जब भी किसी देश में तानाशाही होती है, तो वहां की जनता को हर वक्त जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना होता है। सेना किसी को भी मारने से पहले नहीं सोचती, और लोगों को अपने तानाशाह की इजाजत बिना सांस लेने की भी अनुमति नहीं होती। लेकिन कहते है न कि हर चीज का अंत होता है। भले ही इसके लिए सालों का इंतजार ही क्यों न करना पड़े। लेकिन अंत में हर संघर्ष का अंत होता है…बस जरूरत है तो एक चिंगारी की, जो इन तानाशाहों की पूरी बादशाहत को जलाकर खाक करने के लिए काफी है। एक ऐसी ही चिंगारी जली थी दिसंबर 2010 की एक सर्द रात में..जिसने कई देशों की तानाशाही को हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
दिसंबर 2010 की बात है, उत्तर अफ्रीका के एक छोटे से देश ट्यूनिशिया में सैन्य तानाशाही थी। वहां पर लोगों को व्यापार करने के लिए सरकार से परमिशन लेनी होती थी। लेकिन बहुत से ऐसे लोग थे जिनके पास परमिशन लेने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे, तो वो लोग बिना परमिशन ही बिजनस करते थे। इन्ही में एक था सिदी बुआजिद कस्बे में रहने वाला मोहम्मद बुआजिजि। पेशे से फल बेचा करता था। घर में 7 लोग थे, पिता की मौत हो चुकी थी और अकेला कमाने वाला था।
मोहम्मद बुआजिजि ने खुद को लगा ली आग और…
17 दिसंबर 2010 को एक नगर निगम अफसर फैदा इंस्पेक्शन के लिए कस्बे में निकली थी। लेकिन बुआजिजि के पास लाइसेंस न होने के कारण फैदा ने बुआजिजि की रेहड़ी को जब्त कर लिया। बुआजिजि और बाकि के ट्यूनिशिया के लोगों के लिए ये काफी आम घटना थी, लेकिन उस दिन बुआजिजि को शायद ट्यूनिशिया की ही नहीं कई देशों की किस्मत बदलनी थी।
वो सरकारी दफ्तर गया, जिससे उसकी रेहड़ी को छोड़ा जा सके। लेकिन जब शाम तक ऐसा नहीं किया गया तो उसने वहीं सरकारी दफ्तर के सामने खुद पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा ली। लेकिन किसी को ये नहीं पता था कि ये आग कई देशों की सरकारें हिलाने वाली है।
फिर शुरू हुआ विद्रोह
इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और 18 दिसंबर की सुबह हजारों की संख्या में लोग ट्यूनिशिया की तानाशाही सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। इस विद्रोह को दबाने की भी कोशिश की गई, लेकिन लोगों में गुस्सा काफी था। ये संख्या हजार से लाखों में बदल गई। इस विद्रोह ने 23 साल से सत्ता पर जमे अल आबेदीन बेन अली की सत्ता को हिला दिया। 4 जनवरी को बुआजिजि की मौत ने तो इस विद्रोह को और हवा दी और बेन अली को 14 जनवरी को अपने परिवार के साथ देश छोड़केर भागना पड़ा, ये अरब क्रांति की केवल शुरुआत थी।
कई देशों की खत्म हुई तानाशाही
इसके बाद मिश्र की जनता भी 25 जनवरी 2011 को वहां के तानाशाह राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ सड़क पर उतर आई और 18 दिनों के युद्ध के बाद मुबारक को सत्ता छोड़नी पड़ी। इस विरोध प्रर्दशन में करीब 800 लोगों की मौत हुई थी लेकिन मिश्र की जनता ने साफ कहा कि वो मुबारक को किसी कीमत पर नहीं छोड़ेगी। मुबारक और उसके दो बेटों पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाया गया और उन्हें जेल भेजा गया।
इसके बाद बारी आई लीबिया की, यहां करीब 42 सालों से मोहम्मद अली गद्दाफी की तानाशाही चल रही थी। गद्दाफी के खिलाफ अमेरिका ने भी वहां के विद्रोह का समर्थन किया और मार्च 2011 में नेटो ने लिबिया पर हमला कर दिया। 30 अक्टूबर 2011 को गद्दाफी को सरेआम लीबिया की जनता ने पीट पीट कर मार डाला और वहीं से गद्दाफी की तानाशाही का भी अंत हुआ।
तो वहीं यमन में भी करीब 30 सालों से तानाशाही कर रहे शासल अली अबदुल्ला के खिलाफ जनता ने युद्ध छेड़ दिया और 2012 में सत्ता छोड़नी पड़ी।
ये युद्ध को अरब क्रांति के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके कारण कई देशों की सरकारें बदल गई। यानि की ट्यूनिशिया के एक छोटे से कस्बे में एक शख्स की लगाई गई आग के कारण कई देश तानाशाही से आजाद हो गए।बुआजिजि की इस शहादत को आज भी लोग सलाम करते है।