इजरायल से तनाव के बीच ईरान को शनिवार को एक बड़े साइबर हमले का सामना करना पड़ा, जिसमें उसके परमाणु संयंत्रों को भी निशाना बनाया गया। इस साइबर हमले से ईरानी सरकार की तीनों शाखाएँ प्रभावित हुई हैं। वैसे, पिछले कुछ दशकों में ईरान पर साइबर हमलों (Cyber Attack on Iran) की कई घटनाएँ हुई हैं, जिनमें कभी इजरायल तो कभी अमेरिका का नाम भी आता रहा है। इन साइबर हमलों का उद्देश्य ईरान की परमाणु और सैन्य क्षमताओं को कमज़ोर करना या उसे ख़तरनाक तकनीक तक पहुँचने से रोकना था। आइए हम आपको बताते हैं कि कब-कब इजरायल ने ईरान पर साइबर हमले किए। इन हमलों में ‘स्टक्सनेट’, ‘स्टार्स’ और ‘वाइपर’ जैसे कोड नाम शामिल हैं।
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स्टक्सनेट (Stuxnet) – 2010
स्टक्सनेट दुनिया का पहला ज्ञात साइबर हथियार था, जिसे इज़राइल और अमेरिका ने मिलकर विकसित किया था। इसका उद्देश्य ईरान के नतांज़ परमाणु संयंत्र में स्थापित सेंट्रीफ्यूज को निशाना बनाना था, जिसका उपयोग यूरेनियम संवर्धन के लिए किया जाता था। स्टक्सनेट वायरस ने सेंट्रीफ्यूज को धीमा करके या तेज़ करके नुकसान पहुँचाया, जिससे ईरान का परमाणु कार्यक्रम कई साल पीछे चला गया।
- यह वायरस मुख्य रूप से विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम को प्रभावित करता था और बिना किसी बाहरी इंटरनेट कनेक्शन के भी काम कर सकता था।
- यह अटैक बेहद जटिल और परिष्कृत था, जो साइबर युद्ध के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
स्टार्स (Stars) – 2011
2011 में ईरान ने दावा किया था कि उसके औद्योगिक सिस्टम पर एक और साइबर हमला हुआ था, जिसे उसने ‘स्टार्स’ नाम दिया था। हालांकि यह हमला स्टक्सनेट जितना प्रभावी नहीं था, लेकिन ईरान ने इसे एक बड़ा ख़तरा माना।
- ‘स्टार्स’ नामक वायरस को ईरान के अधिकारियों ने एक कम प्रभावशाली हमले के रूप में वर्गीकृत किया, लेकिन इसने देश की साइबर सुरक्षा कमजोरियों को उजागर किया।
वाइपर (Wiper) – 2012
वाइपर एक और खतरनाक साइबर हमला था जिसने ईरान के तेल उद्योग को प्रभावित किया। इस हमले ने ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी और उसके मंत्रालय के कंप्यूटर सिस्टम को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया।
- वाइपर ने कंप्यूटरों की हार्ड ड्राइव को पूरी तरह से मिटा दिया, जिससे डेटा की स्थायी हानि हुई।
- यह अटैक तेल उद्योग को निशाना बनाने वाला था, जिसने ईरान की आर्थिक स्थिति पर असर डाला।
शामून (Shamoon) – 2012 और 2016
शमून वाइपर जैसा ही एक और बड़ा साइबर हमला था। यह हमला मुख्य रूप से सऊदी अरामको पर केंद्रित था, लेकिन इसे ईरान के खिलाफ़ सीधे जवाब के रूप में देखा गया। शमून ने सऊदी अरब और ईरान के बीच बढ़ते साइबर युद्ध की ओर इशारा किया।
- यह मैलवेयर तेल उद्योग की कंपनियों पर हमला करता था और डेटा को मिटा देता था।
- शामून का नया संस्करण 2016 में फिर से सामने आया, जिससे यह साबित हुआ कि साइबर अटैक की घटनाएँ लगातार हो रही थीं।
डूज़ू (Duzu) और अन्य साइबर हमले
इसके अलावा, ईरान पर डुज़ू और अन्य अज्ञात साइबर हथियारों का उपयोग करके कई छोटे और बड़े साइबर हमले किए गए हैं। इन हमलों का उद्देश्य ईरान की परमाणु, रक्षा और आर्थिक प्रणालियों को नुकसान पहुँचाना था।
बता दें, ईरान पर हुए साइबर हमलों में सबसे प्रमुख भूमिका इजरायल की मानी जाती है और कई बार इसमें अमेरिका का भी हाथ रहा है। स्टक्सनेट, स्टार्स, वाइपर और शमून जैसे साइबर हथियारों का ईरान के संवेदनशील परमाणु और औद्योगिक ढांचों पर गहरा असर पड़ा है। इन हमलों ने साइबर युद्ध को एक नया आयाम दिया और देशों के बीच पारंपरिक युद्ध की जगह एक नई तरह की लड़ाई की शुरुआत की।