इस वक्त दुनियाभर की नजर रूस और यूक्रेन पर टिकी हुई हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्स्क और लुगंस्क को अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी है, जिसके बाद विवाद और गहरा गया। पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन विवाद को लेकर हलचल बढ़ गई है। जहां एक ओर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाने की बात कही, तो वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी इस मसले पर मीटिंग की जा रही है।
लेकिन इस बीच एक सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर रूस-यूक्रेन के बीच विवाद की जड़ क्या हैं? क्यों रूस-यूक्रेन के बीच जंग जैसे हालात बन गए? कोई भी विवाद हो, वो यूं ही आकर नहीं खड़ा नहीं हो जाता। उसके पीछे इतिहास जरूर होता है। आज हम रूस-यूक्रेन के विवाद से जुड़ा इतिहास जानेंगे।
कहां से शुरू हुआ विवाद?
यूक्रेन संकट का बीज तब ही बो गया था जब 1991 में सोवियत संघ के विघटन हुआ। 1922 से 1991 तक सोवियत संघ अस्तित्व में रहा था। इसको USSR-United states of Soviet Union कहा जाता था। दुनिया का ये पहला समाजवादी सरकार थी। फिर सोवियत संघ कई तरह की समस्याओं से जूझने लगा, जिसे आंतरिक कलह चरम पर पहुंच गई। भारी उथल-पुथल के बाद 26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ 15 टुकड़ों में बंट गया।
रूस पूर्व सोवियत संघ का सबसे बड़ा देश था और वास्तविक उत्तराधिकारी भी बना रहा। हालांकि जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो अमेरिका और रूसी राष्ट्रपति में पूर्वी यूरोप में नाटो के विस्तार नहीं करने की आंशिक सहमति बनी थीं। इसको कोई समझौता नहीं हुआ था। अमेरिका के कूटनीतिक प्रयासों का ये नतीजा रहा कि सोवियत संघ से अलग हुए पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में शामिल होने लगे। विवाद यही से गहराया। नाटो अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे 30 देश शामिल हैं।
2004 में कई ऐसे देश जो सोवियत संघ का हिस्सा थे और रूसी की सीमा या फिर पड़ोसी रहे वो नाटो में शामिल हुए। इसमें बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटाविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवानिया जैसे देशों के नाम शामिल रहे।
यूक्रेन बनना चाहता है नाटो देश का हिस्सा…
अब ताजा विवाद ये है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है, जिसके विरोध में रूस है। क्योंकि रूस के कई पड़ोसी देश पहले ही नाटो का हिस्सा बन चुके हैं। अगर यूक्रेन भी इसमें शामिल हो जाता है तो रूस हर ओर से अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा और ऐसे में उस पर अमेरिका जैसे देश हावी हो जाएंगे।
यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया और रूस भविष्य में उस पर हमला करेगा, तो समझौते के मुताबिक समूह के सभी 30 देश इसे अपने खिलाफ हमला मानेंगे और यूक्रेन की मदद करेंगे। क्योंकि इसमें शामिल किसी एक देश पर हमला नाटो पर हमला माना जाता है।
वहीं बात इसकी करें कि यूक्रेन नाटो देश में शामिल क्यों होना चाहता है। तो यूक्रेन शुरू से ही मानता है कि वो रूस से कभी अपने दम पर मुकाबला नहीं कर सकता। वो इसलिए एक ऐसे सैन्य संगठन का हिस्सा बनना चाहता है, जो उसकी आजादी को महफूज रखें और इसके लिए नाटो से बेहतर संगठन कोई दूसरा नहीं हो सकता।