बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर सिर्फ दलितों के ही नहीं पूरी दुनिया के एक लीडर थे। बाबा साहेब की दूरदर्शी सोच, उनके विचार आज भी लोग समय समय पर याद करते रहते हैं। अंबेडकर के विचार आज की पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करते हैं। उन्हें जीवन जीने का रास्ता दिखाते हैं। क्या आप जानते हैं कि जो बाबा साहेब आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करते हैं, उनकी असली प्रेरणा कौन थे? वो कौन थे, जिन्हें बाबा साहेब अपना गुरु मानते थे? आइए आज इसके बारे में जान लेते हैं…
अंबेडकर के तीन गुरु थे, जिनके बारे में बाबा साहेब ने खुद एक भाषण में बताया। 28 अक्टूबर 1954 को मुंबई के पुरंदरे स्टेडियम में 30 हजार लोगों की एक सभा को संबोधित करते हुए बाबा साहेब ने कहा था कि मेरे तीन गुरु हैं। हर एक के गुरु तो होते ही हैं। मेरे भी हैं। अंबेडकर ने आगे कहा था कि मैं कोई वैरागी या संन्यासी नहीं हूं। मेरे पहले आदर्श हैं बुद्ध। मेरी उम्र 10-12 साल थी, जब मेरे पिता जी कबीर पंत के साधू थे। मेरे पिता धर्म के चहेते और विद्या के भक्त थे। बचपन में ही उन्होंने मुझसे रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ मुझसे रटवा ली थी। इन सबसे मेरे जीवन पर गहरा असर हुआ। तब मुझे एक बुद्ध के चरित्र की एक पुरस्कार भेंट की गई। जिसे पढ़ने के बाद मुझमें एक अलग ही प्रकाश ने जन्म लिया। बुद्ध के बारे में पढ़ने के बाद आज तक मेरे मन पर पकड़ बनी हुई है। अंबेडकर कहते हैं कि मुझे पूरा विश्वास है कि दुनिया का कल्याण केवल बुद्ध धर्म कर पाएगा।
अंबेडकर अपना दूसरा गुरु कबीर को मानते थे। वो कहते थे कि मेरे पिता कबीरपंती थे। इसलिए कबीर के जीवन और उनके सिद्धांतों का मुझ पर काफी गहरा असर डाला। मेरी राय से कबीर को बुद्ध के दर्शन का असली मतलब समझ आया था।
बाबा साहेब अंबेडकर के तीसरे आदर्श ज्योतिबा फुले थे। उन्होंने कहा था कि दर्जी, कुम्हार, नाई, कुर्मी, माली, मछुआरे को इंसानियत का पाठ उन्होंने ही पढ़ाया। बाबा साहेब ने अपनी किताब ‘शूद्र कौन थे?’ महात्मा फुले को समर्पित की थी, जिसमें उन्होंने लिखा कि फूले ने हिन्दू समाज की छोटी जातियों को उच्च वर्णों के प्रति उनकी गुलामी की भावना के संबंध में जाग्रत किया था। इस तरह बाबा साहेब इन तीनों को अपना गुरु, अपना आदर्श मानते थे। अंबेडकर कहते थे कि इनकी सीख से मेरा जीवन बना है।