आज हम आपके लिए एक ऐसी गुरु की कहानी लेकर आए है जिन्हें सब सिखी के संस्थापक के तौर पर जानते है. जिन्हें हिन्दू अपना गुरु और मुस्लिम अपना पीर मानते है, जिनके अनुसार सभी एक ईश्वर के बनाएं बंदे है, जो मक्का-मदीना गए तो उनके पैर की तरफ कावा हो गया, आज हम बात कर रहे है सिखी के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी की. इन्होनें एक नए, समावेशी और उदार धर्म की नीवं राखी जो उनके समय में तो लोकप्रिय हुआ ही बल्कि जिससे बाद में भी बहुत लोगों ने अपनाया. आज हम आपको गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक पहलू सुनाएंगे.
दोस्तों, आईए आज हम आपको बताएंगे कि सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने काजी से नमाज में सजदा करने से क्यों किया था इंकार.
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गुरु नानक देव जी ने जब नमाज पढने से किया था इंकार?
माधव हाडा द्वारा संपादित किताब ‘गुरु नानक’ के अनुसार यह बात उस समय की है जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लौधी में रहते थे, जहाँ गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 14 साल गुजरे थे. गुरु नानक देव जी यहां नवाब दौलत खान का मोदी खाना संभालते थे. लोगों ने वहां बहुत बार गुरु जी के चमत्कारों को देखा था, लेकिन वहां के नवाब और काजी को इन बातों पर कोई यकीन नहीं था.
इतिहारकारों के अनुसार लोगों ने बहुत बार गुरु जी को ये कहते हुए सुना था की हम सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है, हम सब एक ही ईश्वर के बंदे है. ये बात एक दिन वहां के काजी के कानों में जा पहुंची, काजी नवाब के पास गए और गुरु जी से नमाज पढ़ाने की योजना तैयार की. और गुरु जी को नवाब के सामने पेश होने का हुकुम दिया गया था.
वहां के नवाब और काजी ने मिलकर गुरु जी कहा की अगर आप सच में ऐसा मानते है की ईश्वर एक ही तो आपको हमारे साथ नमाज पढने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, जिसके बाद गुरु जी नमाज पढने के लिए तैयार हो गए लेकिन गुरु जी ने कहा की मैं नमाज पढूंगा, लेकिन अगर आप मेरे साथ मिलकर नमाज पढ़े तभी. नवाब और काजी इस बात के लिए मान गए, तीनों नमाज पढने के लिए गए, जिसके बाद नवाब और काजी दोनों नमाज पढने बैठ गए लेकिन गुरु जी उनके पास खड़े रहे, नवाब और काजी की नमाज पूरी होने के बाद उन्होंने गुरु जी से पुछा की तुम्हारी शर्त के अनुसार हम दोनों नामज पढ़ रहे थे, आपने नमाज क्यों नहीं पढ़ी? जिसका जवाब देते हुए गुरु जी ने कहा कि आप नमाज कहाँ पढ़ रहे थे, आप तो काबुल में घोड़ो की खरीद-फरोख कर रहे थे. इतना सुनकर नवाब समझ गए थे की गुरु जी कोई साधारण इन्सान नहीं है. वह मन के अंदर चल रहे भाव को पढ़ सकते है. जिसके बाद नवाब और काजी ने उनके माफ़ी मांगी और गुरु जी ने कहा की सच्ची नमाज वही है जो मन को एकाग्र करके की जाए.
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