Mauritius PM Navinchandra Ramgoolam: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय यात्रा पर मॉरीशस पहुंचे, जहां उनका भव्य स्वागत मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने किया। दिलचस्प बात यह है कि रामगुलाम का भारत से विशेष संबंध है। उनके परिवार की जड़ें बिहार के भोजपुर जिले से जुड़ी हुई हैं और उनके पूर्वजों का मॉरीशस पहुंचने का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ा है। आइए जानते हैं उनके परिवार की यात्रा और मॉरीशस की राजनीति में उनकी भूमिका।
गुलाम परिवार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Mauritius PM Navinchandra Ramgoolam)
मॉरीशस एक छोटा सा द्वीपीय देश है, जिसकी कुल आबादी करीब 12 लाख है। इतिहास की बात करें तो 1715 में इस पर फ्रांस का कब्जा था, लेकिन 1803 में हुए युद्ध के बाद ब्रिटिश शासन ने इसे अपने अधीन कर लिया। इसके बाद, अंग्रेजों ने भारत से बड़ी संख्या में मजदूरों को मॉरीशस भेजा।
1834 से 1924 तक लाखों भारतीय मजदूर मॉरीशस पहुंचे। इसी दौरान, 1896 में ‘द हिंदुस्तान’ जहाज के जरिए बिहार के भोजपुर जिले के हरिगांव से 18 वर्षीय मोहित रामगुलाम को मॉरीशस ले जाया गया।
रामगुलाम परिवार की संघर्षमयी यात्रा
मोहित रामगुलाम के भाई भी मॉरीशस आए थे। मोहित ने शुरू में एक साधारण मजदूर के रूप में काम किया, लेकिन बाद में उन्हें क्वीन विक्टोरिया सुगर इस्टेट में नौकरी मिल गई। वहीं उनकी मुलाकात विधवा बासमती से हुई, जिनसे उन्होंने 1898 में शादी कर ली। इस दंपति के बेटे शिवसागर का जन्म 1900 में हुआ। मोहित ने मॉरीशस में भोजपुरी भाषा और हिंदू रीति-रिवाजों को बढ़ावा देने का कार्य किया।
शिवसागर रामगुलाम: मजदूर से नेता बनने तक की कहानी
शिवसागर महज 12 साल के थे, जब उनके पिता मोहित का निधन हो गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मां से छिपाकर स्कूल में दाखिला लिया और बाद में इंग्लैंड जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। वहीं, उनकी मुलाकात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं से हुई और वे उनके विचारों से प्रभावित हुए।
मॉरीशस लौटकर मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई
1935 में शिवसागर मॉरीशस लौटे और मजदूरों के हक के लिए लड़ाई शुरू की। उन्होंने वोटिंग राइट्स के लिए आंदोलन किया और मॉरीशस लेबर पार्टी की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। 1940 से 1953 के बीच उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए और श्रमिक वर्ग के अधिकारों की रक्षा की।
मॉरीशस को आजादी दिलाने में अहम भूमिका
शिवसागर रामगुलाम के नेतृत्व में मॉरीशस की जनता को संगठित किया गया और 12 मार्च 1968 को मॉरीशस को स्वतंत्रता मिली। उन्हें मॉरीशस का राष्ट्रपिता घोषित किया गया और स्वतंत्रता के बाद वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने शासनकाल में मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की शुरुआत की, जिससे वे जनता में ‘अंकल रामगुलाम’ के नाम से मशहूर हो गए।
परिवार की राजनीतिक विरासत
1982 तक शिवसागर की पार्टी का प्रभाव बना रहा, लेकिन बाद में उनकी पार्टी चुनाव हार गई। शिवसागर के निधन के बाद उनके बेटे नवीनचंद्र रामगुलाम ने राजनीतिक विरासत संभाली। नवीनचंद्र 1995-2000 और 2005-2014 तक मॉरीशस के प्रधानमंत्री रहे। 2024 में वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। आज भी रामगुलाम परिवार का मॉरीशस की राजनीति में गहरा प्रभाव है।
भारतीय मूल के लोगों का मॉरीशस पर प्रभाव
मॉरीशस की करीब 70% आबादी भारतीय मूल की है, जिसमें भोजपुरी भाषा प्रमुखता से बोली जाती है। धार्मिक दृष्टि से करीब 50% हिंदू, 32% ईसाई और 15% मुस्लिम समुदाय के लोग यहां निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति और परंपराओं का मॉरीशस की सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव देखा जाता है।