Indian immigrants deported from US: “उन्होंने हमें हथकड़ी पहनाई। हमें बताया गया कि वो हमें वेलकम सेंटर ले जा रहे हैं। लेकिन कुछ देर बाद हमारे सामने सेना का विमान खड़ा था।” यह बयान 18 वर्षीय ख़ुशप्रीत सिंह का है, जो अमेरिका से भारत वापस भेजे जाने के बाद कुरुक्षेत्र, हरियाणा पहुंचे।
45 लाख रुपये की यात्रा, हथकड़ी में वापसी- Indian immigrants deported from US
छह महीने पहले, ख़ुशप्रीत सिंह ने अमेरिका में एक बेहतर भविष्य की उम्मीद में 45 लाख रुपये खर्च किए थे। हालांकि, अमेरिकी सरकार ने उन्हें अवैध प्रवासी करार देते हुए वापस भेज दिया। ख़ुशप्रीत अकेले नहीं थे जिनका यह हश्र हुआ। बुधवार को 104 भारतीयों को एक अमेरिकी सैन्य विमान से भारत भेजा गया।
इनमें से अधिकांश भारतीयों की कहानी ख़ुशप्रीत से मिलती-जुलती थी। इन लोगों ने अमेरिका जाने के लिए बड़ी रकम खर्च की, लेकिन अंततः उन्हें हथकड़ी पहनाकर निर्वासित कर दिया गया।
भारतीय संसद में गूंजा मामला
भारतीयों के साथ इस व्यवहार को लेकर संसद में सवाल उठाए गए। कांग्रेस ने सवाल किया कि जब कोलंबिया जैसा छोटा देश अमेरिका को कड़ी प्रतिक्रिया दे सकता है, तो भारत सरकार क्यों नहीं?
कोलंबिया ने अपने नागरिकों के निर्वासन के तरीके का विरोध किया, जबकि भारत ने इसे एक पुरानी प्रक्रिया बताते हुए स्वीकार कर लिया। कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो ने अपने नागरिकों को सैन्य विमानों में भेजे जाने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कोलंबिया के प्रवासियों को वापस लाने के लिए नागरिक विमानों की मांग की और उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने की बात कही।
कोलंबिया का सख्त रुख़
जनवरी में जब अमेरिका ने कोलंबियाई नागरिकों को सैन्य विमानों से भेजा, तो राष्ट्रपति पेत्रो ने उन्हें अपने देश में उतरने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके नागरिकों को अपराधियों की तरह नहीं, बल्कि सम्मान के साथ लाया जाएगा।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोलंबिया के इस रवैये से नाराज़ हो गए और उन्होंने कोलंबिया से आयातित उत्पादों पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की घोषणा कर दी।
बाद में व्हाइट हाउस और कोलंबिया सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें कोलंबिया ने अपने प्रवासियों को वापस लाने के लिए अपने वायुसेना के विमान भेजे। पेत्रो ने कहा कि यह सुनिश्चित करेगा कि उनके नागरिकों का सम्मान बना रहे।
भारत की प्रतिक्रिया और सवाल
भारत में अमेरिकी कार्रवाई को लेकर जनता और विपक्षी दलों में नाराजगी देखी गई। जब अमेरिका ने निर्वासित भारतीयों की तस्वीरें जारी कीं, जिनमें वे हथकड़ियों और बेड़ियों में नज़र आए, तो यह मामला तूल पकड़ गया।
अमेरिकी बॉर्डर पेट्रोल के चीफ माइकल डब्ल्यू बैंक्स ने इन तस्वीरों के साथ एक पोस्ट में लिखा, “भारत के अवैध प्रवासियों को सफलतापूर्वक निर्वासित किया गया है। अगर आप अवैध रूप से आएंगे, तो इसी तरह वापस भेजे जाएंगे।”
कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “क्या यह व्यवहार मानवीय है या आतंकवादियों जैसा? भारत सरकार को अमेरिका से सख्त जवाब मांगना चाहिए।” आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने पूछा कि क्या भारत सरकार अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए खुद विमान भेजेगी?
भारत की कूटनीतिक नीति
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने इस पूरे घटनाक्रम को भारत के लिए शर्मनाक करार दिया। उन्होंने लिखा कि जब मेक्सिको और कोलंबिया ने अपने नागरिकों को हथकड़ी पहनाकर लाने से इनकार कर दिया, तो भारत ने न केवल इस अपमान को स्वीकार किया, बल्कि इसे अमेरिका के साथ ‘मज़बूत सहयोग’ बताया।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में बताया कि यह प्रक्रिया कोई नई नहीं है और 2012 से ही लागू है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अमेरिका से लगातार बातचीत कर रहा है ताकि निर्वासित भारतीयों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए।
भारत और अमेरिका के संबंध
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और कोलंबिया की तुलना नहीं की जा सकती। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली के प्रोफेसर मनन द्विवेदी के अनुसार, “भारत हमेशा अमेरिका के साथ अपने संबंध सुधारने पर ज़ोर देता है, जबकि कोलंबिया की सरकार वामपंथी झुकाव रखती है और अमेरिका के प्रति आक्रामक रुख़ अपना सकती है।”
जेएनयू की प्रोफेसर अपराजिता कश्यप के अनुसार, “भारत की नीति कोलंबिया से अलग है क्योंकि सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियां भिन्न हैं। भारत अमेरिकी प्रतिक्रिया से बचना चाहता है और इसीलिए सधी हुई प्रतिक्रिया देता है।”
क्या भारत और कदम उठा सकता था?
कानूनी विशेषज्ञ डॉ. सूरत सिंह के अनुसार, “हथकड़ी और बेड़ियों में लाना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन है। भारत सरकार को अमेरिका के साथ इस पर बातचीत करनी चाहिए थी। जबरदस्ती निर्वासित करने से बेहतर होता कि भारतीय नागरिकों को सम्मानजनक तरीके से वापस लाया जाता।”
भारतीय प्रवासियों का यह निर्वासन कई सवाल खड़े करता है। क्या भारत को अमेरिका के खिलाफ अधिक सख्त रुख़ अपनाना चाहिए था? क्या अपने नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए भारत को कोलंबिया की तरह जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए? ये वे प्रश्न हैं, जिनका जवाब आने वाले समय में भारत सरकार को देना होगा।