बद्दतर होते आर्थिक हालातों के चलते दक्षिण एशियाई देश श्रीलंका में इमरजेंसी लगा दी गई। हर चीज के आसमान छूत दाम पहुंचने के दाम श्रीलंका के सैंकड़ों की संख्या में लोग सड़कों पर आ गए। वो श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के घर के बाहर जमा होने लगे और उनके इस्तीफे की मांग करते हुए नारेबाजी करने गए। तेजी से बढ़ते हुए विरोध प्रदर्शन को देखते हुए ही राष्ट्रपति ने श्रीलंका में इमरजेंसी लगाने का ऐलान कर दिया।
चीन के कर्ज में दबा श्रीलंका
श्रीलंका की आर्थिक हालत एकदम खस्ता हो चुके है। वहां की महंगाई का स्तर एशिया में सबसे ज्यादा है। खाने पीने की चीजें जनता की पहुंच से दूर हो रही है। महंगाई के साथ साथ श्रीलंका दूसरे देशों के बोझ तले भी दबा हुआ है। श्रीलंका पर इस वक्त 7 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, जिसमें से सबसे ज्यादा कर्ज उसने चीन से लिया हुआ है।
इस वजहों से बिगड़े हालात
ऐसे में एक सवाल जो काफी ज्यादा उठाया जा रहा है, वो यही है कि आखिर श्रीलंका के हालत इतने बिगड़े कैसे? वो क्या वजहें रहीं, जिसकी वजह से नौबत अब इमरजेंसी तक आ गई? आइए इस पर गौर कर लेते हैं…
श्रीलंका के जो मौजूदा हालाता हैं, उसकी वजहें कई हैं। जिसमें कोरोना महामारी के साथ साथ रूस-यूक्रेन युद्ध भी शामिल हैं। इसके अलावा श्रीलंकाई सरकार द्वारा ऐसे कई फैसले लिए गए, जो श्रीलंका के मौजूदा हालात की वजह हैं।
आज से 12 साल पहले यानी साल 2010 में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी। देश की आर्थिक विकास दर 8 फीसदी से भी ज्यादा पहुंची हुई थी। पिछले 3 से 4 साल में यहां हालत बिगड़ना शुरू हुए। इसमें एक बड़ा कारण कोरोना महामारी रहा। वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया को परेशान किया। इसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो हुई ही। साथ ही साथ इस बीमारी ने कई देशों की आर्थिक स्थिति तक बिगाड़कर रख दी।
श्रीलंका के साथ भी ऐसा ही हुआ। कोरोना के चलते श्रीलंका का टूरिज्म सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ। श्रीलंका की GDP में पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है। वहां की GDP में टूरिज्म की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी अधिक है। पर्यटन से विदेश मुद्रा भंडार में भी इजाफा होता है। लेकिन जब कोरोना महामारी ने इसकी कमर तोड़कर रख दी। कोविड की वजह से श्रीलंका में विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली।
इसके अलावा सरकार के कुछ फैसले भी इसके पीछे की वजह बने। 2019 में जब श्रीलंका की सत्ता में गोटाबायो की सरकार आई तो श्रीलंका की आर्थिक स्थिति अस्थिर होने लगी थी। वहां महंगाई बढ़ रही थी। इन सबके बीच सरकार ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसके चलते हालात और बिगड़े।
सरकार ने जनता को खुश करने के लिए सभी का टैक्स आधा कर दिया। इसके साथ देश में रासायनिक खेती बिलकुल बंद है और कहा कि अब सिर्फ आर्गेनिक खेती ही होगी। वैसे तो श्रीलंका में ज्यादा खेती नहीं होती, लेकिन वहां पर चाय, चावल और रवब की पैदावार की जाती थी। इससे भी वहां काफी विदेश मुद्रा मिलती थी।
श्रीलंका में 90 प्रतिशत खेती रासनयिक खादों से ही की जाती थी। ऐसे में सरकार के आर्गेनिक खेती वाले फैसले के कारण देश की सारी खेती ही चौपट हो गई। जिसके चलते बाहर से ही बड़े पैमाने पर अनाज से लेकर दाल, तेल का आयात करना पड़ा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव और बढ़ गया।
2019 तक श्रीलंका की विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 बिलियन डॉलर का था। लेकिन जब देश में हर जरूरत का सामान जैसे दवाईयां, अनाज, तेल, चीनी, दाल की विदेश से मंगाना शुरू किया गया, तो इससे विदेशी मुद्रा का भंडार खाली हो गया। इसके चलते पिछले साल जुलाई में विदेशी मुद्रा भंडार 2.8 बिलियन डॉलर पर आ गया था। इस स्थिति में सरकार को विदेशी मुद्रा खरीदनी पड़ी, जिससे रही सही कसर भी पूरी हो गई।
बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा खरीदने से श्रीलंका की अपनी मुद्रा पर दबाव आया और वो कमजोर हो गई। इन सब वजहों से देश में तेजी से महंगाई बढ़ी। आज हालात ये है कि देश में महंगाई बेहिसाब बढ़ी हुई है और श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बड़े वित्तीय संकट का सामना कर रहा है।