शाहबाज शरीफ ने बीते सोमवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ ली. नई सरकार के सत्ता में आते ही पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारने शुरू कर दिए हैं. दरअसल, पाकिस्तान ने फैसला किया है कि वह इस साल यानी 23 मार्च 2024 को अपना नेशनल डे दिल्ली में मनाएगा. पाकिस्तान चार साल में पहली बार भारत में अपना नेशनल डे मनाने जा रहा है. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने अपने राजदूत को वापस बुला लिया था. लेकिन अब धीरे-धीरे आर्थिक संकट में डूबे पाकिस्तान का भारत के प्रति रवैया सुधरता नजर आ रहा है.
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कैसे मनाया जाएगा पाकिस्तान का नेशनल डे
पाकिस्तान के नेशनल डे के दौरान दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. इसमें विदेशी अधिकारी और भारतीय अधिकारी दोनों शामिल हो सकते हैं. आमतौर पर ऐसे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कोई मंत्री या राज्य मंत्री होता है. इस अवसर पर, दोनों देशों के राष्ट्रगान बजाए जाएंगे, इसके बाद पाकिस्तान के उच्चायुक्त और मुख्य अतिथि भाषण भी देंगे.
पाकिस्तान में 23 मार्च का इतिहास
अगर हम 23 मार्च के इतिहास की बाते करें तो आजादी से पूर्व 1940 में इसी दिन मुस्लिम लीग द्वारा मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग की मांग की गई थी और लाहौर प्रस्ताव को अपनाया गया था. अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने 22 मार्च से 24 मार्च, 1940 तक लाहौर में अपने आम सत्र के दौरान लाहौर प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसमें औपचारिक रूप से भारत के मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राज्य का आह्वान किया गया था.
हालाँकि, उस समय इस प्रस्ताव में ‘पाकिस्तान’ शब्द नहीं जोड़ा गया था लेकिन जब पाकिस्तान बना तो इसे ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ नाम दिया गया. इस प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया कि भारत के कुछ हिस्सों, जैसे उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, उन क्षेत्रों को मिलाकर ‘स्वतंत्र राज्य’ का गठन किया जाना चाहिए. इसके अलावा पाकिस्तान के लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन 23 मार्च 1956 को पाकिस्तान का संविधान भी लागू हुआ था. जिसके बाद पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था.
प्रस्ताव पर जिन्ना के विचार
मोहम्मद अली जिन्ना इस प्रस्ताव के पक्ष में थे. उनका मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग धर्मों के लोग हैं. दोनों का रहन-सहन, खान-पान और रीति-रिवाज बिल्कुल अलग हैं. दोनों के बीच कई सांस्कृतिक और नैतिक अंतर हैं. ऐसे में दोनों को एक साथ रखना असंतोष पैदा कर सकता है. वहीं, मुस्लिम लीग की तरफ से काफी ज़ोर देने के बाद यह प्रस्ताव 24 मार्च 1940 को पारित हो गया, जिसके बाद इसे 1941 में मुस्लिम लीग के संविधान में अपनाया गया था. इस सुझाव के आधार पर, मुस्लिम लीग ने 1946 में मुसलमानों के लिए दो के बजाय एक देश की मांग करने का फैसला लिया था.