प्रसिद्ध अल्बर्ट फेलोशिप ने समाजसेविका वृंदा कालरा को शरणार्थियों द्वारा अमेरिका में नया जीवन शुरू करने में उनकी मदद करने की अनुमति प्रदान की. वृंदा कालरा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का निपटारा करने का कार्य करती है. साथ ही मानसिक रोगियों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है.
कालरा ने टेक्सास ए एंड एम स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से अपनी पढ़ाई की है. उन्हें मानसिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य की बेहतर समझ है.मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा कलंक है जिससे ऐसी रुकावटें उत्पन्न हो सकती है जिसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है. वृंदा कालरा ने दिल्ली में इन चुनौतियों को प्रत्यक्ष रूप से देखा है.
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शुरू से ही समाजसेवा में अग्रणी रहीं वृंदा
अपने देश में ज्यादातर लोग थेरपी से उपचार को प्राथमिकता देते है. वह इसलिए ऐसा करते हैं कि दूसरे लोग उन्हे मानसिक स्वास्थ्य की वजह से पागल न समझे. संयुक्त राज्य अमेरिका में वृंदा कालरा ने देखा कि अमेरिकी लोग मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है. लेकिन अभी भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी ही समस्याओं के बारे में बात करने से झिझकते है. उन्होंने कहा है की इस विषय में थेरेपिस्ट से बात करना आसान है लेकिन दोस्तों से नही.
राजधानी दिल्ली में जन्मी वृंदा कालरा का शुरू से ही समाज सेवा की तरफ झुकाव था और लोगों की मदद करने में तत्पर थी. वृंदा कालरा के परोपकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता जब वह मिडिल स्कूल में पढ़ाई कर रही थी तब उन्होंने अपने एक सहपाठी का लेखन कार्य पूरा किया था क्योंकि उनका दोस्त कुछ शारीरिक समस्याओं से ग्रस्त था जिस कारण वह लिखने में असमर्थ था.
अपने पिताजी से प्रभावित थीं वृंदा
वृंदा कालरा अपने पिताजी से बहुत प्रभावित थी. वह विकलांगता के मुद्दों पर केंद्रित विभाग में सरकारी अधिकारी के पद पर नियुक्त हैं. कालरा ने वर्ष 2021 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से व्यवसायिक चिकित्सा में स्नातक किया. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने समाज सेवा से जुड़े कार्य और कई अनुभव प्राप्त किए. जिसमें भारत के झुग्गी झोपड़ियों में जीवन यापन करने वालो के बच्चों को शिक्षा देना और विकलांग और अपंग बच्चों के साथ काम करना साथ ही मस्कुलर डिसट्रोफी से ग्रस्त बच्चों की सहायता करना शामिल है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य में वृंदा कालरा की ज्यादा रुचि कोरोना काल के दौरान हुई. वह कोरोनाकाल में विकलांग बच्चों की सहायता कर रही थी. लेकिन भारत के संगरोध में चले जाने के कारण उन्हें मजबूरी में रुकना पड़ा.
कालरा ने कहा कि मैंने देखा है कि कोविड 19 ने अनेक परिवारों को अपने चपेट में लिया उनमें से मुख्य रूप से ऑक्टिसम और एड़ीएचडी से ग्रस्त बच्चों को माताओं को जो पहले से ही भावानात्मक चुनौतियों से ग्रस्त थी. इन बच्चों का डेली रूटीन प्रभावित हुआ और सहायता प्रणाली में बाधा उत्पन्न हो गई. पूरे भारत वर्ष में मस्कुलर डिसट्रॉफी से पीड़ित बच्चों और बुजुर्गो की सेवा वाली टेलीहेल्थ सेवाओं में कार्य करने के साथ इन अनुभवों ने कालरा का नजरिया ही बदल दिया.
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