20 सालों के अतंराल के बाद अफगानिस्तान पर एक बार फिर से तालिबान का कब्जा हो गया है। राष्ट्रपित अशरफ गनी समेत तमाम बड़े नेता देश छोड़ चुके हैं। तालिबान ने काबुल के साथ-साथ अब राष्ट्रपति भवन पर भी कब्जा जमा लिया है। आम जनता में अफरा-तफरी का माहौल है।
इसी बीच तालिबान ने मुल्ला शीरीन को काबुल का नया गवर्नर घोषित कर दिया है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बीच अन्य देशों की ओर से तरह-तरह की प्रतिक्रिया सामने आने लगी है। अफगानिस्तान-तालिबान विवाद में कौन सा मुस्लिम देश किस तरफ? जानें यहां
अमेरिका का कहना है कि वह ताकत के दम पर बनी सरकार को मान्यता नहीं देगा। साथ ही जर्मनी ने भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को लेकर कौन सा मुस्लिम देश किस तरफ है…
सऊदी अरब
खाड़ी समूह के सबसे ताकतवर देश सऊदी अरब की ओर से इस मसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। साल 2018 में जब अफगान शांति वार्ता शुरु हुई उसके बाद से ही सऊदी अरब दूरी बनाए हुए है। बताया जाता है कि यह देश पाकिस्तान के साथ मिलकर तालिबान के साथ काफी पहले से ही डील करता आ रहा है। ऐसे में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को लेकर सऊदी अरब ने अपनी स्टैंड स्पष्ट नहीं किया है।
तुर्की
अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया है लेकिन काबुल काबुल एयरपोर्ट पर अभी भी तुर्क सैनिक तैनात है। पिछले 6 साल से तुर्की काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा और इसके ऑपरेशन से जुड़ा रहा है। काबुल एयरपोर्ट पर तुर्की सैनिकों की तैनाती को लेकर तालिबान की ओर से तुर्की को लगातार धमकी भी दी जा रही है।
वहीं, दूसरी ओर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन मौजूदा समय में इस्लामिक देशों के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि वह जल्द ही तालिबान के साथ बैठक करने वाले हैं। ऐसे में स्थिति क्या होगी, यह आने वाले कुछ ही दिनों में स्पष्ट हो जाएगी।
पाकिस्तान
तालिबान और पाकिस्तान का संबंध जगजाहिर है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के पीछे भी पाकिस्तान और चीन का हाथ बताया जा रहा है। पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ तालिबान के संबंध हमेशा से बेहतर रहे हैं। ऐसे में अब अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार होगी तो पाकिस्तान उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। अफगानिस्तान की नागरिक सरकार का संबंध भारत से हमेशा से बेहतर रहा है। लेकिन अब तालिबान के कब्जे का बाद स्थिति क्या होगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
ईरान
ईरान और तालिबान के बीच संबंध कुछ खास नहीं रहे हैं। साल 1998 में 7 ईरानी राजनयिकों और एक पत्रकार की हत्या के बाद तालिबान और ईरान के संबंध कड़वाहट भरे हो गए थे। अभी भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। अफगानिस्तान की सीमा ईरान से लगती है और ऐसे में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे ने ईरान की नींद उड़ा दी है। ऐसे में आने वाले समय में स्थित क्या होगी, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई है।