Global Economic Crisis: 2 अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 180 से ज्यादा देशों पर ताबड़तोड़ रियायती रेसिप्रोकल टैरिफ (Deducted Reciprocal Tariff) लागू करने का ऐलान किया। इस निर्णय ने पूरी दुनिया के आर्थिक माहौल को हिलाकर रख दिया है। केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि एशिया से लेकर यूरोप तक के बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। यह घटनाक्रम दुनियाभर के शेयर बाजारों में त्राहिमाम की स्थिति पैदा कर चुका है। आर्थिक विशेषज्ञों और निवेशकों में एक बड़ा डर समा गया है कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है, और इससे 1929 की महामंदी जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
1929 की महामंदी की याद दिलाता हुआ संकट- Global Economic Crisis
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान से वैश्विक व्यापार युद्ध की चिंता बढ़ गई है, और यह स्थिति कुछ हद तक 1929 के काले मंगलवार (Black Tuesday) की याद दिला रही है। उस वक्त जो हुआ था, वह आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक त्रासदी थी। 1929 के पतझड़ में अमेरिका के भावी राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर ने दावा किया था कि अमेरिका में गरीबी पर पूरी तरह विजय प्राप्त की जा चुकी है, और लोग दुनिया में सबसे अच्छे जीवन का अनुभव कर रहे थे। 1928 में बेरोजगारी दर केवल 4% थी, यानी हर 100 में से 96 लोगों के पास काम था। लोग मस्ती में जी रहे थे, और शेयर बाजार में निवेश एक आम बात बन गई थी।
फिर आई महामंदी की दर्दनाक दस्तक
लेकिन, 1929 के अक्टूबर में यह खुशी की शुरुआत एक भयानक त्रासदी में बदल गई। न्यूयॉर्क शेयर बाजार के धड़ाम से गिरने के बाद अमेरिका समेत पूरी दुनिया में आर्थिक संकट का दौर शुरू हुआ। 29 अक्टूबर 1929 को हुआ वह ‘काला मंगलवार’ का दिन इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। उस दिन अमेरिकी शेयर बाजार में 11.73% की गिरावट आई और एक ही दिन में लाखों डॉलर का नुकसान हुआ। इस संकट के कारण हजारों बैंक बंद हो गए और लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
ब्लैक थर्सडे से ब्लैक ट्यूज्डे तक…
यह संकट 24 अक्टूबर 1929 को ब्लैक थर्सडे से शुरू हुआ, जब शेयरों की कीमतों में गिरावट आई, लेकिन कुछ व्यवसायियों ने बाजार को संभालने की कोशिश की। अगले दिन, 28 अक्टूबर को ब्लैक मंडे ने पुनः गिरावट का रुख लिया, लेकिन 29 अक्टूबर को यह संकट अपने चरम पर पहुंच गया। शेयर बाजार में एक साथ 1.6 करोड़ शेयरों की खरीद-बिक्री हुई और इसने एक भयंकर मंदी की शुरुआत कर दी।
महामंदी का वैश्विक असर
यह मंदी न केवल अमेरिका तक सीमित रही, बल्कि यूरोप, एशिया और अन्य महाद्वीपों में भी इसका असर पड़ा। बेरोजगारी दर 33% तक पहुंच गई, और उद्योग-धंधे ठप हो गए। अमेरिकी कंपनियों का दुनिया के विभिन्न देशों में वर्चस्व था, लेकिन मंदी के कारण उनके लिए कार्य करना मुश्किल हो गया। इसके साथ ही, दुनिया में आर्थिक संकट बढ़ गया, और कई देशों में औद्योगिक उत्पादन में 45% तक गिरावट आई।
न्यू डील और संकट से उबरने की कोशिश
इस स्थिति से उबरने के लिए राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट ने न्यू डील नामक योजना शुरू की। उन्होंने सरकारी मदद से बेरोजगारों के लिए काम पैदा करने की कोशिश की और उद्योगों को फिर से चलाने के उपाय किए। साथ ही, स्टॉक मार्केट और बैंकों पर सख्त नियम बनाए गए ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न पैदा हो।
आज के संदर्भ में संकट और उपाय
अब, ट्रंप के टैरिफ के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो गहरी अनिश्चितता पैदा हुई है, वह 1929 की महामंदी की याद दिलाती है। दुनियाभर के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की इस नीति से न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था बल्कि वैश्विक बाजारों पर भी गहरा असर पड़ेगा। हालांकि, इस संकट से उबरने के लिए सरकारों को नए उपाय और रणनीतियां अपनानी होंगी, जैसा कि पहले राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने किया था।
आज के समय में, जब दुनिया एक और आर्थिक संकट से जूझ रही है, अमेरिकी बाजारों के किसी भी कदम का वैश्विक प्रभाव पड़ना तय है। 1929 की महामंदी की तरह, यह भी एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है, जिसे आने वाले समय में याद रखा जाएगा।
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