हर साल की तरह भारत में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. जन्माष्टमी के दिन जहाँ कई मंदिरों में श्रीकृष्ण की लीलाओं की कई सारी झांकियां देखने को मिलती है तो वहीं इस मौके पर दही हांडी का पर्व मनाया जाता है. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि जन्माष्टमी के दिन पर दही हांडी का पर्व मनाने का क्या महत्व है.
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श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से प्रेरित है दही हांडी का पर्व
भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जेल में हुआ था. इस दिन को ही जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami 2023) के रूप में मनाया जाता है. वहीं इस मौके पर दही हांड़ी मनाने का पर्व भी मनाया जाता है. दही हांड़ी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से प्रेरित है. दरअसल, बचपन में जब भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में पल-बढ़ रहे थे तब उन्हें दही और मक्खन के लिए घर में चोरी करते थे और साथ ही गोपियों की मटकी भी फोड़ देते थे. वहीं इस वजह यहां पर लोगों ने माखन और दही को बचाने के लिए दही की हांडियों को ऊंचाई पर टांग दिया जिसके बाद बाल गोपाल अपने सखाओं के साथ एक-दूसरे की सहायता से हांडी फोड़कर माखन और दही खाते थे और भगवान श्रीकृष्ण की इसी लीला को याद करते हुए दही हांडी के पर्व को मनाने की शुरुआत हुई.
जानिए दही हांडी के पर्व का महत्व
जन्माष्टमी में दही हांडी का विशेष महत्व ये हैं कि भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाने के लिए दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है. माना जाता है कि जिस घर में माखन चोरी के लिए मटकी फोड़ी जाती है वहां से हर एक दुख भी भाग जाता है और खुशियां ही खुशियां आ जाती है.
इस तरह मनाया जाता है दही हांडी का पर्व
जन्माष्टमी के मौके पर दही हांडी (Dahi Handi) का पर्व जहाँ मथुरा, वृंदावन और गोकुल की हर गली में होता है तो वहीं गुजरत और मुबई में इस दही हांड़ी का पर्व का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है. यहां पर कई फिट की ऊँचाई पर दही हांडी को लटका दिया जाता है और इसके बाद गोविंदा की टोली इस हांडी को पिरामिड बनाकर इस दही हांडी को फोड़ती है. वहीं कई जगहों पर इसके लिए प्रतियोगिता आयोजित की जाती है और दही हांडी फोड़ने वालों को इनाम भी मिलता है.
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