25 January ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 25 जनवरी 2024 (25 January ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
मीठे बच्चे – तुम्हें वन्डर खाना चाहिए कि हमें कैसा मीठा बाप मिला है जिसे कोई भी आश नहीं और दाता कितना जबरदस्त है, लेने की जरा भी तमन्ना नहीं।” | |
प्रश्नः- | बाप का वन्डरफुल पार्ट कौन सा है? 100 प्रतिशत निष्कामी बाप किस कामना से सृष्टि पर आया है? |
उत्तर:- | बाबा का वन्डरफुल पार्ट है पढ़ाने का। वह सर्विस के लिए ही आते हैं। पालना करते हैं। पुचकार देकर कहते हैं मीठे बच्चे यह करो। ज्ञान सुनाते हैं, लेते कुछ नहीं। 100 प्रतिशत निष्कामी बाप को कामना हुई है मैं अपने बच्चों को जाकर रास्ता बताऊं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार सुनाऊं। बच्चे गुणवान बनें… बाप की यही कामना है। |
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप ऐसा मिला हुआ है जो कुछ लेता नहीं, कुछ खाता नहीं। कुछ पीता नहीं। तो उनको कोई आश वा उम्मीद नहीं है और मनुष्यों को कोई न कोई आश ज़रूर होती है। धनवान बनें, फलाना बनें। उनको कोई आश नहीं, वह अभोक्ता है। तुमने सुना था एक साधू कहता है मैं कुछ खाता पीता नहीं। यह तो जैसे कापी करते हैं। सारे विश्व में एक ही बाप है जो कुछ लेता करता नहीं। तो बच्चों को ख्याल करना चाहिए कि हम किसके बच्चे हैं। बाप कैसे आकर इनमें प्रवेश करते हैं। खुद की कोई तमन्ना नहीं। खुद तो गुप्त है। उनकी जीवन कहानी को तुम बच्चे ही जानते हो। तुम्हारे में भी थोड़े हैं जो पूरी रीति समझते हैं। दिल में आना चाहिए कि हमको ऐसा बाप मिला है जो न कुछ खाता, न पीता, न लेता। कुछ भी उनको दरकार नहीं। ऐसा तो कोई हो नहीं सकता। एक ही निराकार ऊंच ते ऊंच भगवान ही गाया हुआ है। उनको ही सब याद करते हैं। वह तुम्हारा बाप भी अभोक्ता, टीचर भी अभोक्ता तो सतगुरू भी अभोक्ता। कुछ भी लेते नहीं, लेकर वह क्या करेंगे! यह भी वन्डरफुल बाप है। अपने लिए जरा भी आश नहीं। ऐसा कोई मनुष्य होता नहीं। मनुष्य को तो खाना कपड़ा आदि सब चाहिए। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे तो बुलाते हैं कि आकर पतितों को पावन बनाओ। मैं हूँ निराकार, मैं कुछ नहीं लेता। मुझे तो अपना आकार ही नहीं। मैं सिर्फ इसमें प्रवेश करता हूँ। बाकी खाती पीती इनकी आत्मा है। मेरी आत्मा को कुछ भी आश नहीं। हम सर्विस के लिए ही आते हैं। सोच करना होता है, कैसा वन्डरफुल खेल है। एक बाप सबका प्यारा है। उनको ज़रा भी आश नहीं। सिर्फ आकर पढ़ाते हैं, पालना करते हैं, पुचकार देते हैं – मीठे बच्चे यह करो। ज्ञान सुनाते हैं, लेते कुछ भी नहीं। करनकरावनहार बाप ही है। समझो कुछ शिवबाबा को दिया। वह क्या करेंगे। टोली लेकर खायेंगे? शिव-बाबा को शरीर ही नहीं। तो लेवे कैसे? और सर्विस देखो कितनी करते हैं। सबको अच्छी-अच्छी मत देकर गुल-गुल बनाते हैं। बच्चों को वन्डर खाना चाहिए। बाप तो है ही दाता। दाता भी कितना जबरदस्त और कोई तमन्ना नहीं। ब्रह्मा को भल फुरना है, इतने बच्चों की सम्भाल करनी है, खिलाना पिलाना है, पैसा जो भी आता है वह शिवबाबा के लिए ही आता है। हमने तो सब कुछ स्वाहा कर दिया। बाप की श्रीमत पर चल अपना सब कुछ सफल कर भविष्य बनाते हैं। बाप तो 100 परसेन्ट निष्कामी है। सिर्फ यही फुरना है कि सबको जाकर रास्ता बताऊं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का समाचार सुनाऊं और तो कोई जानते नहीं। तुम बच्चे ही जानते हो। बाप टीचर के रूप में पढ़ाते हैं। फी आदि कुछ लेते नहीं। तुम शिवबाबा के नाम पर लेते हो। वहाँ रिटर्न में मिलता है। बाबा में यह तमन्ना है क्या कि हम नर से नारायण बनें? बाप तो ड्रामा अनुसार पढ़ाते हैं। ऐसा नहीं कि उनको आश है कि हम ऊंच ते ऊंच तख्तनशीन बनें। नहीं। सारा मदार है पढ़ाई पर, दैवी गुणों पर। और फिर औरों को भी पढ़ाना है। बाप देखते हैं ड्रामा अनुसार कल्प पहले मिसल इनकी जो एक्ट चलती है, साक्षी होकर देखते हैं। बच्चों को भी कहते हैं तुम साक्षी होकर देखो। अपने को भी देखो, हम पढ़ते हैं वा नहीं। श्रीमत पर चलते हैं वा नहीं। औरों को आप समान बनाने की हम सर्विस करते हैं वा नहीं। बाप तो इनके मुख का लोन लेकर बोलते हैं। आत्मा तो चैतन्य है ना। मुर्दे में तो बोल न सकें। ज़रूर चैतन्य में ही आयेंगे। तो बाप कितना निष्कामी है, कोई आश नहीं। लौकिक बाप तो समझते हैं बच्चे बड़े होंगे फिर मुझे खिलायेंगे। इनकी तो कोई तमन्ना नहीं। जानते हैं मेरा ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है, सिर्फ आकर पढ़ाता हूँ। यह भी नूँध है। मनुष्य ड्रामा को बिल्कुल नहीं जानते।
तुम बच्चों को यह निश्चय है बाप ही हमको पढ़ाते हैं। यह ब्रह्मा भी पढ़ते हैं। ज़रूर यह सबसे अच्छा पढ़ते होंगे। यह भी अच्छा मददगार है – शिवबाबा का। हमारे पास तो कुछ धन है नहीं। बच्चे ही धन देते हैं और लेते हैं। दो मुट्ठी देते हैं और भविष्य में लेते हैं। कोई के पास कुछ है नहीं, तो कुछ देते नहीं। बाकी हाँ अच्छा पढ़ते हैं तो भविष्य में अच्छा पद पाते हैं, यह भी बहुत थोड़े हैं, जिनको याद रहता है कि हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं। यह याद रहे तो भी मनमनाभव है। परन्तु बहुत हैं जो दुनियावी बातों में समय बरबाद करते हैं, बाबा क्या पढ़ाते हैं, कैसे पढ़ाते हैं, कितना ऊंच पद पाना है, यह सब कुछ भूल जाते हैं। आपस में ही लड़ते झगड़ते टाइम वेस्ट करते रहते हैं। जो बड़ा इम्तहान पास करते हैं, वह कभी अपना समय वेस्ट नहीं करते। अच्छी तरह पढ़ेंगे, श्रीमत पर चलेंगे। श्रीमत पर तो चलना पड़े ना। बाप कहते हैं तुम तो नाफरमानबरदार हो। श्रीमत देता हूँ, बाप को याद करो तो भूल जाते हो। यह तो कमजोरी कहेंगे। माया एकदम नाक से पकड़कर, डसकर सिर पर बैठ जाती है। यह युद्ध का मैदान है ना। अच्छे-अच्छे बच्चों पर माया जीत पा लेती है। फिर नाम किसका बदनाम होता है? शिवबाबा का। गायन भी है गुरू का निंदक ठौर न पाये। ऐसे माया से हराने वाले फिर ठौर कैसे पायेंगे। अपने कल्याण के लिए बुद्धि चलानी चाहिए कि हम कैसे पुरूषार्थ कर बाबा से वर्सा लूँ। अच्छे-अच्छे महारथियों जैसा बनकर सबको रास्ता बताऊं। बाबा सर्विस की युक्तियाँ तो बहुत सहज बतलाते हैं। बाप कहते हैं तुम मुझे बुलाते आये हो, अब मैं कहता हूँ कि मुझे याद करो तो पावन बन जायेंगे। पावन दुनिया के चित्र हैं ना। यह है मुख्य। यहाँ एम ऑबजेक्ट रखी जाती है। ऐसे नहीं कि डाक्टरी पढ़नी है तो डाक्टर को याद करना है। बैरिस्टरी पढ़नी है तो कोई बैरिस्टर को याद करना है। बाप कहते हैं सिर्फ मुझ एक को याद करो। बस मैं तुम्हारी सब मनोकामना पूर्ण करने वाला हूँ। तुम सिर्फ मुझे याद करो। भल माया तुमको कितना भी हैरान करे, फिर भी युद्ध है ना। ऐसे नहीं फट से जीत पा लेंगे। इस समय तक एक ने भी माया पर जीत नहीं पाई है, जीत पाने से फिर जगतजीत होने चाहिए। गाते हैं मैं गुलाम, मैं गुलाम तेरा..। यहाँ तो माया को गुलाम बनाना है। वहाँ माया कभी दु:ख नहीं देगी। आजकल तो दुनिया ही बड़ी गंदी है। एक दो को दु:ख देते ही रहते हैं। तो कितना मीठा बाबा है, जिसको अपने लिए कोई तमन्ना नहीं। ऐसे बाप को याद नहीं करते वा कोई कहे हम शिवबाबा को मानते हैं, ब्रह्मा बाबा को नहीं। परन्तु यह दोनों इकट्ठे हैं, बिगर दलाल सौदा हो न सके। बाबा का रथ है, इनका नाम ही है भाग्यशाली रथ। यह भी जानते हो सबसे नम्बरवन ऊंचा है यह। क्लास में मानीटर का भी मान होता है। रिगार्ड रखते हैं। नम्बरवन सिकीलधा बच्चा तो यह है ना। वहाँ भी सब राजाओं को इनका (श्री नारायण का) रिगार्ड रखना है। यह जब समझें तब रिगार्ड रखने का अक्ल आये। यहाँ जब रिगार्ड रखना सीखो तब वहाँ भी रखो। नहीं तो बाकी मिलेगा क्या? शिवबाबा को याद भी नहीं कर सकते। बाप कहते हैं याद से ही तुम्हारा बेड़ा पार होता है। बेहद की राजाई देते हैं। ऐसे बाप को कितना याद करना चाहिए। अन्दर में कितना लॅव होना चाहिए। इनका देखो बाप से कितना लॅव है। लॅव हो तब तो सोने का बर्तन बने, जिनका बर्तन सोने का होगा उनकी चलन बड़ी फर्स्टक्लास होगी। ड्रामा अनुसार राजधानी स्थापन होनी है। उनमें तो सब प्रकार के चाहिए।
बाप समझाते हैं बच्चे तुम्हें कभी भी गुस्सा नहीं आना चाहिए। समझना चाहिए हम अगर सर्विस नहीं करते तो गोया टाइम वेस्ट करते रहते हैं। शिवबाबा के यज्ञ की कोई सर्विस नहीं करेंगे तो मिलेगा क्या? सर्विसएबुल ही ऊंच पद पायेंगे। अपना कल्याण करने के लिए शौक रखना चाहिए। नहीं करते तो पद भ्रष्ट करते। स्टूडेन्ट अच्छा पढ़ते हैं तो टीचर भी खुश होगा, समझेंगे यह हमारा नाम बाला करेंगे। इनके कारण हमको इजाफा मिलेगा। बाप टीचर आदि सब खुश होंगे। अच्छे सपूत बच्चों पर माँ बाप भी कुर्बान जाते हैं, जो बहुत अच्छी सर्विस करते हैं, तो बाप भी सुनकर खुश होते हैं। जो बहुतों की सर्विस करते हैं, उनका ज़रूर नामाचार होगा। ऊंच पद भी वही पा सकेंगे। रात दिन उनको सर्विस का ही ओना रहता है। खान पान की परवाह नहीं रखते। समझाते-समझाते गला घुट जाता है। ऐसे सिकीलधे, सर्विसएबुल बच्चों को ही ऊंच पद पाना है। यह तो 21 जन्मों की बात है, सो भी कल्प-कल्पान्तर के लिए। जब रिज़ल्ट निकलेगी तब समझेंगे, किसने सर्विस की। कितनों को रास्ता बताया। कैरेक्टर्स को भी सुधारना ज़रूरी है। महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे नाम तो है ना। सर्विस नहीं करते तो समझना चाहिए हम प्यादे हैं। ऐसा कोई न समझे कि हमने धन से मदद की है, इसलिए हमारा पद ऊंचा होगा। यह बिल्कुल भूल है। सारा मदार सर्विस और पढ़ाई पर है। बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते रहते हैं कि बच्चे पढ़कर ऊंचा पद पायें। कल्प-कल्प का अपने को घाटा न डालें। बाबा देखते हैं यह अपने को घाटा डाल रहे हैं, इनको पता नहीं पड़ता, इसमें ही खुश हो जाते हैं कि हमने पैसे दिये हैं इसलिए माला में नज़दीक आयेंगे। परन्तु भल पैसा दिया लेकिन नॉलेज नहीं धारण की, योग में नहीं रहे तो वह क्या काम के! अगर रहम नहीं करते तो बाकी बाप को क्या फालो करते हैं। बाप तो आये ही हैं बच्चों को गुल-गुल बनाने। जो बहुतों को गुल-गुल बनायेंगे उन पर बाप भी बलिहार जायेंगे। स्थूल सर्विस भी बहुत है। जैसे भण्डारी की बाबा बहुत महिमा करते हैं, उनको बहुतों की आशीर्वाद मिलती है। जो जितनी सर्विस करते हैं, वह अपना ही कल्याण करते हैं, अपनी हड्डियाँ सर्विस में देते हैं। अपनी ही कमाई करते हैं। बहुत हड्डी प्यार से सर्विस करते हैं। जो खिटपिट करते हैं, वह अपनी ही तकदीर खराब करते हैं, जिनमें लोभ होगा उन्हें वह सतायेगा। तुम सब वानप्रस्थी हो, सबको वाणी से परे जाना है। अपने से पूछना चाहिए सारे दिन में हम कितनी सर्विस करते हैं। कई बच्चों को तो सर्विस बिगर सुख नहीं आता। कोई-कोई को ग्रहचारी बैठती है – बुद्धि पर वा पढ़ाई पर। बाबा तो सबको एकरस पढ़ाते हैं, बुद्धि कोई की कैसी होती, कोई की कैसी होती है। फिर भी पुरूषार्थ तो करना चाहिए। नहीं तो कल्प-कल्पान्तर का पद ऐसा हो जायेगा। पिछाड़ी में जब रिज़ल्ट निकलेगी तो सब साक्षात्कार करेंगे। साक्षात्कार करके फिर ट्रॉन्सफर हो जायेंगे। शास्त्रों में भी है कि पिछाड़ी में बहुत पछताते हैं कि मुफ्त समय वेस्ट किया। कल्प-कल्पान्तर का बहुत धोखा खाया। बाप तो सावधान करते रहते हैं। शिवबाबा की तो यही तमन्ना है कि बच्चे पढ़कर ऊंच पद पायें और कोई अपनी तमन्ना नहीं है। उनके काम की भी कोई वस्तु नहीं है। बाप समझाते हैं बच्चे अन्तर्मुखी बनो। दुनिया तो सारी बाह्यमुखी है। तुम हो अन्तर्मुखी। अपनी अवस्था को देखना है और सुधारने का भी पुरूषार्थ करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) साक्षी होकर स्वयं के पार्ट को देखो – हम अच्छी रीति पढ़कर दूसरों को पढ़ाते हैं या नहीं? आप समान बनाने की सेवा करते हैं? अपना समय दुनियावी बातों में बरबाद मत करो।
2) अन्तर्मुखी बन अपने आपको सुधारना है। अपने कल्याण का शौक रखना है। सर्विस में बिजी रहना है। बाप समान रहमदिल ज़रूर बनना है।
वरदान:- | हर समय अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृति द्वारा सेवा करने वाले पक्के सेवाधारी भव सेवाधारी अर्थात् हर समय श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करने वाले, जिसको भी श्रेष्ठ दृष्टि से देखते हो तो वह दृष्टि भी सेवा करती है। वृत्ति से वायुमण्डल बनता है। कोई भी कार्य याद में रहकर करते हो तो वायुमण्डल शुद्ध बनता है। ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही सेवा है, जैसे श्वांस न चलने से मूर्छित हो जाते हैं ऐसे ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है इसलिए जितना स्नेही, उतना सहयोगी, उतना ही सेवाधारी बनो। |
स्लोगन:- | सेवा को खेल समझो तो थकेंगे नहीं, सदा लाइट रहेंगे। |
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
सदा डबल लाइट स्थिति में रहने वाले निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त होंगे। उडती कला में रहेंगे। उड़ती कला अर्थात् ऊचे से ऊंची स्थिति। उनके बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं। धरनी अर्थात् देह भान से ऊपर। जो देह भान की धरनी से ऊपर रहते हैं, वह सदा फरिश्ते हैं। उनके सम्पर्क में जो भी आत्मा आयेगी वह थोडे समय में भी शीतलता व शान्ति की अनुभूति करेगी