देश के सबसे बड़े मस्जिदों में से एक और मशहूर राजधानी दिल्ली का जामा मस्जिद चर्चाओं का विशेष बना रहता है, हजारों की गिनती में यहां लोग रोजाना आते हैं. वहीं, शुक्रवार यानी जुमने के दिन तो यहां का नजारा अद्भुत होता है क्योंकि इस दिन बढ़ी संख्या में लोग नमाज अदा करने आते हैं. इन सबके बारे में तो शायद आपको बाखूबी जानकारी होगी, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जामा मस्जिद का नाम जो दुनिया भर में मश्हूर है वो इसका असली नाम नहीं है.
दरअसल, इसका असली नाम कुछ और है. तो आइए आपको इसके बारे में बताने के साथ ही ये भी बताते हैं कि जामा मस्जिद का इतिहास क्या है, इसे कब और किसने बनवाया था…
कब और किसने बनवाया
साल 1650 में दिल्ली के जामा मस्जिद के निर्माण का कार्य शुरू हुआ था, जो 6 साल बाद यानी 1656 में बनकर तैयार हुआ था. इस मस्जिद को मुगल सम्राट शाह जहां ने बनवाया था. वहीं, इसका उद्घाटन वर्तमान के उज्बेकिस्तान के इमाम सैयद अब्दुल गफूर शाह बुखारी ने किया था.
कितनी बड़ी मस्जिद और कितना हुआ था खर्चा
इतिहासकार के अनुसार जामा मस्जिद को करीब 5 हजार से ज्यादा मजदूरों ने मिलकर बनाया था. उस दौरान इस मस्जिद को बनवाने में तकरीबन दस लाख रुपये का खर्चा आया था. इस मस्जिद में प्रवेश के लिए 3 बड़े-बड़े दरवाजे हैं. इसमें 40 मीटर यानि कि लगभग 131.2 फीट ऊचाई के 2 मीनारें हैं. यहां के बरामदे में लगभग 25,000 लोग एक साथ आ सकते हैं.
पाकिस्तान के बादशाही मस्जिद से ये है जामा मस्जिद का नाता
दिल्ली के जामा मस्जिद से पाकिस्तान के लाहौर में स्थिति बादशाही मस्जिद मिलता जुलता है. दरअसल, शाह जहां के बेटे ने औरंगजेब ने बादशाही मस्जिद के वास्तुशिल्प का काम बनवाया था. वहीं, सदाउल्लाह खान की देखरेख में दिल्ली के जामा मस्जिद का निर्माण कार्य किया गया था, जोकि उस दौरान शाह जहां शासन में वजीर यानी की प्रधानमंत्री थे.
जब अंग्रेजों ने किया इस मस्जिद पर कब्जा
साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जीत की प्राप्ति के बाद अंग्रेजो द्वारा जामा मस्जिद पर कब्जा कर अपने सैनिकों का वहां पर पहरा लगा दिया था. इतिहासकार के अनुसार शहर को सजाने के लिए अंग्रेज जमा मस्जिद को तोड़ना चाहते थे, लेकिन देशवासियों के विरोध के आगे अंग्रेजों को हार मानकर झुकना पड़ा था.
आपको बता दें कि हैदराबाद के आखिरी निजाम असफ जाह-7 से साल 1948 में मस्जिद के एक चौथाई भाग की मरम्मत हेतु 75,000 रुपये मांगे गए थे. हालांकि निजाम असफ ने 3 लाख रुपये आवंटित करते हुए कहा कि मस्जिद का अन्य भाग भी पुराना नहीं दिखना चाहिए.
ये है जामा मस्जिद का असली नाम
दुनियाभर में जामा मस्जिद के नाम से मशहूर इस मस्जिद का वास्तविक नाम मस्जिद-ए-जहां नुमा(Masjid e Jahan Numa) है. इसका अर्थ है-(मस्जिद जो पूरी दुनिया का नजरिया दे).
जामा मस्जिद में हुए धमाके
जुमे की नमाज के ठीक बाद एक के बाद एक 2 धमाके 14 अप्रैल 2006 में हुए थे. इस दौरान 9 लोग घायल हुए थे. हालांकि ये धमाके कैसे हुए इसके लेकर कुछ पता नहीं चल पाया था. वहीं, नवंबर 2011 में दिल्ली पुलिस ने भारतीय मुजाहिद्दीन से ताल्लुक रखने वाले 6 लोगों की गिरफ्तारी की थी. बताया जाता है कि इनका धमाके में हाथ था.
15 सितंबर, 2010 में जामा मस्जिद के गेट नंबर तीन पर खड़ी एक बस पर एक मोटरसाइकिल पर आए बंदूकधारियों ने फायरिंग शुरू कर दी थी. इस दौरान दो ताइवानी पर्यटक घायल भी हुए थे.