नाभा, पंजाब का एक ऐसा शहर है जो भारत संघ को सौंपने से पहले एक रियासत की राजधानी थी. जिसके बाद 1947 में पूर्वी पंजाब राज्य संघ का हिस्सा बन गया, जो पंजाब के पटियाला में पड़ता है. इस शहर की स्थापना राजा हमीर सिंह ने 1755 में की थी. ऐसा भी कहा जाता है की नाभा हाउस के संस्थापक राजा हमीर सिंह के दादा चौधरी गुरदित सिंह थे. उस जगह को चौधरी दा घर के साथ ही मुखिया का घर भी कहा जाता था. जिसके बाद 1809 में रियासत की राजधानी नाभा ने अंग्रेजों के साथ एक समझौता करने का फैसला किया, और ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण ने आ गए. 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान भी नाभा अंग्रेजों के प्रति वफादार था, जिसके बाद नाभा को पुरस्कार के रूप में कुछ जगह दी गई थी. यह एक ऐतिहासिक शहर है जिसमे दो गुरूद्वारे भी है जिनकी अपनी कहानी है.
दोस्तों, आईए आज हम आपको इस शहर के दो गुरुद्वारों में से एक महत्वपूर्ण गुरूद्वारे के बारे में बताएंगे.
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गुरुद्वारा श्री सिरोपाओ साहिब नाभा
नाभा शहर में स्थित गुरुद्वारा श्री सिरोपाओ साहिब नाभा पटियाला शहर के पश्चिम में 26 किमी की दूरी पर है. इस गुरूद्वारे के पीछे की कहानी अनोखी है, 1688 में जब सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी पोंटा साहिब से आनंदपुर वापस जा रहे थे तो गुरु जी एक शाम यहां एक फकीर की झोपड़ी में आए जिससे फकीर की दिल की मनोकामना पूरी हुई.
जिसके बाद उस स्थान पर वह फकीर जब तक मिटटी से चिह्नित करता रहा तब तक की वहा एक गुरुद्वारें का निर्माण नहीं हुआ. इस गुरूद्वारे को 1798-1845 के बीच पटियाला के महाराजा करम सिंह द्वारा पूरा किया गया था. महाराजा द्वारा बनाएं गए इस गुरुद्वारा में एक चौकोर गर्भगृह था, जो एक ढका हुआ प्रदक्षिणा पथ था.
1956 में, इस गुरूद्वारे में असेंबली हॉल और कुछ सहायक इमारतें बनाई गई थी. इस गुरूद्वारे में प्रत्येक विक्रमी महीने की पहली तारीख को विशेष दीवान आयोजित किए जाते हैं. या ऐसा भी कह सकते है की इस गुरूद्वारे में हर साल अक्टूबर में महीने में 6-7 या 7-8 तारीख को एक वार्षिक उत्सव मनाया जाता है.
ऐसा माना जाता है कि नवंबर में इन तारीखों में से किसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने 1688 में उस स्थान का दौरा किया था. इसीलिए यह वार्षिक त्योहार मनाया जाता है. इस गुरूद्वारे में कई सिख कलाकृतियाँ संरक्षित हैं, जैसे 1706 में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने दो भाइयों राम सिंह और तिलोक सिंह को हुकमनामा जारी किया गया था. श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी का एक चाबुक और तलवार.
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