जानिए कौन थे बाबा गुरबख्श सिंह जी, जिन्होंने युद्ध में सिर कटने के बाद नहीं गिरने दी अपनी तलवार

Baba Gurbaksh Singh
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हम सब जानते है गुरुद्वारा सिखों का सबसे पवित्र स्थान होता है. पूरी दुनिया में लाखों गुरूद्वारे है, जिनकी अपनी कहानी है. जो सिख गुरुओं और सिख शहीदों की याद में बनवाएं गए है. आज हम आपको एक सिख शहीद बाबा गुरबख्श सिंह जी और उसकी याद में बने गुरूद्वारे के बारे में बताएंगे. गुरुद्वारा श्री शहीद गंज बाबा गुरबख्श सिंह श्री अकाल तख्त के पीछे श्री हरमंदिर साहिब में बना हुआ है. जब 1764 में अहमद शाह अब्दाली ने अमृतसर पर आक्रमण किया तब बाबा गुरबख्श सिंह जी और 30 सिखों ने श्री हरमंदिर साहिब की रक्षा के लिए लड़ाई में शहीद हुए थे. बाबा गुरबख्श सिंह 30 सिखों के साथ जिस बहादुरी से लड़े वह बहुत ही प्रेरणादायक है. जिसके बाद उनकी याद में उस गुरूद्वारे का निर्माण कर उसका नाम गुरुद्वारा श्री शहीद गंज बाबा गुरबख्श सिंह गया था.

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बाबा गुरबख्श सिंह जी

बाबा गुरबख्श सिंह जी का जन्म अमृतसर के निकट लील गाँव में हुआ था, बाबा गुरबख्श सिंह जी सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के समकालीन थे. उनके पिता का नाम भाई दसौंधा सिंह जी और माता का नाम माता लछमी कौर जी था. बाबा गुरबख्श सिंह जी  के माता-पिता ने गुरु गोबिंद सिंह जी की सेवा की थी, जिसके बाद भाई मणि सिंह जी की प्रेरणा से बाबा गुरबख्श सिंह जी को 11 साल ही उम्र में ही अमृत प्राप्त हो गया था.

बाबा गुरबख्श सिंह जी की युवावस्था में इनका समय बाबा दीप सिंह और भाई मणि सिंह जी के साथ बिता, जिससे यह एक महान योद्धा और विद्वान बने.बाबा गुरबख्श सिंह जी सूर्योदय से पहले जागते ही सबसे पहले स्नान करते थे. फिर गुरबाणी का पाठ करते थे. वह नीला बाना पहनते थे, उन्हें शुद्ध लोहा बहुत पसंद था इसीलिए वह रोज अपने शरीर और दस्तार को लोहे के हथियारों और कवच से सजाते थे.

बाबा जी के बैठने का स्थान श्री अकाल तख्त साहिब के दीवान में था. उनके अन्दर मानवता भरी हुई थी इसलिए वह अमीर हो या गरीब सबका आदर करते थे. बाबा जी हर युद्ध में निशान साहिब लेकर सबसे आगे होते थे. बाबा जी की गिनती सिखों के महान वीरों में की जाती है.

इसके बलिदान की कहानी भी अपने आप भी वीरता से परिपूर्ण है, जब 1965 में जब अहमद शाह अब्दाली की अफगान सेना ने सिखों पर हमला किया, वहां एक भयानक युद्ध शुरू हो गया था. जिसमें बाबा जी 30 सिखों के साथ बहादुरी से लड़े थे. दास हजारी खान और बाबा जी युद्ध में थे, उन्होंने एक साथ एक-दूसरे पर वार किया और दोनों का सिर धड़ से अलग हो गया. जिसके बाद बाबा जी बिना सिर भी युद्ध में लड़ते रहे थे, उन्होंने अपनी तलवार हाथ से गिरने नहीं दी थी.  यह देखकर दुश्मन भयभीत हो गए और मैदान छोड़  कर भाग गए थे.

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