर बार फैसला भी यूरोप के पक्ष में झुक जाता है। भारत से महज चार और अफ्रीका से भी कुछ सीमित कार्डिनल्स के होने से उनकी दावेदारी कमजोर रह जाती है।
दूसरी बड़ी वजह यह मानी जाती है कि एशिया और अफ्रीका के कार्डिनल्स का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव अपेक्षाकृत सीमित है। पोप न केवल धार्मिक नेता होता है, बल्कि एक वैश्विक राजनयिक चेहरा भी होता है। वेटिकन अक्सर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मध्यस्थ की भूमिका निभाता है, और इसी वजह से शक्तिशाली देश भी चाहते हैं कि पोप ऐसा हो जो उनके दृष्टिकोण को समझे — भले ही वे सीधे दखल न दें।
वेटिकन में यूरोपीय वर्चस्व क्यों कायम है?
पोप फ्रांसिस के कार्यकाल के दौरान यूरोप के बाहर से कार्डिनल्स की संख्या बढ़ी थी, फिर भी आज वेटिकन की सत्ता संरचना में यूरोप का वर्चस्व बना हुआ है। वेटिकन मुख्यालय रोम में स्थित है, और इतिहास में सदियों तक यूरोप ही कैथोलिक चर्च का केंद्र रहा है। यही परंपरा अब भी चुनावी प्रक्रिया में दिखाई देती है।
एक और बड़ी वजह चीन का मामला है। चीन में करोड़ों कैथोलिक हैं, लेकिन वहां की सरकार पोप को मान्यता नहीं देती। केवल “अंडरग्राउंड चर्च” के अनुयायियों को ही वेटिकन आधिकारिक गिनती में शामिल करता है। इस कारण एशिया के भीतर भी पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता।
दावेदारों की सूची में कौन सबसे आगे?
फिलीपींस के कार्डिनल लुइस टैगल को सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है, जो एशिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं इटली के कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन भी अपने अनुभव और वेटिकन में गहरी पकड़ के चलते मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। अफ्रीका से घाना के कार्डिनल पीटर टर्कसन का नाम भी चर्चा में है, जो सामाजिक न्याय के बड़े पैरोकार माने जाते हैं। इसके अलावा हंगरी के कार्डिनल पीटर एर्डो और इटली के एंजेलो स्कोला भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं, जो परंपरावादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भविष्य की राह
विश्वभर में बदलती धार्मिक जनसंख्या के बीच अब बहस और तेज हो रही है कि एशिया और अफ्रीका को चर्च में ज्यादा प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिल रहा। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर इन क्षेत्रों से कार्डिनल्स की संख्या में इजाफा होता है, तो भविष्य में किसी भारतीय या अफ्रीकी पोप का सपना भी साकार हो सकता है।
दावेदारों की सूची में कौन सबसे आगे?
अगर दावेदारों की बात करें तो एशिया का प्रतिनिधित्व करने वाले फिलीपींस के कार्डिनल लुइस टैगले को सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। वहीं इटली के कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन भी अपने अनुभव और वेटिकन में गहरी पकड़ के चलते मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। अफ्रीका से घाना के कार्डिनल पीटर टर्कसन का नाम भी चर्चा में है, जो सामाजिक न्याय के बड़े पैरोकार माने जाते हैं। इसके अलावा हंगरी के कार्डिनल पीटर एर्डो और इटली के एंजेलो स्कोला भी संभावित उम्मीदवारों में शामिल हैं, जो परंपरावादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं।