दिवाली पर लक्ष्मी माता की पूजा (Diwali Maa Lakshmi Aarti) करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि लक्ष्मी की आरती गाने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है। हालांकि, इसे लेकर कई मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि लक्ष्मी माता (Diwali Maa Lakshmi) की आरती उनके स्वागत का प्रतीक है, जो समृद्धि का आह्वान करती है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा नहीं करनी चाहिए। आइए आपको बताते हैं कि दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा करना सही है या नहीं।
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दिवाली पर आरती क्यों नहीं करें? (Diwali Maa Lakshmi Aarti)
पूजा-पाठ, हवन-यज्ञ, शुभ कार्य आदि में आरती का विशेष महत्व माना जाता है। आरती के बिना धार्मिक कार्य अधूरे रह जाते हैं (Diwali Maa Lakshmi Aarti Rules)। पूजा के समापन पर हमेशा आरती की जाती है। नतीजतन, आरती पूजा के समापन और भगवान के जाने का प्रतीक है। जिस तरह से आगंतुक के जाने पर हम खड़े हो जाते हैं। उसी तरह से खड़े होकर आरती की जाती है। फिर भगवान चले जाते हैं। इसी तरह से अगर देवी लक्ष्मी चली जाएं तो आपका जीवन आर्थिक रूप से कमजोर हो सकता है।
जानिए क्या करना चाहिए?
दीवाली के दिन मा लक्ष्मी की पूजा करने की बजाय आप मां लक्ष्मी का मंत्र भी गा सकते हैं। इसके साथ ही पूजा के दौरान आपको एक साबुत सुपारी को मौली (कलावा) में लपेटकर पूजा में रखना चाहिए। पूजा के बाद इस सुपारी को लाल कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रख दें। यह देवी लक्ष्मी का स्वरूप है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी की पूजा में साबुत धनिया भी रखना चाहिए।
दिवाली पर लक्ष्मी जी की पूजा करने का सही तरीका
ज्योतिषी कहते हैं दीवाली पर ईशान कोण या उत्तर दिशा को साफ करके स्वास्तिक बनाएं। उस पर चावल की एक ढेरी रखें। अब उस पर लकड़ी का एक पटरा बिछाएं। पटरे पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र रखें। इस चित्र में गणेशजी और कुबेर की तस्वीर भी होनी चाहिए। देवी के दाएं और बाएं एक सफेद हाथी की तस्वीर भी होनी चाहिए। पूजा के दौरान पंचदेव की स्थापना अवश्य करें।
क्या है पंचदेव?
पंचदेव सूर्य देव, श्री गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को कहा जाता हैं। इसके बाद, दीप और अगरबत्ती जलाएं। सभी मूर्तियों और तस्वीरों पर जल छिड़कने से उनकी शुद्धि होगी। कुश के आसन पर बैठकर देवी लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजा करें। षोडशोपचार पूजा 16 क्रियाओं वाली पूजा है। नैवेद्य, आचमन, तांबूल, स्तवपथ, तर्पण, नमस्कार, स्नान, अर्घ्य, आचमन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और स्नान। पूजा के समापन पर संगत सिद्धि के लिए दक्षिणा भी भेंट करनी चाहिए।
माता लक्ष्मी सहित सभी के माथे पर चावल, चंदन, कुमकुम और हल्दी लगाएं। फिर उन्हें फूल और माला भेंट करें। चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी और अन्य सुगंध अनामिका यानी सबसे छोटी उंगली या अंगूठे के बगल वाली उंगली से लगानी चाहिए। इसी तरह उपरोक्त षोडशोपचार की सभी सामग्रियों से पूजा करें।