Baloch Brigade: बलूचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई में मजीद ब्रदर्स का नाम एक ज्वलंत अध्याय के रूप में दर्ज हो चुका है। दो सगे भाई – मजीद सीनियर और मजीद जूनियर – जिन्होंने बलोच राष्ट्रवाद के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इनकी शहादत ने बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग को और प्रबल कर दिया। इन्हीं बलिदानों से प्रेरित होकर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सबसे खतरनाक फिदायीन दस्ते का जन्म हुआ – मजीद ब्रिगेड। यह वही ब्रिगेड है जिसने क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक कर लिया।
1974: जब बलूच विद्रोह की लौ भड़क उठी (Baloch Brigade)
2 अगस्त 1974 को क्वेटा में एक युवक पेड़ पर चढ़कर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो के काफिले का इंतजार कर रहा था। हाथ में हैंड ग्रेनेड था, मकसद था भुट्टो से बदला लेना। यह युवक था मजीद सीनियर।
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Baloch Liberation Army media published an image showing BLA – Majeed Brigade members who were part of it’s “Operation Dara-e-Bolan” (#Mach) #Balochistan pic.twitter.com/SRUmG3sJxN— Bahot | باہوٹ (@bahot_baluch) March 28, 2024
भुट्टो ने बलूचिस्तान की नेशनल आवामी पार्टी की सरकार बर्खास्त कर दी थी, जिससे बलूच राष्ट्रवादियों का गुस्सा चरम पर था। बलूचिस्तान 1947 से ही एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में रहना चाहता था, लेकिन जिन्ना ने इसे पाकिस्तान में मिला लिया। भुट्टो बलूचों को कोई रियायत देने को तैयार नहीं थे।
मजीद जानता था कि यह आत्मघाती मिशन है। जैसे ही भुट्टो का काफिला करीब आया, उसने ग्रेनेड फेंका लेकिन ऑपरेशन असफल रहा और मजीद मारा गया। हालांकि, उसकी शहादत बलोच आंदोलन का प्रतीक बन गई।
2010: जब छोटा भाई भी कुर्बान हो गया
मजीद सीनियर की मौत के दो साल बाद उसी घर में एक और लड़का जन्मा – मजीद जूनियर। उसका बचपन भी बलूच आज़ादी के विचारों में पला-बढ़ा।
17 मार्च 2010 को पाकिस्तानी सेना ने क्वेटा की वाहदत कॉलोनी के एक घर को घेर लिया, जहां कई बलूच विद्रोही मौजूद थे। चारों तरफ से घिरे विद्रोहियों में मजीद जूनियर भी था। उसने हथियार उठाए और पाक सैनिकों से जमकर लड़ा ताकि उसके साथी सुरक्षित निकल सकें। अंततः वह शहीद हो गया।
मजीद जूनियर की शहादत बलोच आंदोलन के लिए बड़ा मोड़ थी। जब लोगों को पता चला कि वह मजीद सीनियर का भाई था, तो पूरे बलूचिस्तान में गम और गुस्से की लहर दौड़ गई।
2011: जब बलूचिस्तान में जन्मा फिदायीन दस्ता
2011 में बलूच नेता असलम बलोच ने बलूचिस्तान आंदोलन को और उग्र बनाने का फैसला किया। उन्होंने एक आत्मघाती दस्ता बनाने की योजना बनाई और इसका नाम मजीद ब्रिगेड रखा। यह यूनिट बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) की एक शाखा के रूप में उभरी।
मजीद ब्रिगेड: पाकिस्तान की सबसे बड़ी चुनौती
मजीद ब्रिगेड ने 2011 में पहला आत्मघाती हमला किया, जिसमें पाकिस्तान के पूर्व मंत्री नसीर मंगल मारे गए। इसके बाद इस ब्रिगेड ने कई बड़े हमले किए:
- 2018: कराची में चीनी दूतावास पर आत्मघाती हमला।
- 2019: ग्वादर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का अहम केंद्र है।
- 2022: कराची यूनिवर्सिटी के कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट पर हमला।
- 2024: बलूच विद्रोहियों ने ट्रेन जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक कर पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया।
फंडिंग और आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिगेड
अमेरिकी थिंक टैंक द जेम्सटाउन फाउंडेशन के अनुसार, मजीद ब्रिगेड को विदेशों में बसे बलूच समुदाय से फंडिंग मिलती है। पैसा हवाला चैनल के जरिए भेजा जाता है।
ब्रिगेड के पास आधुनिक सैन्य हथियार हैं, जिनमें IED, RPG, ऑटोमेटिक असॉल्ट राइफल्स, BM-12 और 107mm रॉकेट शामिल हैं। इसके अलावा, मजीद ब्रिगेड के लड़ाकों को C4 विस्फोटकों और आत्मघाती जैकेट का प्रशिक्षण दिया जाता है।
फतह स्क्वॉड और जीरब यूनिट्स
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी में फतह ब्रिगेड और जीरब यूनिट जैसी विशेष इकाइयाँ भी काम करती हैं:
- फतह ब्रिगेड: गुरिल्ला युद्ध में माहिर, जो पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमले करती है।
- जीरब यूनिट: यह बलूचिस्तान के शहरों में छिपकर पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ खुफिया ऑपरेशन को अंजाम देती है।
क्या बलूचिस्तान को आज़ादी मिलेगी?
बलूचिस्तान के संसाधनों का पाकिस्तानी सरकार द्वारा शोषण बलोच विद्रोहियों को और आक्रामक बना रहा है। मजीद ब्रिगेड और अन्य विद्रोही गुट लगातार पाकिस्तान के सैन्य और आर्थिक ठिकानों को निशाना बना रहे हैं।
बलूच राष्ट्रवाद की यह लड़ाई दशकों से जारी है और मजीद ब्रदर्स की शहादत ने इसे नई ऊर्जा दी है। पाकिस्तान सरकार इसे कुचलने की कोशिश कर रही है, लेकिन हर बार यह आंदोलन और तेज हो जाता है।
क्या आने वाले वर्षों में बलूचिस्तान अपनी आज़ादी की लड़ाई जीत पाएगा? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मजीद ब्रिगेड का आतंक पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।