तालिबान का इतिहास क्रूरता से भरा रहा है। अपने शासनकाल के दौरान वो आम लोगों और खास तौर पर महिलाओं का जीना मुश्किल कर देता है। अब वहीं तालिबान राज एक बार फिर से अफगानिस्तान में लौटकर आ गया है। अमेरिकी सेना पीछे हटने के बाद तालिबान को ज्यादा समय नहीं लगा। उसने अपना कब्जा वहां जमा लिया। जिसके बाद अब तालिबान अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने की तैयारी में है।
पंजशीर के लड़ाके बन रहे चुनौती
वहीं इस बीच तालिबान के खिलाफ भी एक विरोधी गुट खड़ा हो गया है, जो उसकी राह को मुश्किल कर रहा है। पंजशीर के लड़ाके तालिबान को कड़ी टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं। भले ही कई इलाकों पर अफगान की सेना ने तालिबान से लड़े बिना ही अपनी हार मान ली हो, लेकिन पंजशीर अभी भी उन जगहों पर शामिल हैं, जहां तालिबान अपना कब्जा नहीं जमा पाया। या यूं कहे कि तालिबान के लिए पंजशीर पर कब्जा करना सबसे बड़ी चुनौती है।
300 तालिबानी आतंकियों के मारे जाने का दावा
वहीं इस दौरान अफगानिस्तान से एक बड़ी खबर ये भी आई है कि पंजशीर के लड़ाकों ने बड़ी संख्या में तालिबानियों को मार डाला। दावा किया जा रहा है कि बगलान प्रांत में एक हमले में 300 तालिबानी मारे गए है। जबकि इस दौरान कई को कैद भी किया गया।
जो जानकारी हासिल हो रही है, उसके मुताबिक तालिबान ने कारी फसीहुद दीन हाफिजुल्लाह की अगुवाई में पंजशीर पर हमला करने के लिए अपने सैकड़ों आतंकी भेजे थे। इस दौरान बगलान प्रांत की अंदराब घाटी में पंजशीर के लड़ाके घात लगाए बैठे थे। उन्होंने तालिबान पर धावा बोल दिया और इस दौरान बड़ी संख्या में तालिबानियों को मार गिराया। इससे तालिबान का सप्लाई रूट भी ब्लॉक हो गया है।
खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरुल्लाह सालेह ने भी एक ट्वीट किया। जिसमें उन्होंने लिखा- ‘अंदराब घाटी के एम्बुश जोन में फंसने और बड़ी मुश्किल से एक पीस में बाहर निकलने के एक दिन बाद तालिबान ने पंजशीर के प्रवेशद्वार पर फोर्स लगा दी है। इस बीच सलांग हाइवे को विद्रोही ताकतों ने बंद कर दिया है। ये वो रास्ते हैं जिनसे उन्हें बचना चाहिए, फिर मिलते हैं।’
‘तालिबान से बातचीत और लड़ने दोनों के लिए तैयार’
इसके अलावा विद्रोही नेता अहमद मसूद ने भी एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि वो तालिबान से बातचीत और लड़ने दोनों के लिए ही तैयार है। उनका ये बयान ऐसे समय पर आया जब 300 तालिबानियों को मारने की खबर सामने आई। बता दें कि अहमद मसूद, ‘पंजशीर के शेर’ कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। अहमद मसूद के पिता अहमद शाह मसूद अफगानिस्तान की सबसे ताकतवर शख्सितों में से एक थे। साल 2001 में अल कायदा के साथ तालिबान ने मिलकर उनको मार डाला था। अब उनके बेटे तालिबान को कड़ी टक्कर देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
वहीं इससे पहले अफगानिस्तान के उत्तरी बगलान प्रांत के 3 जिलों से विरोधी लड़ाकों ने तालिबान को बाहर कर दिया था। शुक्रवार को इन्होंने पुल-ए हिसार, देह सलाह और बानू जिले पर अपना कब्जा कर लिया था, हालांकि इसके बाद शनिवार को बानू पर तालिबान ने दोबारा अपना कब्जा जमा लिया। अब तालिबान की लड़ाई बाकी बचे दो जिलों पर भी दोबारा से अपना कब्जा जमाने की है।
इससे ये साफ होता है कि तालिबान के लिए अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाना उतना भी आसान नहीं। भले ही हिंसा और बंदूक के बल पर तालिबान ने अफगान पर कब्जा जमा लिया हो, लेकिन उसको टक्कर देने के लिए एक विरोधी गुट भी खड़ा हो गया है। ऐसे में अफगानिस्तान में आगे क्या होगा, ये देखने वाली बात है…