Hibatullah Akhundzada vs Sirajuddin Haqqani: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के भीतर सत्ता संघर्ष अब खुलकर सामने आने लगा है। तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने काबुल के प्रमुख रणनीतिक ठिकानों पर अपने वफादार लड़ाकों की तैनाती कर दी है। बाला हिसार किला और काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा पहले हक्कानी नेटवर्क के अधीन थी, लेकिन अब यह पूरी तरह से कंधार गुट के नियंत्रण में आ गई है।
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तालिबान में दो धड़ों की लड़ाई- Hibatullah Akhundzada vs Sirajuddin Haqqani
तालिबान के भीतर दो बड़े गुट हैं—एक हिबतुल्लाह अखुंदजादा का कंधार गुट, और दूसरा सिराजुद्दीन हक्कानी का हक्कानी नेटवर्क। सिराजुद्दीन हक्कानी, जो तालिबान सरकार में आंतरिक मंत्री हैं, एक महीने पहले संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर गए थे और तब से अफगानिस्तान नहीं लौटे हैं।
हक्कानी नेटवर्क पर शिकंजा, पाकिस्तान की भूमिका संदिग्ध
इस सत्ता संघर्ष में पाकिस्तान की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान का खुला समर्थन हासिल है, जबकि कंधार गुट पाकिस्तान की नीति का विरोध करता है। माना जा रहा है कि पाकिस्तान के इशारे पर ही सिराजुद्दीन हक्कानी ने यूएई और सऊदी अरब का दौरा किया, जिस पर कंधार गुट ने कड़ी नाराजगी जताई।
कंधार से आए तालिबानी लड़ाकों का काबुल पर कब्जा
काबुल के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के एक कर्मचारी ने पुष्टि की कि पिछले कुछ दिनों में कंधार से बड़ी संख्या में तालिबानी लड़ाके काबुल पहुंचे हैं और उन्होंने यहां की चौकियों पर कब्जा जमा लिया है। बाला हिसार और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भारी हथियारों से लैस लड़ाके गश्त कर रहे हैं, जिससे शहर पूरी तरह सैन्यीकृत दिखने लगा है।
काबुल में बढ़ता तनाव, जनता में डर का माहौल
काबुल के स्थानीय निवासियों का कहना है कि शहर में तालिबान की चौकियां बढ़ रही हैं और चारों ओर भारी सुरक्षा तैनात कर दी गई है। नूर मोहम्मद नामक एक निवासी ने बताया—
“तालिबानी लड़ाके हर कुछ कदम पर लोगों को रोककर पूछताछ कर रहे हैं, जिससे शहर में दहशत का माहौल है।”
लोगों को डर सता रहा है कि तालिबान का यह आंतरिक संघर्ष कहीं काबुल में हिंसा का कारण न बन जाए।
हक्कानी नेटवर्क को कमजोर करने की रणनीति
सूत्रों के अनुसार, हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने हक्कानी नेटवर्क के प्रभाव को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया है। वह हक्कानी गुट को काबुल से पूरी तरह बेदखल करना चाहते हैं। इसके अलावा, उनके लड़ाके अमेरिकी हथियारों और संसाधनों पर भी कब्जा कर रहे हैं, जो पहले हक्कानी नेटवर्क के पास थे।
सिराजुद्दीन हक्कानी ‘लापता’, अटकलें तेज
सिराजुद्दीन हक्कानी की लंबी अनुपस्थिति ने तालिबान में दरार को और गहरा कर दिया है। उनकी विदेश यात्रा के बाद अफगानिस्तान न लौटने से यह अटकलें तेज हो गई हैं कि कहीं वे अपना नया समर्थन आधार तैयार करने में लगे तो नहीं हैं।
तालिबान सरकार पर जनता का बढ़ता असंतोष
तालिबान में बढ़ते इस सत्ता संघर्ष का असर सरकार की कार्यप्रणाली पर भी पड़ रहा है।
- सरकारी कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है।
- मुद्रा विनिमय बाजार पर सख्त प्रतिबंधों से अर्थव्यवस्था चरमरा रही है।
- अफगान जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
क्या तालिबान शासन के लिए खतरा बन सकता है यह संघर्ष?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तालिबान का यह आंतरिक मतभेद भविष्य में गृहयुद्ध की स्थिति तक पहुंच सकता है। अगर यह सत्ता संघर्ष और बढ़ा, तो अफगानिस्तान में सुरक्षा और स्थिरता के लिए यह एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।