Malaysia Mosque Temple Controversy: मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में स्थित देवी श्री पथराकालीअम्मन मंदिर को हटाने के प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। यह मंदिर 130 साल पुराना है और इसे हटाकर मस्जिद बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। इस मुद्दे ने मलेशिया में धार्मिक समानता और शहरी पुनर्विकास के दावों को लेकर विवाद उत्पन्न कर दिया है। मलेशिया में पहले भी गैर-मुस्लिम समुदाय के धार्मिक भेदभाव की शिकायतें सामने आती रही हैं, हालांकि, सरकार ने हमेशा इन दावों को खारिज किया है।
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मंदिर का स्थान और विवाद की शुरुआत- Malaysia Mosque Temple Controversy
देवी श्री पथराकालीअम्मन मंदिर, जो कुआलालंपुर के मध्य में स्थित है, फ्लैटों और कपड़ा दुकानों के बीच एक छोटी सी लेकिन ऐतिहासिक जगह पर बना हुआ है। इस मंदिर की जमीन मलेशिया की प्रमुख कपड़ा कंपनी जैकेल ने खरीद ली है। जैकेल का इरादा इस स्थान पर एक नई मस्जिद बनाने का है, जिसके लिए शिलान्यास प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम द्वारा इस गुरुवार को किया जाएगा। यह मस्जिद भारत के तमिल मुस्लिम समुदाय की 140 साल पुरानी मस्जिद के पास बनाई जाएगी, जो इस क्षेत्र में एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
मंदिर और मस्जिद के बीच विवाद
यह मंदिर भी 130 साल पुराना है और इसकी नींव मुस्लिम मस्जिद के बनने के केवल 10 साल बाद रखी गई थी। जैकेल कंपनी के दिवंगत संस्थापक मोहम्मद जैकेल अहमद ने इस भूमि को खरीदने का फैसला लिया था ताकि इस क्षेत्र में चौथी मस्जिद बनाई जा सके, जिसे मुस्लिम समुदाय को उपहार स्वरूप प्रदान किया जा सके। हालांकि, इस मुद्दे पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया था और अब मंदिर हटाने का प्रस्ताव सामने आया है, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक विवाद बढ़ गए हैं।
कानूनी स्थिति और आलोचनाएं
मलेशिया में इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी बहस हो रही है। लॉयर्स फॉर लिबर्टी के कार्यकारी निदेशक जैद मालेक ने प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम के इस निर्णय पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “मंदिर को हटाने और मस्जिद बनाने की प्रक्रिया को जल्दबाजी में क्यों लिया जा रहा है?” उन्होंने इस मुद्दे को धार्मिक उत्पीड़न की तरह पेश करने पर भी आपत्ति जताई और इसे अस्वीकार्य बताया। उनका मानना था कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय और स्थान दिया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम का बयान
प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने मंदिर को हटाने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि यह मंदिर पुराना और कानूनी दृष्टिकोण से अनुमोदित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाएगा, और इसके बाद ही मस्जिद का निर्माण किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने इस विवाद को सांस्कृतिक टकराव से बचने की कोशिश करते हुए धार्मिक सौहार्द की दिशा में कदम बढ़ाने की बात की। उन्होंने वकीलों पर आरोप लगाया कि वे इस मुद्दे को भ्रामक तरीके से पेश कर रहे हैं।
हिंदू समुदाय की प्रतिक्रियाएं
मंदिर हटाने के प्रस्ताव पर हिंदू नेताओं ने गहरी चिंता व्यक्त की है। जातीय भारतीय पार्टी उरीमाई के नेता पी रामासामी ने इस फैसले को अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि यह मंदिर मलेशिया की स्वतंत्रता से पहले का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। उन्होंने कहा कि “किसी पुरानी और स्थापित हिंदू मंदिर को हटाना, खासकर एक ऐसे देश में जो खुद को बहुजातीय और बहुधार्मिक होने पर गर्व करता है, बिल्कुल गलत है।”
भूमि स्वामित्व पर विवाद
मलेशिया के कुछ मलय मुसलमानों ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना था कि मंदिर की भूमि अब निजी स्वामित्व में है, और भूमि मालिक को इस क्षेत्र में मस्जिद बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनके अनुसार, दिवंगत मोहम्मद जैकेल अहमद ने जो धार्मिक दृष्टिकोण अपनाया था, उसे पूरा करने का अधिकार भूमि मालिक को मिलना चाहिए।