23 January ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 23 जनवरी 2024 (23 January ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.
“मीठे बच्चे – जैसे बाबा स्वीट का पहाड़ है, ऐसे तुम बच्चों को भी स्वीट बाप और वर्से को याद कर मोस्ट स्वीट बनना है” | |
प्रश्नः- | तुम अभी किस विधि से स्वयं को सेफ कर अपना सब कुछ सेफ कर लेते हो? |
उत्तर:- | तुम कहते हो बाबा देह सहित यह जो कुछ कखपन है हम अपना सब कुछ आपको देते हैं और आप से फिर वहाँ (भविष्य में) सब कुछ लेंगे। तो तुम जैसे सेफ हो गये। सभी कुछ बाबा की तिजोरी में सेफ कर देते हो। यह शिव-बाबा की सेफ्टी बैंक है। तुम बाबा की सेफ में रहकर अमर बनते हो। तुम काल पर भी विजय पाते हो। शिवबाबा के बने तो सेफ हो गये। बाकी ऊंच पद पाने लिए पुरुषार्थ करना है। |
ओम् शान्ति। बाप बच्चों से पूछते हैं मीठे बच्चे अपना भविष्य का पुरुषोत्तम मुख देखते हो? पुरुषोत्तम चोला देखते हो? समझ में आता है कि हम भविष्य नई सतयुगी दुनिया में इन (लक्ष्मी-नारायण) के वंशावली में जायेंगे अर्थात् सुखधाम में जायेंगे अथवा पुरुषोत्तम बनेंगे! स्टूडेन्ट जब पढ़ते हैं तो बुद्धि में रहता है ना कि मैं फलाना बनूँगा। तुम भी जानते हो हम विष्णु की डिनायस्टी में जायेंगे क्योंकि विष्णु के दो रूप हैं लक्ष्मी-नारायण। अभी तुम्हारी बुद्धि अलौकिक है, और कोई की बुद्धि में यह बातें रमण नहीं करेंगी। यहाँ तुम जानते हो हम सत बाबा, शिवबाबा के संग में बैठे हैं। ऊंच ते ऊंच बाप हमको पढ़ा रहे हैं। वह है मोस्ट स्वीटेस्ट। उस स्वीटेस्ट बाप को बहुत लव से याद करना है क्योंकि बाप कहते हैं बच्चों मुझे याद करने से तो तुम ऐसा पुरुषोत्तम बनेंगे और ज्ञान रत्नों को धारण करने से तुम भविष्य 21 जन्मों के लिए पदमा पदमपति बनेंगे। बाप जैसे वर देते हैं। वर मिलेगा मीठी-मीठी सजनी को अथवा मीठे-मीठे सपूत बच्चों को।
मीठे-मीठे बच्चों को देख बाप खुश होते हैं। बच्चे जानते हैं इस नाटक में सभी अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं। बेहद का बाप भी इस बेहद के ड्रामा में सम्मुख का पार्ट बजा रहे हैं। स्वीट बाप के तुम स्वीट बच्चों को स्वीटेस्ट बाप सम्मुख नज़र आता है। आत्मा ही इस शरीर के आरगन्स से एक दो को देखती है। तो तुम हो स्वीट चिल्ड्रेन। बाप जानते हैं मैं बच्चों को बहुत स्वीट बनाने आया हूँ। यह लक्ष्मी-नारायण मोस्ट स्वीट हैं ना। जैसे इनकी राजधानी स्वीट है, वैसे इनकी प्रजा भी स्वीट है। जब मन्दिर में जाते हैं तो इन्हों को कितना स्वीट देखते हैं। कहाँ मन्दिर खुले तो हम स्वीट देवताओं का दर्शन करें। दर्शन करने वाले समझते हैं यह स्वीट स्वर्ग के मालिक थे। शिव के मन्दिर में भी कितने ढेर मनुष्य जाते हैं क्योंकि वह बहुत स्वीटेस्ट ते स्वीटेस्ट हैं। उस स्वीटेस्ट शिवबाबा की बहुत महिमा करते हैं। तुम बच्चों को भी मोस्ट स्वीट बनना है। मोस्ट स्वीटेस्ट बाप तुम बच्चों के सम्मुख बैठे हैं क्योंकि इनकागनीटो है। इन जैसा स्वीट और कोई हो नहीं सकता। बाप जैसे स्वीट का पहाड़ है। स्वीट बाप ही आकर कड़ुई दुनिया को बदल स्वीट बनाते हैं। बच्चे जानते हैं स्वीटेस्ट बाबा हमको मोस्ट स्वीटेस्ट बना रहे हैं। हूबहू आप समान बनाते हैं। जो जैसा होगा वैसा बनायेगा ना। तो ऐसा स्वीटेस्ट बनने के लिए स्वीट बाप को और स्वीट वर्से को याद करना है।
बाबा बार-बार बच्चों को कहते हैं मीठे बच्चे अपने को अशरीरी समझ मुझे याद करो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ याद से ही तुम्हारे सब कल कलेष मिट जायेंगे। तुम एवर हेल्दी, एवर वेल्दी बन जायेंगे। तुम मोस्ट स्वीट बन जायेंगे। आत्मा स्वीट बनेगी तो शरीर भी स्वीट मिलेगा। बच्चों को यह नशा रहना चाहिए मोस्ट बील्वेड बाप के हम बच्चे हैं तो हमको बाबा की श्रीमत पर चलना है। बहुत मीठा-मीठा बाबा हमको बहुत स्वीट बनाते हैं। मोस्ट बील्वेड बाप कहते हैं तुम्हारे मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। कोई भी कड़ुवा पत्थर नहीं निकलना चाहिए। जितना स्वीट बनेंगे उतना बाप का नाम बाला करेंगे। तुम बच्चे बाप को फालो करो तो तुमको फिर और सभी फालो करेंगे।
बाबा तुम्हारा टीचर भी है ना। तो टीचर जरूर बच्चों को शिक्षा देंगे बच्चे, याद का रोज़ अपना चार्ट रखो। जैसे व्यापारी लोग रात को मुरादी सम्भालते हैं ना। तो तुम व्यापारी हो, बाप से कितना बड़ा व्यापार करते हो। जितना बाप को जास्ती याद करेंगे उतना बाप से अथाह सुख पायेंगे, सतोप्रधान बनेंगे। रोज़ अपने अन्दर जांच करनी है। जैसे नारद को कहा ना आइने में अपना मुंह देखो कि लक्ष्मी को वरने के लायक हूँ! तुमको भी देखना है हम ऐसा बनने लायक हैं! नहीं तो हमारे में क्या-क्या खामियाँ हैं, क्योंकि तुम बच्चों को परफेक्ट बनना है। बाप आये ही हैं परफेक्ट बनाने लिए। तो ईमानदारी से अपनी जाँच करनी है – हमारे में क्या-क्या खामी है? जिस कारण समझता हूँ कि ऊंच पद नहीं पा सकूँगा। इन भूतों को भगाने की युक्ति बाप बताते रहते हैं। बाप बैठ सभी आत्माओं को देखते हैं, किसकी खामी देखते हैं तो फिर उनको करेन्ट देते हैं कि इनका यह विघ्न निकल जाये। जितना बाप की मदद कर बाप की महिमा करते रहेंगे तो यह भूत भागते रहेंगे और तुमको बहुत खुशी होगी, इसलिए अपनी पूरी जाँच करनी है – सारे दिन में मन्सा, वाचा, कर्मणा किसी को दु:ख तो नहीं दिया? साक्षी हो अपनी चलन को देखना है, औरों की चलन को भी देख सकते हो परन्तु पहले अपने को देखना है। सिर्फ दूसरे को देखने से अपना भूल जायेंगे। हरेक को अपनी सर्विस करनी है। दूसरों की सर्विस करना माना अपनी सर्विस करना। तुम शिवबाबा की सर्विस नहीं करते हो। शिवबाबा तो सर्विस पर आये हैं ना।
तुम ब्राह्मण बच्चे बहुत-बहुत वैल्युबुल हो, जो शिवबाबा की बैंक में सेफ्टी में बैठे हो। तुम बाबा की सेफ में रहकर अमर बनते हो। तुम काल पर विजय पहन रहे हो। शिवबाबा के बने तो सेफ हो गये। बाकी ऊंच पद पाने लिए पुरुषार्थ करना है। दुनिया में मनुष्यों पास कितना भी धन-दौलत है परन्तु वह सभी खत्म हो जाना है। कुछ भी नहीं रहेगा। तुम बच्चों के पास तो अभी कुछ भी नहीं है। यह देह भी नहीं है। यह भी बाप को दे दो। तो जिनके पास कुछ नहीं है उनके पास जैसेकि सब कुछ है। तुमने बेहद के बाप से सौदा किया ही है भविष्य नई दुनिया के लिए। कहते हो बाबा देह सहित यह जो कुछ कखपन है सभी कुछ आपको देते हैं और आप से फिर वहाँ सभी कुछ लेंगे। तो तुम जैसे सेफ हो गये। सभी कुछ बाबा की तिजोरी में सेफ हो गया। तुम बच्चों के अन्दर में कितनी खुशी होनी चाहिए बाकी थोड़ा समय है फिर हम अपनी राजधानी में होंगे। तुमको कोई पूछे तो बोलो, वाह हम तो बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा ले रहे हैं! एवर हेल्दी वेल्दी बनते हैं। हमारी सभी मनोकामनायें पूरी हो रही हैं।
बाप समझाते हैं मीठे बच्चों अब देही-अभिमानी बनो। योग की ताकत से तुम किसको थोड़ा भी समझायेंगे तो उनको झट तीर लग जायेगा। जिसको तीर लगता है तो एकदम घायल कर देते हैं। पहले घायल होते हैं फिर बाबा के बनते हैं। बाप को प्यार से याद करते हैं तो बाप को भी कशिश होती है। कई तो बिल्कुल ही याद नहीं करते। बाबा को तरस पड़ता है फिर भी कहेंगे बच्चे उन्नति को पाओ। आगे नम्बर में आओ। जितना ऊंच पद पायेंगे उतना नजदीक आयेंगे और उतना अथाह सुख पायेंगे। पतित-पावन तो एक ही बाप है, इसलिए एक बाप को याद करना है। सिर्फ एक बाप भी नहीं, साथ-साथ फिर स्वीट होम को भी याद करना है। सिर्फ स्वीटहोम को भी नहीं, माल-मिलकियत भी चाहिए इसलिए स्वर्गधाम को भी याद करना है। पवित्र जरूर बनना है। जितना हो सके बच्चों को अन्तर्मुख हो रहना है। जास्ती बोलो नहीं, शान्त में रहो। बाप बच्चों को शिक्षा देते हैं मीठे बच्चे अशान्ति नहीं फैलानी है। अपने घर-गृहस्थ में रहते भी बहुत शान्ति में रहो। अन्तर्मुख हो रहो। बहुत मीठा बोलो। कोई को दु:ख न दो। क्रोध न करो। क्रोध का भूत होगा तो याद में रह नहीं सकेंगे। बाप कितना मीठा है, तो बच्चों को भी समझाते हैं, बुद्धि को धक्का नहीं खिलाओ। बाह्यमुखी मत बनो, अन्तर्मुखी बनो।
बाप कितना लवली प्युअर है। तुम बच्चों को भी आप समान प्युअर बनाते हैं। तुम जितना बाप को याद करेंगे उतना अथाह लवली बनेंगे। देवतायें कितने लवली हैं, जो अभी तक भी उनके जड़-चित्रों को पूजते रहते हैं। तो बाप कहते हैं बच्चे तुम्हें फिर से ऐसा लवली बनना है। कोई भी देहधारी, कोई भी चीज़ पिछाड़ी को याद न आये। इतना लव से बाप को याद करना है, जो बस बैठे-बैठे प्रेम के ऑसू बहते रहें। बाबा, ओ मीठा बाबा आप से तो हमें सब कुछ मिल गया है। बाबा आप हमें कितना लवली बनाते हो। आत्मा लवली बनती है ना। जैसे बाप अति लवली प्युअर है, ऐसे प्युअर बनना है। बहुत लव से बाप को याद करना है। बाबा आपके सिवाए हमारे सामने दूसरा कोई न आये। बाप जैसा प्यारा कोई है नहीं। हरेक उस एक माशूक के आशिक बनते हैं। तो उस माशुक को बहुत याद करना है। बाबा ने बताया है वह जिस्मानी आशिक-माशुक कोई इकट्ठे नहीं रहते, एक बार देख लिया बस। तो बाप कहते हैं मीठे बच्चे, मामेकम् याद करो तो बेड़ा पार है। जिस मीठे बाप द्वारा हम हीरे जैसा बनते हैं ऐसे बाप के साथ हमारा कितना लव है। बहुत प्रेम से बाप को याद कर अन्दर रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। जो भी डिफेक्ट्स हैं उनको निकाल प्युअर डायमण्ड बनना है। अगर थोड़ी भी कमी होगी तो वैल्यु कम हो जायेगी। अपने को बहुत वैल्युबुल हीरा बनाना है। बाप की याद सतानी चाहिए। भूलनी नहीं चाहिए बल्कि और ही याद सतानी चाहिए। बाबा-बाबा कह एकदम ठर जाना (शीतल हो जाना) चाहिए। बाप से वर्सा कितना भारी मिलता है।
तुम बच्चे अभी अपनी दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हो, पुरुषार्थ तो सभी करते हैं। जो जास्ती पुरुषार्थ करते हैं वह जास्ती प्राईज़ पाते हैं। यह तो कायदा है। स्थापना हो रही है। इनको दैवी राजधानी कहो वा बगीचा कहो। बगीचे में भी नम्बरवार फूल होते हैं। कोई तो बड़ा फर्स्ट क्लास फल देते हैं, कोई हल्का फल देते हैं। यहाँ भी ऐसे है। कल्प पहले मुआफिक मीठे भी बन रहे हैं, खुशबूदार भी बन रहे हैं – नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। वैराइटी फूल हैं। बच्चों को यह निश्चय है बेहद के बाप द्वारा हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। स्वर्ग के मालिक बनने में खुशी बहुत होती है। तो बाप बैठ बच्चों को देखते हैं। घर के ऊपर धनी की नज़र रहती है ना। देखते हैं इनमें कौन-कौन से गुण हैं। कौन-कौन से अवगुण हैं। बच्चे भी जानते हैं, इसलिए बाबा कहते हैं अपनी खामियाँ आपेही लिखकर आओ। सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं हैं, हाँ बनना है। कल्प-कल्प बने हैं। बाप समझाते हैं – खामी मुख्य है सारी देह-अभिमान की। देह-अभिमान बहुत तंग करता है। अवस्था को बढ़ने नहीं देता। इस देह को भी भूलना है। यह पुराना शरीर छोड़ जाना है। दैवीगुण भी यहाँ ही धारण कर जाना है। जाना है तो कोई भी फ्लो नहीं होना चाहिए। तुम हीरे बनते हो ना। क्या-क्या फ्लो है यह तो जानते हो। उस हीरे में भी फ्लो होते हैं परन्तु उनसे फ्लो को निकाल नहीं सकते हैं क्योंकि जड़ है ना। उनको फिर कट करना पड़ता है। तुम तो चैतन्य हीरे हो। तो जो भी फ्लो है उनको एकदम निकाल फ्लोलेस पिछाड़ी तक बनना है। अगर फ्लो नहीं निकालेंगे तो वैल्यु कम हो जायेगी। तुम चैतन्य होने कारण फ्लो को निकाल सकते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जितना हो सके अन्तर्मुख हो, शान्त में रहना है, जास्ती नहीं बोलना है। अशान्ति नहीं फैलानी है। बहुत मीठा बोलना है, कोई को दु:ख नहीं देना है, क्रोध नहीं करना है। बाह्य मुखी बन बुद्धि को धक्का नहीं खिलाना है।
2) परफेक्ट बनने के लिए ईमानदारी से अपनी जाँच करनी है कि हमारे में क्या-क्या खामी है? साक्षी हो अपनी चलन को देखना है। भूतों को भगाने की युक्ति रचनी है।
वरदान:- | प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले पुरूषोत्तम आत्मा भव ब्राह्मण आत्मायें पुरुषोत्तम आत्मायें हैं। प्रकृति पुरुषोत्तम आत्माओं की दासी है। पुरुषोत्तम आत्मा को प्रकृति प्रभावित नहीं कर सकती है। तो चेक करो प्रकृति की हलचल अपनी ओर आकर्षित तो नहीं करती है? प्रकृति साधनों और सैलवेशन के रूप में प्रभावित तो नहीं करती है? योगी वा प्रयोगी आत्मा की साधना के आगे साधन स्वत: आते हैं। साधन साधना का आधार नहीं, लेकिन साधना साधनों को आधार बना देती है। |
स्लोगन:- | ज्ञान का अर्थ है अनुभव करना और दूसरों को अनुभवी बनाना। |
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
सदा अपने को डबल लाइट समझकर सेवा करते चलो। जितना सेवा में हल्कापन होगा उतना सहज उड़ेंगे, उड़ायेंगे। डबल लाइट बन सेवा करना, याद में रहकर सेवा करना, यही सफलता का आधार है। कितना भी आवाज और कितना भी तमोगुणी वातावरण हो लेकिन साइलेन्स की शक्ति से वेस्ट (व्यर्थ) समाप्त होने के कारण बेस्ट (श्रेष्ठ) स्थिति में स्थित होने से सदा रेस्ट (आराम) का अनुभव कर सकेंगे।