हमारी संस्कृति में हमारे स्वास्थ्य का स्थान धन से कही ज्यादा ऊपर माना जाता है. जैसे वो कहावत है ना कि “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया”. इसीलिए हम भारतीय संस्कृति में दीवाली से पहले धनतेरस को महत्व देते है. धनतेरस भारतीय संस्कृति के लिए बिलकुल सही माना जाता है. हम भारतीय संस्कृति के अनुसार कार्तिक माह की कृष्ण त्रयोदशी को हम धनतेरस मनाते है. माना जाता है कि धनतेरस दीवाली के त्योहार के आने का सन्देश देता है इसलिए दीवाली से पहले आता है. इस त्योहार हम को मृत्यु का देवता यमराज के लिए मानते है.
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धनतेरस की पौराणिक कथा
एक बार की बात है मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी किसी इंसान के प्राण लेने में तुम्हे दया आई है? यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो सिर्फ आपके दिए हुए निर्देशों का पालन करते है. फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी किसी भी इंसान के प्राण लेने में दया आई है? उसके बाद यमदूत ने कहा कि एक बार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर मेरा दिल पिंघल गया था. एक दिन एक हंस नाम राजा शिकार पर गया, और जंगल में रास्ता भटक गया. भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया था.
उस राजा का नाम हेमा था जिसने उसने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया. उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिय, जिससे राजा बहुत खुश था. लेकिन जब ज्योतिषों ने राजा को बताया कि इस बच्चे के विवाह के चार बाद ही मृत्यु हो जाएगी. इसलिए राजा ने आदेश दिया कि राजकुमार को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए.
लेकिन राजा ये भूल गया था कि विधि के विधान को कौन बदल सकता है. जो नियति में लिखा होता है वो होकर ही रहता है. कुछ समय बाद राजा हंस अपनी बेटी को लेकर यमुना तट पर पहुंचा और उन दोनों ने वहां गन्धर्व विवाह कर लिया. विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई थी. यमदूत कहते है कि नवविवाहिता का दुख देख कर मन पिंघल गया था. पूरी बात सुनकर यमराज जी ने कहा कि यही विधि-विधान है.
जिसके बाद यमदूतों ने पुछा की महाराज ऐसा कोई उपाय नहीं है जो ऐसे मृत्यु से बचा सके. यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना करने से अकाल मृत्यु नहीं होती. इसलिए धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है
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