मायावती, ये वो नाम हैं जिनका यूपी के इतिहास में हमेशा ही जिक्र किया जाता रहेगा। यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने अपने राजनीतिक जीवन में चार बार प्रदेश की बागडोर संभाली और तो और उनकी ब्राह्मण वोटरों को पार्टी से जोड़ने जो रणनीति रही, उसने तो हर किसी को चौंकाया। उनका सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला काफी कामयाब रहा और पूर्ण बहुमत से यूपी में अपनी सरकार बनाने में मायावती की BSP सफल रही है। चलिए आज हम जानते हैं मायावती के करियर से जुड़ी खास बातें…
जब पहली बार सीएम बनी थीं मायावती
साल 1984 में जब बहुजन समाज पार्टी को कांशीराम ने बनाया, तो इस टीम में कोर मेंबर के तौर पर मायावती भी थी। साल 1984 में वो बिजनौर लोकसभा सीट से जीतकर संसद गई। साल 1993 में बसपा ने सत्ता में पहली बार भागीदारी की। भले ही सीएम मुलायम सिंह यादव रहे, लेकिन बसपा के हाथ में बागडोर थी। साल 1995 में मुलायम सिंह यादव सरकार से मायावती ने अपना समर्थन वापस लिया और 3 जून को बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली। तब पहली बार वो राज्य की सीएम बनी थी।
लेकिन ये दौर भी दूर तक नहीं चल पाया और अक्टूबर में ही बीजेपी के समर्थन वापस लिए जाने पर उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 1995 में मायावती जब पहली दफा सीएम की कुर्सी पर बैठी तो उनके नाम दो रिकॉर्ड कायम हुए और पहला ये कि प्रदेश की सबसे युवा सीएम मायावती रहीं और दूसरा ये कि देश की पहली महिला दलित सीएम भी रहीं।
देखा होगा आपने की मायावती, बीजेपी के अगेंट्स ही रहती हैं, लेकिन साल 1997 और 2002 में सीएम बनने के लिए बीजेपी का समर्थन लेने से भी मायावती पीछे नहीं रही थीं, जिससे वो आलोचनाओं का शिकार भी हुईं। एक दौर आया जब बीजेपी की पॉलिटिक्स ने सवर्ण और दलितों दो भागों में बांट दिया। फिर भी बसपा के ऐसे हालात नहीं हो पाए कि अकेले अपने बूते पर यूपी की सत्ता को वो पा सके। इस दौरान उसने कांग्रेस से भी हाथ मिलाया, लेकिन फायदा नहीं हुआ। मजबूत दलित वोट बैंक पर मायावती का एकाधिकार हासिल थी, जिसके बाद मायावती ने सत्ता पाने के लिए खुद की राजनीतिक चरित्र तक को बदल दिया और हर जाति को साथ लेकर चलने की कोशिश की
अपने बूते पर बनाई सरकार
इसके बाद पहली दफा साल 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार अपने बूते पर बना पाई थी। कांशीराम और मायावती की जोड़ी ने यूपी के अलावा कई की राज्यों में दलितों को उनकी शक्ति का भाव कराया और दलितों का जुड़ाव बसपा से बढ़ता चला गया। ऐसा जुड़ाव की पार्टी के लिए मरने-मारने को तैयार थे और पार्टी के लिए पूरी भागीदारी दिखाने लगे। बसपा के लिए वोट करने लगे। बसपा की यही बढ़ती ताकत को देखकर समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने साल 1993 में यूपी का विधानसभा चुनाव मायावती के साथ मिलकर लड़ा था।
आज भले ही मायावती सत्ता से दूर हों, लेकिन एक बात जरूर है कि सत्ता के लिए संघर्ष मायावती ने भी खूब किया है आज स्थिति, जो भी हो मायावती और उनकी बीएसपी की लेकिन एक वक्त पर मायावती की भी तूती बोलती थी।