सिख शादी में एकदम परंपरा के मुताबिक हर रस्में और रीति-रिवाजों को करने की बहुत मान्यता है। जिसे दुनियाभर में सराहा जाता है। सिख शादी में दुल्हा और दुल्हन दोनों ही गुरु के चारों ओर फेरे यानी की लावा लेते है। तो आज हम आपको सिख शादी के बारें में बताएंगे और साथ ही शादी के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इससे भी रुबरु करवाएंगें। तो आइए शुरू करते है….
सिख समुदाय की शादी में 4 फेरे लेकर शादी को पूरा माना जाता है। इन फेरों को ‘लावा’ भी कहते हैं। शादी और लावा की इन रस्म को ‘आनंद कारज’ कहा जाता है। इसके अलावा सिख धर्म में शादियां दिन में ही की जाती हैं। आनंद कारज विवाह दूसरे धर्मों के मुकाबले काफी अलग होते हैं। इनमें लग्न, मुहूर्त, शगुन-अपशगुन जैसी चीजों की मान्यता नहीं होती। सिख धर्म के जो लोग जब आनंद कारज करते हैं वे ये मानते हैं कि उनके लिए हर दिन पवित्र होता है। सिख धर्म में केवल आनंद कारज की मर्यादा के अनुसार हुई शादी को ही वैध माना या किया जाता है
आइए अब बताते है कि सिख शादी के मुताबिक… क्या करना चाहिए और क्या नहीं करने से बचना चाहिए!
1. सिख में आनंद कारज करने लेकर मान्यता है कि अगर आप सच्चे और पवित्र मन से गुरु ग्रंथ साहब जी को मानते है, सिर्फ तभी आप आनंद कारज करें। लेकिन अगर आपने गुरु ग्रंथ साहिब जी को अपने जीवन में पूरे मन से नहीं स्वीकारा है तो आप आनंद कारज करने की बजाय कोई और तरीके अपनाएं। जैसे की कोर्ट मैरेज। ऐसा ही सम्मान हर धर्म को मिलना चाहिए, क्योकि हर धर्म इस सम्मान का हकदार है। इसके अलावा अपनी वाह-वाही के लिए या फिर धार्मिक कार्यक्रमों की गिनती बढ़ाने के लिए आनंद कारज न करें। इसके अलावा इस बात का भी विशेष ध्यान रखना है कि आपको केवल एक बार ही शादी करनी चाहिए न कि कई बार। किसी मज़हब को हाइलाइट करने के लिए अलग-अलग धर्मों में शादी ना करें। अगर आप किसी धर्म के मुताबिक ऐसा कर भी रहे है तो जब तक की आप अपने जीवनभर के लिए उस पर विश्वास न करें या उसे पूरी तरह से न अपनाएं, तब तक केवल दिखाने के लिए उन रीति-रिवाजों से शादी न करें।
2. वहीं सिख विवाह समारोह गुरु जी पर फोकस करने के लिए होता है दूल्हा और दुल्हन पर करने के लिए नहीं, इसलिए आपको लावा के सांसारिक और आध्यात्मिक महत्व को जानने के लिए इसमें जाना चाहिए और साथ ही आपको गुरु के प्रति प्रेम और मानवता के साथ इसमें जाना चाहिए। इसके अलावा शादी से पहले आपको जितना हो सके लावा को पूरी तरह से जान लेना चाहिए। जब आप गुरु ग्रंथ साहिब जी के चारों ओर घूमते हैं, तो आप वास्तव में गुरु और अपने साथी के प्रति वायदा कर रहे होते हैं। ऐसे में आपको ठीक से पता होना चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं।
3. हालांकि इन सबके दौरान पुरानी परंपरा हमारे समाज के लिए आज भी जरूरी है। पुराने समय में लावा के दौरान चलने में मदद करने के लिए, दुल्हन के भाई को गुरु साहिब जी के चारों ओर खड़ा किया जाता था, जो कि जबरन शादी के दौरान हुआ करता था। लेकिन सिख विवाह के मुताबिक, दो लोगों को जबरन शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहिए। केवल तभी शादी के लिए हांमी भरनी चाहिए जब दोनों ही सही उम्र के हों और शादी की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए मानसिक तौर पर तैयार हों। लेकिन इसके लिए विशेष तौर पर एक दुल्हन को पूरी तरह से ये फैसला लेने में सक्षम होना चाहिए।
4. शादी के दौरान दूल्हा और दुल्हन को डरा हुआ और जरुरत से ज्यादा शर्मिला नहीं होना चाहिए। अपनी शादी को पूरी तरह से इन्जॉय करना चाहिए। हालांकि इसका मतलब ये बिल्कुन नहीं है कि आप शादी सेरेमनी के दौरान जॉक क्रेक करें या हंसी-ठिठोली करें। याद रखें कि ये एक स्पिरिटुएल सेरेमनी है, और इसलिए आपका पूरा ध्यान गुरु जी के वचनों पर होना चाहिए और साथ ही उन शिक्षाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए, जो गुरुबानी के माध्यम से आपके जीवन में आगे के रहन-सहन के लिए बताई जा रही हों।
5. इसी तरह से वर-वधू के पीछे बैठे लोगों को भी सभी का मजाक उड़ाने या ध्यान भंग करने की बजाय गुरुबानी के वचनों पर ध्यान लगाना चाहिए।
6. आपको लावा के बारें में भी बताते है कि, हर लावा के दौरान दूल्हा दुल्हन के आगे रहता है। दोनों ही मिलकर गुरु जी से सिक्रेट प्रोमिस करते है और अपने अच्छे भविष्य के लिए आशीर्वाद लेते है। जब पाठ के दौरान दूसरी बार गुरु नानक देव जी का नाम आता है, तो कपल या दुल्हा-दुल्हन को गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे झुककर मट्ठा टेकना चाहिए। हर एक लावा के लिए कपल को बिना किसी की मदद लिए अपने आप उठना चाहिए।
7. परंपरा के मुताबिक, दुल्हन के पिता पगड़ी का एक सिरा दूल्हे के कंधे पर रखते हैं और दूसरा सिरा दुल्हन के हाथ में देते है। इसके बाद लावा शुरू होता हैं। लेकिन इस दौरान पल्ला दुल्हन के हाथ में मुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। पल्ला की जगह कोई और चीज जैसे फूलों की माला का इस्तेमाल भी नहीं किया जाना चाहिए। पल्ले की जगह केवल पल्ला ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिसकी मान्यता है।
8. गुरु जी की उपस्थिति में शादी करने का मतलब है कि आप बड़े ही प्रेम से प्रेयर कर रहे हैं और गुरु जी का आशीर्वाद मांग रहे हैं, इसलिए आशीर्वाद मांगते समय विशेष कुर्सियों पर न बैठे बल्कि जमीन पर ही गुरु जी के आगे बैठे।
9. गुरुद्वारा में जाने से पहले हाथ-पैर धो लें, दुल्हा-दुल्हन होने का ये मतलब नहीं है कि इससे आप बच सकते है। ये वैसे भी बेसिक रुटिन है कि हम गुरुद्वारा में जाने से पहले अपने हाथ और पांव को धोते है।
10. अपनी शादी की थीम को बरकरार रखने के लिए गुरुद्वारा साहिब में सजावट न करें। क्योंकि ये बैंक्वेट हॉल नहीं है। यह गुरु जी का घर है और हमें ज्यादा सजावट पर ध्यान नहीं देना चाहिए। गुरुद्वारा हमारे समुदाय में उन कुछ पवित्र जगहों में से एक है, जहां गुरु जी के सामने हर किसी की सामाजिक रूप से आर्थिक स्थिति जीरो होती है। अपनी शादी के दिन अपनी गुरुद्वारें में सजावट करना ये जाहिर करता है कि हम गुरु दरबार में स्पिरिचुअल प्रेसेंस को नकार रहे है।
11. गुरुद्वारें में दुल्हन को रिविलिंग ड्रेस नहीं पहननी चाहिए और दुपट्टे से अपना पूरा सिर कवर करना चाहिए। स्टाइल के लिए दुपट्टे को पॉनी टेल पर ही नहीं अटैच करना चाहिए। इसके अलावा गुरुद्वारें में कंफरटेबल ड्रेस कैरी करना चाहिए ताकि हमारा पूरा ध्यान गुरु ग्रंथ साहिब के वचनों पर रहे।
12. ये एक परंपरा है कि शादी के दिन दूल्हा किरपान कैरी करता है। इतिहास के मुताबिक, दुल्हा किरपान इसलिए रखता है ताकि दुल्हन की रक्षा कर सके। अपनी वाइफ को चोरों और लुटेरों से बचाया जा सके। किरपान 5 अटायर का एक प्रमुख हिस्सा है। इसलिए किरपान को पूरे गर्व के साथ कैरी करना चाहिए। ये यूनिफॉर्म जो गुरु गोबिंद जी ने दिया है, उसका सबसे जरुरी हिस्सा है। इसलिए ये सबसे ज्यादा सम्मान का हकदार है।
तो आपको ये जानकारी कैसी लगी… और इस पर आपकी क्या राय है, हमें कमेंट कर जरूर बताएं।